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मंथन

सुशील मोदी के जीवन का मूल आधार समय प्रबंधन

Amit Dubey
Last updated: January 8, 2025 4:18 pm
By Amit Dubey 2k Views
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10 Min Read
सुशील मोदी, समय प्रबंधन, जीवन, मूल आधार, जयंती
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शैलेन्द्र कुमार ओझा

Contents
सामूहिक शक्ति के प्रयोग का बेजोड़ कौशलकार्यारंभ और पूरा होने का समय पहले से तयकल करे सो आज…आज करे सो अब…किसी भी प्रकार के व्यसन से पूरी तरह मुक्तद्विधा या टालमटोल की आदत से परहेज‘करने योग्य’ सूची लिखने की आदत और कैलेंडर
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सुशील जी के सहयोगी के नाते बहुत वर्षों तक काम करने का सुअवसर मुझे मिला। दिवंगत होने के बाद उनकी प्रथम जयंती के अवसर पर समारोह के माध्यम से हमने उन्हें याद करने की योजना बनायी है। राष्ट्र सेवा के लिए अपने जीवन को समर्पित करने वाले महामानव के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि उनके कार्यों को आगे बढ़ाना होगा। उनमें जो कुछ भी अनुकरणीय है उससे समाज को अवगत कराना भी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। मेरी नजरों में उनकी विशेषताओं में सबसे प्रमुख उनका समय प्रबंधन है। उनकी यह विशेषता आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रतिमान है। बिहार की राजनीति में वे समय प्रबंध के प्रतीक पुरूष बन गए थे।

सामूहिक शक्ति के प्रयोग का बेजोड़ कौशल

अक्सर मुझसे लोग पूछते रहे कि सुशील जी इतना काम कैसे कर लेते हैं? मेरी समझ से इस प्रश्न का एक ही उत्तर है बेहतर समय प्रबंधन। यह निर्विवाद सत्य है कि मोदी जी एक सफल राजनेता थे। उनके जैसे राजनेता का निर्माण एक दिन में नहीं होता। उसमें आंतरिक और वाह्य व्यक्तित्व के अलावा सामूहिक शक्ति के प्रयोग का कौशल भी शामिल है। उनकी सफलता का प्रमुख कारण समय प्रबंधन था जिसमें सुशील मोदी जी के साथ उनके सहयोगी भी शामिल हैं। मतलब वे अपने साथ ही अपनी टीम के प्रत्येक सदस्यों के समय प्रबंधन की चिंता करते थे। उनकी टीम में जब नए सदस्य शामिल होते थे तब उनकी शिकायत होती थी कि वे छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देते हैं। लेकिन, कुछ दिन बाद ही वे समझ जाते थे कि उन छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने के कारण उनकी समस्या कम हो गयी है और बिना किसी तनाव के वे समय पर अपना काम पूरा कर पा रहे हैं। यह अत्यंत सूक्ष्म बात है जिस ओर लोग ध्यान नहीं देते। मेरी समझ से सुशील जी का समय प्रबंधन का जो तरीका था वह केवल एक राजनेता के लिए ही नहीं, बल्कि विद्यार्थी, व्यवसायी या अन्य किसी भी क्षेत्र में काम करने वालों के लिए उपयोगी हो सकता है। उनके समय प्रबंधन में समाज, पार्टी, कार्यकर्ता और सरकार के साथ अपने परिवार के लिए भी उचित समय होता था।

कार्यारंभ और पूरा होने का समय पहले से तय

समय प्रबंधन के मामले में सुशील जी स्वयं सचेत रहते थे और स्वयं के व्यवहार और अनुशासन से वे अपने अधीनस्थ कर्मचारियों, अधिकारियों व सहयोगियों के व्यवहार को भी बदल देते थे। उनकी योजना में यह शामिल होता था कि किस विशिष्ट कार्यं पर कितना समय खर्च करना है। उसी के अनुसार वे अपने कामों को निबटाते थे। उनका प्रयास होता था कि नियत समय पर कार्य सम्पादित कर लें। कुछ दिनों बाद मुझे ऐसा लगने लगा कि इस कार्य में वे कुशल हो गए हैं। समय-सीमा निर्धारित करने में वे छोटी-छोटी बातों पर भी ध्यान देते थे। यदि किसी कारणवश उन्हें अचानक अपने कार्यक्रम में परिवर्तन करना पड़ जाता था तो वे छूटे हुए कार्य को छोड़ते नहीं थे, बल्कि अपने आराम के समय में उसे पूरा करते थे।

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कल करे सो आज…आज करे सो अब…

एकबार उन्होंने कहा था कि कोई भी काम कल के भरोसे नहीं छोड़िए। समय ऐसी पूंजी है जिसका उपयोग कर लिए तो कर लिए, नही तो वह हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगा। यह जमा होने वाली पूंजी नहीं है। इसीलिए समय का उपयोग करने की योजना पहले से बनाया जाता है और उसे उसी समय पर पूरा किया जाता है। इस मामले में वे स्वयं को तो प्रेरित करते ही थे, साथ में अपने सहयोगियों को भी प्ररित करते रहते थे। इस अर्थ में आप कह सकते हैं कि वे अपनी टीम के समय प्रबंधन और इसके लिए अपेक्षित अनुशासन को लेकर भी हमेशा सजग रहते थे। अपनी टीम के सदस्यों को न केवल प्ररित करते बल्कि अपनी तरह से वे उन्हें प्रशिक्षित भी करते रहते थे। इस मामले में उनकी शैली संघ और विद्यार्थी परिषद के प्रचारक या पदाधिकारियों जैसी थी। आवश्यकता पड़ने पर थोड़ा डांटना और इसके बाद स्नेह के साथ समझाना भी उनकी कार्यशैली का हिस्सा था। जो उन्हें समझ लेता था वह उनका हो जाता था। इस प्रकार वे अपनी टीम को भी अपनी विशेषताओं से गढ़ते थे।

किसी भी प्रकार के व्यसन से पूरी तरह मुक्त

वे स्वयं किसी व्यसन या बुरी आदत से मुक्त थे और अपने लोगों को भी कुशलतापूर्वक काम करने और जीवन जीने के लिए अच्छी आदतें विकसित करने की न केवल सलाह देते थे बल्कि प्रयास करके उनकी बुरी आदतों को छुड़ाते भी थे। अच्छी दिनचर्या और आदतें विकसित करने के लिए हमेशा प्ररित करते थे। उनके सहयोगी के रूप में काम करते हुए मुझे अहसास हुआ कि अच्छे समय प्रबंधन से स्वस्थ, संतुलित जीवनशैली विकसित हो सकती है। इससे तनाव मुक्त होकर लक्ष्यों को अधिक कुशलता से प्राप्त किया जा सकता है। यदि आप तनाव मुक्त हैं और स्वस्थ हैं तो स्वाभाविक तौर पर आप में ऊर्जा की भी वृद्धि होगी। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन-मस्तिष्क होता है ऐसे में आप जो महत्वपूर्ण है उसका अपनी तर्क बुद्धि से चयन कर उसे प्राथमिकता दे सकते हैं। यही आपकी सफलता का राज होगा। ऐसा होने पर ही कोई कम समय में अधिक कार्य पूरा करने में समर्थ होगा।

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द्विधा या टालमटोल की आदत से परहेज

दूसरी महत्वपूर्ण बात जो मैने सुशील जी से सीखी, वह है टालमटोल को कम करना या इस आदत को हमेशा के लिए छोड़ ही देना है। इससे आप कुशलतापूर्वक किसी काम को कर सकते हैं। अपने दायित्व के साथ भी न्याय कर सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो आपका आत्मविश्वास स्वतः बढ़ने लगता है। मेरी समझ से आत्मविश्वास मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी है। आत्मविश्वास की कमी के कारण अपने पेशे में कुशल व्यक्ति भी अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं कर पाता है। सुशील जी में अद्भुत आत्मविश्वास था जिसे हम जैसे उनके सहयोगी भी अनुभव करते थे। सुशील जी हमेशा कहते थे कि कार्यों को पूरा करने के लिए समय सीमा निर्धारित करने से आपको अधिक केंद्रित और कुशल बनने में मदद मिलती है। प्रत्येक कार्य के लिए आपको कितना समय आवंटित करना है, यह तय करने के लिए थोड़ा अतिरिक्त प्रयास करने से आपको संभावित समस्याओं को उनके उत्पन्न होने से पहले पहचानने में भी मदद मिल सकती है। इस तरह आप उनसे निपटने के लिए योजनाएं बना सकते हैं। जब आप बिना ब्रेक के बहुत सारे काम करते हैं, तो ध्यान केंद्रित करना और प्रेरित रहना मुश्किल होता है। अपने दिमाग को शांत करने और खुद को तरोताजा करने के लिए कामों के बीच कुछ समय आराम करें। थोड़ी देर की झपकी लेने, थोड़ी देर टहलने या ध्यान लगाने पर विचार करें।

‘करने योग्य’ सूची लिखने की आदत और कैलेंडर

सुशील जी खुद को व्यवस्थित करने के लिए कैलेंडर के सहारे दीर्घकालिक समय प्रबंधन की योजना बनाते थे। लगभग पूरे वर्ष की योजना बनाकर वे तैयार कर लेते थे। सरकार के कार्यों के लिए समय-सीमाएं लिखते समय वे ऐसी योजना बनाते थे जिसमें समय सारिणी में परिवर्तन की भी गुंजाइश हो। मतलब समय प्रबंधन को लेकर उनमें एक व्यवाहारिक दृष्टि थी। आवश्यकता पड़ने पर बिना परेशानी के थोड़ा बहुत परिवर्तन कैसे किया जा सकता है, यह भी विशेषता उनमें थी। अनावश्यक गतिविधियों या कार्यों को हटाने में वे थोड़ा भी संकोच नहीं करते थे। राजनीतिक लोग शायद इसमें संकोच करते हैं। वे कड़े अनुशासन के साथ निर्धारित करते थे कि क्या महत्वपूर्ण है और क्या आपके समय के लायक है। वे हर दिन की शुरुआत एक स्पष्ट विचार के साथ करते थे। उसमें शायद ही कभी बदलाव वे करते थे। अगले कार्यदिवस के लिए अपनी ‘करने योग्य’ सूची लिखने की आदत उनमें थी।

(लेखक शैलेन्द्र कुमार ओझा सुशील जी के बतौर सहायक काम कर चुके हैं)

TAGGED: जयंती, जीवन, मूल आधार, समय प्रबंधन, सुशील मोदी
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