गंगा नदी के बिल्कुल किनारे अवस्थित पटना मेडिकल कालेज के पूर्ववर्ती छात्र गंगा की खूबसूरती और गंगा के सानिध्य में व्यतीत परम आनंद के क्षण को आज भी याद करते हैं। पटना मेडिकल कालेज का बोटिंग क्लब अब इतिहास सा बन गया है। लेकिन पहले वोटिंग क्लब की एक अलग पहचान थी। एक अलग ही रोमांच था। प्रथम वर्ष के छात्रों के लिए पहली बार, अपनी बोट में बोटिंग करने का अनुभव रोमांच से भरा होता था। जीवन भर नहीं भूलने वाला। दूसरे मेडिकल कॉलेजों के छात्रों के लिए यह ईर्ष्या का कारण होता था। वे सोचते होंगे, काश, कुछ नम्बर और होते तो कितना अच्छा होता। पीएमसीएच में होते और हम भी बोटिंग करने का लुत्फ उठाते। अनेक चीजें थीं जो पीएमसीएच को दूसरे कालेजों से अलग करती थीं। उनमें बोटिंग क्लब का स्थान सबसे ऊपर था। गंगा की लहरों के साथ चढ़ना-उतरना, गंगा पार के चांदी से चमकते बालू में चांदनी रात का लुत्फ उठाना।
बोटिंग क्लब का वार्षिक उत्सव भी अद्भुत होता था। तैराकी और रोइंग प्रतिस्पर्धा। गंगा के आर-पार का रेस, कितने मनमोहक हुआ करते थे। प्रथम वर्ष से ही छात्र चैम्पियन बनने के संपने संजोने लगते थे। इसमें कुछ दुर्घटनाएं भी होती थी। प्रतियोगिता में छात्र के डूबने से मौत और खुशी के मातम में बदलने की भी घटनाएं हुई तो बोटिंग क्लब सदा-सदा के लिए बन्द हो गया। गंगा की लहरों के साथ बहने थिरकने की चाहत रखने वाले खतरा मोल लेने का भी मंसूबा रखते थे।
पीएमसीएच के पास गंगा एक त्रासदी की भी गवाह है, बिना दोष के दोषी भी। कुरुसेला राज का राजकुमार। पायलट की ट्रेनिंग ले चुके थे। उनके बड़े भाई पीएमसीएच के छात्र थे। आसमान में करतब दिखाने का कार्यक्रम था। उन दिनों हवाई जहाज पर शायद ही किसी छात्र को चढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ होगा। आसमान में धुएँ की लकीर खींचते, खिलौने की तरह नजर आते जेट विमानों को हम तब तक निहारा करते जबतक वे आँखों से ओझल नहीं हो जाते। विमान पुष्पक विमान सी स्फुर्लिंग पैदा करते, एयर हॉस्टेस की तस्वीर परियों की तस्वीर लगा करती। बिहार में सिर्फ़ कुरुसेला नरेश के पास अपना निजी विमान था और महाराजा रामगढ़ के पास अपना निजी हेलिकॉप्टर।
उस दिन लड़के जमा थे, घाट पर अद्भुत नजारा देखने के लिए। दूर से एक जहाज आता हुआ नजर आया। नजदीक आने पर तालियों की गड़गड़ाहट हुई और वह चक्कर लगाता हुआ दूर चला गया। वापस आया तो नीचा होता हुआ, गंगा की लहरों को छूता हुआ आया और फिर ऊपर उड़ गया। इतने क़रीब से जहाज को उड़ान भरते हुए शायद ही किसी ने देखा होगा। पायलट भी नजर आ रहा था, उसने अँगूठा उठाया, अभिवादन किया दर्शकों का। पायलट खुश थे, दर्शक मंत्रमुग्ध। जहाज फिर वापस आया, नीचे उतरा, पानी को क़रीब से छुता हुआ। पर तभी कुछ घटित हो गया। जिनकी पलकें उस वक़्त झपकी थीं, वे देख भी नहीं पाए। जहाज पल भर में पानी के भीतर समा गया। खुशी ग़म में बदल गई। तालियों की जगह आहों ने ले ली। अफरा-तफरी मच गई। त्रासदी यह थी कि पायलट को बचाने का कोई उपाय नहीं था। गोताखोर आए और उन्हें तीसरे दिन निकाला जा सका। गंगा अविचलत भाव से बहती रही। डॉक्टर सिंह उस दिन के बाद गंगा के किनारे कभी नहीं गए, अपने आपको अपने भाई की मृत्यु के लिए दोषी समझते रहे।