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देश-विदेश

सुशील मोदी, एक निडर और निर्भीक नेता प्रतिपक्ष

Amit Dubey
Last updated: January 9, 2025 4:20 pm
By Amit Dubey 2k Views
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8 Min Read
सुशील मोदी, निडर, निर्भीक, नेता प्रतिपक्ष, नंद किशोर यादव, विधानसभा अध्यक्ष
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नंदकिशोर यादव, अध्यक्ष बिहार विधानसभा

Contents
जानकारियों का खजाना सुशील जी की जेल डायरीअनुभवों को द्रष्टा भाव से सहेजने की आदतकैलाशपति मिश्र ने भाजपा के लिए काम करने को कहासुशील जी का विवाह और अटल जी की यादेंकार्यों को सोचविचार कर पूर्णता से अंजाम देना
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सुशील मोदी का बहुआयामी व्यक्तित्व था। वे निर्भीक भी थे और सच को बिना किसी लागलपेट के कहने की क्षमता उनमें थी। उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का आंकलन करने के लिए चौहत्तर के जेपी आंदोलन से बात शुरू करनी होगी। जेपी आंदोलन के वे अग्रणी नेता थे। आपात काल के कारण देश में लोकतंत्र पर अभूतपूर्व संकट छाया हुआ था। सरकार की दमनकारी नीतियों के विरोध में छात्र सड़क पर उतर कर आंदोलन कर रहे थे। उस समय वे पटना विश्वविद्यालय छात्रसंघ के महासचिव थे। छात्रों के नेता होने के कारण उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गयी थी। इसके साथ ही वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के भी प्रमुख कार्यकर्ता थे।

जानकारियों का खजाना सुशील जी की जेल डायरी

मेरा मानना है कि आपात काल के विरोध में चले देशव्यापी आंदोलन को यदि ठीक से समझना है तो सुशील मोदी की जेल डायरी से बहुत प्रामाणिक जानकारियां मिल जायेंगी। अपनी जेल डायरी में लिपिबद्ध जानकारियों से भरपुर उनकी पुस्तक ‘बीच समर में’ उपलब्ध है। इस मामले में वे प्रारंभ से सजग थे। कहीं से भी कोई जानकारी यदि मिलती थी तो वे उसे तत्काल लिख लेते थे और उसे सुरक्षित रखते थे। इस अर्थ में उनकी वृति शोध अध्येता की थी। स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में बड़े नेता अपनी डायरी लिखते थे। आज वह उस कालखंड को जानने व समझने के प्रमुख स्रोत हैं। इस मामले में महात्मा गांधी का कार्य अनुकरणीय है। इतना ही नहीं, एकांत जेल में बंद कर दिए जाने के बाद लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने योगशास्त्र और कर्मविज्ञान शास्त्र गीता पर भाष्य की रचना की थी। आज वह रचना विश्व के मानव समाज की अनमोल धरोहर है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने उद्घोष किया था कि स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे। आपात काल के समय जेल में बंद लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने भी अपना अनुभव व विचार डायरी के रूप में संग्रहित किया था।

अनुभवों को द्रष्टा भाव से सहेजने की आदत

आपातकाल में जेल की काल कोठरी में बंद हमारे मित्र और नेता सुशील कुमार मोदी भी अपने अनुभव व विचारों को अपनी डायरी में लिख लेते थे। जेल की यातना के बावजूद अपने अनुभवों को द्रष्टाभाव से सहेजने की प्रवृति एक असाधरण मानव का लक्षण होता है। आपात काल में जेल में बंद लोग अपने परिवार को याद कर रोते थे। ऐसे में एक युवा अपने अनुभवों को लिख रहा हो तो आप उसकी बौद्धिक क्षमता, मनोबल और आंतरिक व्यक्त्वि की दृढ़ता का सहज ही आंकलन कर सकते हैं। मेरा मानना है कि देश में आपातकाल के माध्यम से निरंकुश सरकार का जो अत्याचार हुआ उस अत्याचार ने सुशील कुमार मोदी को और उनके जैसे और नेताओं में अदम्य साहस और प्रतिकार की असाधरण क्षमता प्रदान की। आपातकाल के बाद वे विद्यार्थी परिषद के पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गए। संघ के प्रचारक के रूप में वे विद्यार्थी परिषद में काम करने लगे। विद्यार्थी परिषद में प्रदेश स्तर से लेकर अखिल भारतीय स्तर तक प्रमुख दायित्वों का निर्वहन किया। विद्यार्थी परिषद के पदाधिकारी के रूप में उन्होंने जो प्रयोग किए थे वे आज भी प्रतिमान माने जाते हैं। उनके समय में बिहार में विद्यार्थी परिषद का गुणत्मक, संख्यात्मक और भौगोलिक विस्तार भी हुआ।

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कैलाशपति मिश्र ने भाजपा के लिए काम करने को कहा

समय आने पर जब उन्हें विद्यार्थी परिषद के दायित्वों से मुक्त होना पड़ा तब कैलाशपति मिश्रा ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करने को कहा। संघ के प्रचारक जीवन से लौटने के बाद उन्होंने विवाह करने का निर्णय लिया। उन्होंने बिहार से बहुत दूर केरल की रहने वाली लड़की से विवाह करने का संकल्प लिया जो न तो उनकी जाति की थी और न ही उनके धर्म की। अपने परिवार के लोगों को समझा-बूझा कर उन्होंने जेसी जी के साथ सात फेरे लिए थे। उन्होंने अपने इस निर्णय की जानकरी अपने विचार परिवार के संगठनों को भी दी थी। उनका तर्क और पक्ष इतना मजबूत था कि संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी उनके इस निर्णय के साथ हो गए।

सुशील जी का विवाह और अटल जी की यादें

स्मरण है 13 अप्रैल 1986 को सुशील जी ने जेसी जी के साथ पवित्र अग्नि के सात फेरे लिए थे। उस विवाह के हमारे प्रिए नेता अटल बिहारी वाजपेयी भी साक्षी बने थे। इतना ही नहीं, उस शुभअवसर पर अटलजी ने स्वजनों और उनके परिवार के लोगों के बीच अपना भाव भी व्यक्त किया था। उन्होंने हंसते हुए हुए कहा था कि ‘आशीर्वाद देने के लिए ऐसे लोग बुलाए जा रहे हैं, जो कभी विवाह के बंधन में बंधे ही नहीं। इसलिए मैं आशीर्वाद देने की औपचारिकता नहीं करूंगा, मैं इस अवसर पर अपना आनंद प्रकट कर रहा हूं। यह एक अनूठा प्रसंग बन गया है। उत्तर और दक्षिण का मिलन हो रहा है। अंतरप्रांतीय, अंतरभाषीय, अंतर उपासना पद्धतीय इस विवाह में वधू केरल की है। केरल के निकट ही कुमारी कन्या सदियों से साधना करती रही है। पाटलिपुत्र हिमालय से जुड़ा हुआ है, हिमालय के सिर पर कन्याकुमारी की दृष्टि रही है। यह प्रेम पहले हुआ है, विवाह बाद में हुआ है। विवाह के बाद प्रेम हो जाए वो भी ठीक है, लेकिन अगर प्रेम की परिणति विवाह में हो जाए तो बहुत अच्छा। मैं बधाई देना चाहता हूं।’ उसी समय अटलजी ने सुशील मोदी को राजनीतिक क्षेत्र में आकर काम करने का निमंत्रण दिया था। सुशील मोदी और जेसी मोदी का यह विवाह एक आदर्श विवाह था क्योंकि इन दोनों ने अपने-अपने धर्म में बने रहकर वैवाहिक जीवन व्यतीत करने का संकल्प लिया था।

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कार्यों को सोचविचार कर पूर्णता से अंजाम देना

उनके विवाह का जिक्र करते हुए हम यह बताना चाहते हैं कि वे कोई भी काम पूर्णतः सोचविचार कर करते थे। एकबार तय कर लेने के बाद वे फिर पीछे नहीं हटते थे। राजनीतिक क्षेत्र में आए और पटना मध्य विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर विजयी हुए। नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनका कार्यकाल अपने आप में ऐतिहासिक है। उन्होंने निर्भीकता से सरकार की कमियों को उजागर किया। चारा घोटाला को लेकर उन्होंने सदन से लेकर न्यायालय तक जो संघर्ष किया वह असाधरण है। उस समय की सरकार अपने विरोधियों का दमन करने के लिए किसी हद तक जा सकती थी। सरकार की कमियों को उजागर करने के कारण उन पर कई बार हमले भी हुए थे। लेकिन, इसके बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं माना। उनके कारण कई बड़े घोटाले उजागर हुए थे। न्यायालय से दोषियों को सजा भी मिली थी। उन्हें सरकार चलाने का जब मौका मिला तब उन्होंने इस कार्य में भी कई मानक स्थापित किये।

(बातचीत पर आधारित)

TAGGED: नंद किशोर यादव, निडर, निर्भीक, नेता प्रतिपक्ष, विधानसभा अध्यक्ष, सुशील मोदी
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