पटना मेडिकल कालेज की गौरवशाली परंपरा की चर्चा डॉ. अनन्त प्रसाद सिंह जैसे चिकित्सकों, शिक्षकों के बिना पूरी नही हो सकती है। डॉ. अनन्त प्रसाद सिंह ऐसे मेधावी छात्र थे जिन्होंने छः महीने में ही एफआरसीएस (इंग्लैण्ड) का दोनों पार्ट पासकर एक कीर्तिमान स्थापित किया। एक बहुत अच्छे सर्जन तथा बहुत अच्छे शिक्षक के जितने भी गुण कहें, उनमें मौजूद थे। वे डॉ. आरर्वीपी सिन्हा के रेजिडेन्ट-सर्जन और ट्यूटर रहे। वे सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष थे। डॉ. अनन्त का कार्यकाल बड़ा ही शान्तिपूर्ण था। कोई किचकिच, झंझट-पटपट नहीं रहा।
लेकिन, एक घटना के कारण अनन्त बाबू की सारी कीर्ति धूमिल हो जाती। उनकी सेवानिवृत्ति का समय नज़दीक था। एमएस की परीक्षा में एक विद्यार्थी अनुत्तीर्ण हो गया। यह कोई असाधारण बात तो थी नहीं, परन्तु कुछ लोगों के बहकाने पर उसने अनन्त बाबू के विरुद्ध पटना विश्वविद्यालय के कुलपति को आवेदन देकर उनपर पक्षपात का आरोप लगा दिया। कुलपति ने इस संबंध में अनन्त बाबू से स्पष्टीकरण माँगा। पीएमसीएच के शिक्षकों को जब विदित हुआ तो उसकी प्रति लेकर उन लोगों ने शल्य चिकित्सा विभाग में बैठक की। इसमें अनन्त बाबू नहीं आये। पत्र का विवेचन किया गया और तय पाया गया कि सम्मान की रक्षा हेतु इसका विरोध अवश्य करना चाहिए। साथ ही विभागाध्यक्ष, शल्य चिकित्सा-विभाग से अनुरोध किया गया कि इसका उत्तर वे नहीं भेजें।
चिकित्सकों ने बहुत ही कड़ा रुख अपनाया और विभाग की बैठक का निर्णय कुलपति को भेजने का निश्चय किया। उनमें कुछ मुख्य बातें इस प्रकार थीं- ‘हम शिक्षक हैं और शिक्षा का कार्य अवश्य करेंगे। पटना विश्वविद्यालय की स्नातक एवं स्नातकोत्तर- किसी भी परीक्षा में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में विभाग का कोई भी शिक्षक भाग नहीं लेगा। कुलपति स्वयं व्यवस्थाकर निष्पक्ष परीक्षा संपन्न कराएं। हमारी निष्पक्षता पर अंगुली उठी है, हमारे आत्मसम्मान को ठेस लगी है। जब हमारी निष्पक्षता संदिग्ध है, तो परीक्षा-कार्य संपादन करना हमारे लिए सम्भव नहीं होगा।’ सन् 1986 में डॉ० एच॰एन् वर्मा सेवानिवृत्त हो गये। उनके स्थान पर डॉ० अनन्त प्रसाद सिंह विभागाध्यक्ष बने।
निर्णय हुआ कि लिखित पत्र न भेजकर पहले शिष्टमण्डल कुलपति से मिले। चिकित्सकों ने कुलपति से पूछा कि आपने लिखित स्पष्टीकरण क्यों पूछा ? उस समय के कुलपति पटना साइंस कालेज के प्रतिष्ठित शिक्षक थे। उन चिकित्सकों में से कई उनके शिष्य भी रहे थे। कुलपति के समझ में पूरी बात आ गयी थी। उन्होंने चिकित्सकों को कहा कि उस लिखित पत्र पर कोई ध्यान मत दो। पूरी बात मेरी समझ में आ गयी है। कोई लिखित जवाब देने की आवष्यकता नहीं है। इस प्रकार से अनन्त प्रसाद सिंह जैसे चिकित्सक पर लगे बेबुनियाद आरोप की समाप्ति हुई थी। पटना मेडिकल कालेज के चिकित्सक अपने मान-सम्मान से कभी समझौता नहीं करते थे। समाज में उनकी प्रतिष्ठा भी थी क्योंकि वे अपने समय के पाबंद थे। पटना मेडिकल कालेज के चिकित्सकों के बारे में कहा जाता था कि वे समय से अपने कार्यस्थल पर अवश्य उपस्थित हो जाते हैं। उनके आने के समय के साथ कोइ्र अपनी घड़ी का समय मिला सकता है। सन् 1989 में अनन्त बाबू सेवानिवृत्त हो गए और उनके स्थान पर डा. नरेंद्र प्रसाद विभागाध्यक्ष बने थे।