केंद्रीय कैबिनेट की आज बुधवार को हुई बैठक में मोदी सरकार ने बिहार के चुनावों से पहले एक बड़ा फैसला लिया। केंद्र सरकार ने देश में जाति जनगणना करवाने का फैसला किया है। विपक्षी दलों की तरफ से लंबे समय से इसकी मांग की जा रही थी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार सरकार पर इसे लेकर हमलावर थे। भारत में जाति जनगणना की मांग काफी पुरानी रही है। बिहार चुनाव से पहले इसे मास्टर स्ट्रोक के तौर पर देखा जा रहा है। बिहार में महागठबंधन के सरकार के दौरान नीतीश कुमार की कैबिनेट ने जातिगत सर्वे करवाया था। इसके बाद से देश भर में इसे करवाने की मांग हो रही थी।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने आज हुए कैबिनेट बैठक के बाद कहा कि सामाजिक ताने-बाने को ध्यान में रखकर संविधान में स्पष्ट व्यवस्था के मद्देनजर सरकार ने देशभर में जातिगत जनगणना करवाने का ये फैसला लिया गया है। केंद्रीय मंत्री वैष्णव ने कहा कि 1947 से जाति जनगणना नहीं की गई। मनमोहन सिंह ने जाति जनगणना की बात कही थी। कांग्रेस ने जाति जनगणना की बात को केवल अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया। गौरतलब है कि कुछ राज्यों में पहले ही जातिगत जनगणना कराई जा चुकी है। बिहार, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों ने अपने स्तर पर जाति आधारित सर्वेक्षण किए हैं, जिनके परिणामों ने सामाजिक और राजनीतिक चर्चाओं को नई दिशा दी है।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कैबिनेट ब्रीफिंग में बताया कि राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने आज फैसला किया है कि जातिगत गणना को आगामी जनगणना में शामिल किया जाएगा। यह कदम सामाजिक समावेशिता और नीतिगत योजनाओं को और प्रभावी बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण होगा। उन्होंने कहा, कुछ राज्यों ने जातियों की गणना के लिए सर्वेक्षण किए हैं। जबकि कुछ राज्यों ने यह अच्छा किया है, कुछ अन्य ने केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से गैर-पारदर्शी तरीके से ऐसे सर्वेक्षण किए हैं। ऐसे सर्वेक्षणों ने समाज में संदेह पैदा किया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजनीति से हमारा सामाजिक ताना-बाना खराब न हो, सर्वेक्षण के बजाय जाति गणना को जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए।