सच्चिदानंद राय
सुशील मोदी के नहीं रहने के बाद बिहार की राजनीति में जो रिक्तता आयी है उसकी भरपाई होने के आसार दूर-दूर तक नहीं दिखते। सुशील मोदी को सामने रखकर यदि हम राजनीति का मतलब समझें तो वह चुनाव लड़ना, किसी सदन का सदस्य बन जाना या मंत्री बन जाना नहीं होता। उनके लिए राजनीति का नाम संघर्ष था, कार्यकर्ता निर्माण था, संगठन गढ़ना था और कार्यकर्ता प्रशिक्षण भी था। इस अर्थ में वे सामान्य राजनेताओं की कतार में अलग दिखते थे। उनके साथ जब मेरा सम्पर्क हुआ तो मुझे लगा कि वे मेरे बारे में पूरी जानकारी रखते हैं। मेरी पढ़ाई लिखाई, मेरा व्यवसाय, मेरी खूबियां और कमियां सब पर उन्होंने खुलकर बातें की। इसके बाद उन्होंने कहा कि आप सारण क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी बनें। मेरा अनुमान है कि आप उस सीट को अवश्य निकाल लेंगे।
पूरी तरह आर्गेनाइज्ड और सर्वमान्य राजनेता
सुशील मोदी की कार्यशैली का जो आंकलन मैने किया है, उसके अनुसार वे एक आर्गेनाइज्ड राजनेता थे। उनका सभी कार्य व्यवस्थित, योजनाबद्ध और पूर्ण नियोजित होता था। इसके लिए वे स्वयं परिश्रम करते थे और अपने साथ काम करने वाली टीम के साथ उनका अद्भुत समन्वय भी होता था। सीखने की उनकी प्रवृति अद्भुत थी। उनके सम्पर्क में रहने वाले कई लोगों ने बताया कि सुशील जी अपने से छोटी उम्र के लोगों से भी सहजता से बहुत कुछ सीख लेते हैं। अपने विरोधियों को भी फोन कर उनसे जानकारी लेते रहे हैं। कैलाशपति मिश्र के बाद बिहार भाजपा के वे सर्वमान्य नेता थे। संघ के कार्यकर्ता के रूप में उनके लंबे जीवन का प्रभाव उनके सार्वजनिक जीवन में स्पष्ट दिखता था। संगठन की बैठकों में बातचीत करने में जो उनकी शैली थी उसमें एक विशेष प्रकार की स्पष्टता और प्रबोधन का प्रयास दिखता था।
चुनावी कौशल से गाइड करने की कला
भाजपा ने पहली बार मुझे सारण त्रिस्तरीय पंचायती राज निर्वाचन क्षेत्र से विधान परिषद चुनाव के लिए उम्मीदवार बनाया था। उसमें सुशील जी की भी सहमति थी। चुनाव प्रत्याशी के रूप में मेरे नाम की घोषणा के बाद सुशील जी ने मुझे अपने पास बुलाया और चुनाव की योजना और व्यवस्था से सम्बंधित बहुत सारी जानकारियां दी। उन्होंने भाजपा के कुछ विधान परिषद सदस्यों के पास विधान परिषद चुनाव की तैयारी के बारे में जानकारी लेने के लिए भेजा। ऐसा करते हुए उन्होंने कहा था कि क्षेत्र में आप बहुत दिनों से सक्रिय हैं लेकिन, यह चुनाव कुछ दूसरे तरह का है। इसका प्रबंधन भी दूसरे तरह से होता है। इसकी बारीकियों को जाने बिना आपको परेशानी होगी। हो सकता है कि आपको कुछ लोग गलत सलाह भी दे दें। उन्होंने यहां तक कहा कि आप भाजपा के कुछ एमएलसी के साथ उनके क्षेत्र को भी देख लीजिए। इससे आपके दिमाग में इस चुनाव को लेकर बहुत कुछ स्पष्ट हो जाएगा।
सुशील जी का अद्भुत और व्यापक नेटवर्क
उनके इस सुझाव के बाद मैं सोचने लगा कि ये तो विधानसभा और लोकसभा का चुनाव लड़ते रहे हैं। लेकिन, विधान परिषद के इस चुनाव के बारे में इतनी गहराई से जानकारी क्यों रखते है। हमें समझते देर नहीं लगा कि यह उनकी सहज प्रवृति है। वे राजनीति को केवल हार-जीत का खेल नहीं मानते, बल्कि इससे जुड़े हुए सभी पहलुओं पर आधिकारिक और प्रमाणिक जानकारी रखते हैं। नामांकन के बाद जब मैं प्रचार और सम्पर्क अभियान में सक्रिय हो गया तब नियत समय पर प्रतिदिन उनका फोन आता था। सूत्र रूप में वे अपनी बात कहते और मेरी ओर से सारी जानकारियां लेते थे। उस दौरान मुझे लगा कि उनका नेटवर्क सभी जगह है। और वे आर्दर्शवादी राजनीति के साथ ही व्यावहारिक राजनीति के भी ज्ञाता थे। सबसे बड़ी बात यह कि वे टेक्नो फ्रेंडली थे और सूचना क्रांति के इस युग में उपलब्ध सारे उपकरणों व संसाधनों का उपयोग करने में वे दक्ष थे। इस मामले में वे अपने समय के राजनेताओं से काफी आगे थे। भारतीय जनता पार्टी जैसे संगठन में उनका विकल्प नहीं दिखता क्योंकि बहुत परिश्रम से उन्होंने अपनी क्षमता को विकसित किया था। यही कारण है कि अंतिम समय तक वे प्रासंगिक बने रहे। उनके विरोधी भी उनकी अध्ययनशीलता और शोध प्रवृति का सम्मान करते थे। वे अपने समय का एक-एक क्षण उपयोग करना चाहते थे और इसके लिए वे योजना भी बनाते थे।
टेक्नोलॉजी के बल पर बिहार को बदलने का संकल्प
उनके जीवन का लक्ष्य था कि बिहार विकास का मॉडल बने। अमेरिका और यूरोप के देशों की यात्रा से लौटने के बाद वे अपना अनुभव लोगों से शेयर करते थे। अधिकारियों और योजनाकारों के साथ बैठकर भी वे विदेशों में होने वाले प्रयोगों की चर्चा करते थे। एकबार उन्होंने मुझ से कहा था कि आप तो पूरे विश्व में टेक्नोलाजी के क्षेत्र में हो रहे नवाचारों से अवगत होते रहे होंगे। आपको भी अपने बिहार के बारे में सोचना चाहिए कि यहां हम क्या कर सकते हैं। सुशील जी टेक्नोलाजी के क्षेत्र में होने वाले नए प्रयोगों व आविष्कारों की बातों में न केवल रूचि लेते थे बल्कि कुछ सीखने का भी प्रयास करते थे।
एक IAS अधिक जानकारी होनी चाहिए नेता को
राजनीतिक क्षेत्र में काम करने वालों की अक्सर शिकायत होती है कि अधिकारी नेताओं, मंत्रियों की बात नहीं मानते हैं। ऐसी शिकायतें उन तक भी पहुंचती थी। तरह-तरह के काम के लिए पैरवी भी आती थी। एक दिन उन्होंने कहा था कि बहुत से अधिकारी तो आपके आईआईटी के ही हैं। मंत्री लोग कहते हैं कि आईएएस उनकी बात नहीं मानता। इस मामले में मेरा सुझाव रहता है कि आप अपने विभाग के मामले में पूरी जानकरी रखें। बल्कि इतनी जानकारी रखें कि आप अपने विभाग के सचिव को सुझाव व निर्देश देने की स्थिति में हों। यदि ऐसा होगा तो अधिकारी आपकी बात मानने के लिए बाध्य होगा। राजनीतिक व्यवस्तता का बहाना बनाकर यदि आप केवल ऐशमौज करते रहेंगे और विभाग की फाइल नहीं पढ़ेंगे तो ऐसा ही होता रहेगा क्योंकि आप अपने विभाग के सचिव पर पूरी तरह से निर्भर कर रहे होते हैं।
सुशील जी का संपूर्ण जीवन एक प्रशिक्षण मॉडल
सचमुच सुशील जी कि वे बातें यथार्थ से जुडी हुई थीं। इस प्रकार की शिकायत को यदि दूर करना है तो राजनीति के क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ताओं को सुशील मोदी को सामने रखकर स्वयं को ढालना चाहिए। इस अर्थ में सुशील जी का पूरा जीवन संदर्भ एक प्रशिक्षण मॉडल है। इनके जीवन के विविध पक्षों को सामने लाने के लिए विशेष अध्ययन और शोध की आवश्यकता है।
(लेखक आईआईटी के पूर्ववर्ती छात्र और वर्तमान में बिहार विधान परिषद के सदस्य हैं)