लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में एनडीए और महागठबंधन दोनों की धुकधुकी दो सीटों के लिए बढ़ी हुई है। एक तो काराकाट जहां मामला पवन सिंह ने फंसा रखा है। लेकिन दूसरी सीट जहानाबाद में तो ऐसा धमासान मचा हुआ है कि हर किसी का सिर चक्कर खा रहा। जहानाबाद का चुनावी मुकाबला इसलिए भी बेहद दिलचस्प हो गया है कि यहां लड़ाई त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय नहीं बल्कि पंचकोणीय हो गई है। यहां एनडीए के जदयू कैंडिडेट चंदेश्वर चंद्रवंशी, राजद के सुरेंद्र यादव, बसपा के अरुण कुमार और निर्दलीय मुन्नी लाल यादव और निर्दलीय ही आशुतोष कुमार ने दोनों बड़े गठबंधनों को जबर्दस्त उलझा लिया है।
बसपा और दो-दो निर्दलीयों ने फंसाया पेंच
जहानाबाद में सातवें और आखिरी चरण में 1 जून को वोटिंग होगी। 2019 में जदयू ने बहुत ही मुश्किल से केवल 1700 वोटों से जीत हासिल की थी। ऐसे में इस बार फिर जदयू द्वारा अपने उसी कैंडिडेट पर दांव लगाना समझ से परे है। उधर राजद ने 2019 में यहां सुरेंद्र यादव को लड़ाया था। इस बार भी लड़ाई चंदेश्वर चंद्रवंशी और सुरेंद्र प्रसाद यादव के बीच ही है, लेकिन दोनों गठबंधनों के लिए मुश्किल निर्दलीयों और बसपा कैंडिडेट के मैदान में आने से खड़ी हो गई है। जहां बसपा के टिकट पर अरुण कुमार और निर्दलीय आशुतोष कुमार भूमिहार वोट पर नजरें गड़ाए बैठे हैं तो वहीं दूसरे निर्दलीय मुन्नी लाल यादव राजद के कोर वोट यादव को बिखेर रहे हैं।
NDA और RJD दोनों को वोटबैंक दरकने का खतरा
एक तरह से दो—दो निर्दलीय और बसपा उम्मीदवार जहानाबाद में लालू और नीतीश की टेंशन बढ़ा रहे हैं। निर्दलीय आशुतोष और बसपा से लड़ रहे अरुण कुमार भूमिहार समाज से आते हैं और दोनों की अपने समाप पर अच्छी पकड़ है। वहीं राजद के पूर्व विधायक मुन्नी लाल यादव टिकट न मिलने से नाराज होकर चुनाव मैदान में कूद पड़े हैं। मुन्नी लाल यादव की भी यादव वोट पर मजबूत पकड़ मानी जाती है। ऐसे में यादव और भूमिहार बहुल जहानाबाद में मुकाबला पंचकोणीय बन गया है। जहां बसपा के अरुण कुमार और निर्दलीय आशुतोष भूमिहार वोट के समीकरण बिगाड़ रहे हैं, वहीं निर्दलीय पूर्व विधायक मुन्नी लाल आरजेडी के ‘माई’ समीकरण में यादव वोटबैंक का खेल खराब कर रहे।
नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग और जातीय समीकरण
जहानाबाद से यादव और भूमिहार जाति के उम्मीदवार ही अधिकांश बार जीते हैं। लेकिन 2019 में नीतीश कुमार के सोशल इंजीनियरिंग के तहत अति पिछड़ा वर्ग के चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी जहानाबाद से जीते थे। इस बार फिर से नीतीश कुमार ने उनको उतारने का रिस्क लिया है। जहानाबाद लोकसभा क्षेत्र में लगभग 16 लाख से अधिक मतदाता हैं। यहां पर यादव और भूमिहार मतदाताओं की संख्या सबसे अधिक है। हालांकि एससी-एसटी, कुशवाहा और मुस्लिम वोटर भी निर्णायक भूमिका में रहते हैं, लेकिन अधिकतर यादव और भूमिहार ही यहां प्रभावी होते हैं।
जहानाबाद लोस क्षेत्र की विधानसभाई दलीय स्थिति
जहानाबाद लाकसभा सीट अंतर्गत 6 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। लेकिन इस समय इन सभी सीटों पर महागठबंधन का कब्जा है। चार में आरजेडी के विधायक हैं और दो पर भाकपा माले के विधायक हैं। जहानाबाद विधानसभा सीट से आरजेडी के सुरेन्द्र यादव, मखदुमपुर विधानसभा सीट से राजद के सतीश दास, घोसी से भाकपा माले के विधायक रामबली सिंह यादव, अरवल जिले के अरवल विधानसभा क्षेत्र से भाकपा माले के विधायक महानंद सिंह, कुर्था विधानसभा से राजद के बागी कुमार वर्मा और गया जिले के अतरी विधानसभा क्षेत्र से राजद के अजय यादव मौजूदा समय में विधायक हैं।
क्या मूड है जनता का, क्या दावे कर रहे नेता
जहां तक जहानाबाद की लड़ाई की बात है अरुण कुमार और निर्दलीय उम्मीदवारों के कारण राजद और जदयू के लिए यहां लड़ाई कठिन हो गई है। इस सीट पर कौन जीतेगा कहना मुश्किल है। जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि अरुण कुमार पार्टी बदलने के लिए जाने जाते हैं। अब बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। आशुतोष भी निर्दलीय हैं तो मुन्नी लाल यादव भी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। लेकिन यहां तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने की लड़ाई है। इसलिए जहानाबाद में जदयू और राजद के बीच ही मुकाबला होगा। लेकिन नेता चाहे जो भी दावे करें, यहां एक तरफ भूमिहार उम्मीदवार एनडीए की मुश्किल बढ़ा रहे हैं और नीतीश कुमार को टेंशन दे रहे हैं, तो दूसरी तरफ निर्दलीय यादव उम्मीदवार लालू के लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं। देखना है अंतिम चरण में होने वाले चुनाव में जनता किसके साथ जाती है।