Patna: Israel मध्य पूर्व का वो देश है जो 1948 में संयुक्त राष्ट्र संघ के एक प्रस्ताव से अस्तित्व में तब आया जब ब्रिटिश मैंडेट के तहत फ़िलीस्तीनी क्षेत्र को दो भागों में विभाजित कर दिया गया.20वीं सदी की शुरू में यूरोप में यहूदियों को निशाना बनाया जा रहा था. तब यहूदी लोगों के लिए अलग देश की मांग ज़ोर पकड़ने लगी.भूमध्य सागर और जॉर्डन नदी के बीच पड़ने वाला फ़लस्तीन का इलाक़ा मुसलमानों, यहूदियों और ईसाई धर्म, तीनों के लिए पवित्र माना जाता था.इस इलाक़े पर ऑटोमन साम्राज्य का नियंत्रण था और ये ज़्यादातर अरबों और दूसरे मुस्लिम समुदायों के क़ब्ज़े में रहा.हालांकि यहां यहूदी लोग भी बड़ी संख्या में आकर बसने लगे लेकिन स्थानीय लोगों में उन्हें लेकर विरोध शुरू हो गया.
इतिहास सदियों पुराना है
अब आते है पहले विश्व युद्ध के तरफ तो इसके बाद ऑटोमन साम्राज्य का विघटन हो गया और ब्रिटेन को संयु्क्त राष्ट्र संघ की ओर से फिलिस्तीन के प्रशासन को अपने नियंत्रण में लेने की मंज़ूरी मिल गई.दूसरे विश्व युद्ध और नाज़ियों के हाथों यहूदियों के व्यापक जनसंहार के बाद यहूदियों के लिए अलग देश की मांग को लेकर दबाव बढ़ने लगा.उस वक्त ये योजना बनी कि ब्रिटेन के नियंत्रण वाले इलाक़े को फ़लस्तीनियों और यहूदियों के बीच बांट दिया जाएगा.इसराइल में रहने वाले यहूदी धर्म के मानने वालों का इतिहास सदियों पुराना है. इनकी संख्या वहां 90 लाख से अधिक यानी क़रीब 74 फ़ीसद है. इनमें से क़रीब 80% लोगों का जन्म इसी देश में हुआ, जबकि अन्य 20 फ़ीसद दूसरे देशों से आकर यहां रह रहे हैं. दूसरी तरफ़ इसराइली अरब क़रीब 21 फ़ीसद और अन्य 5 प्रतिशत हैं.
गाज़ा पट्टी की नाकेबंदी कर रखी है
जेरूसलम इसराइल की शक्ति का एक बड़ा केंद्र है जबकि तेल अवीव इसका आर्थिक केंद्र है. देश के सरकार का नेतृत्व प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू के हाथों में है. आइज़ैक हरज़ोग यहां राष्ट्रपति हैं, पर यह एक औपचारिक पद है.यह देश आर्थिक, तकनीकी और सैन्य मामलों में मध्य पूर्व की एक ताक़त है. लेकिन इस देश के इतिहास का अधिकांश हिस्सा फ़लस्तीनियों और अरब देशों के साथ संघर्ष का रहा है.दोनों क्षेत्रों के बीच शांति प्रक्रिया में सबसे बड़ी बाधा की वजहें- एक स्वतंत्र फ़लस्तीनी राष्ट्र के गठन में देरी, वेस्ट बैंक में यहूदी बस्तियां बसाने का काम और फ़लस्तीनी क्षेत्र के आस पास इस्लामी सशस्त्र समूहों के हमले रहे हैं.
अब हमास के विषय में बात करे तो हमास, इसराइल पर हमले करने वाला फ़लस्तीनी क्षेत्र का सबसे बड़ा इस्लामी चरमपंथी समूह है.इसका गठन 1987 की शुरुआत में हुआ था. इसके लड़ाके इज़े-अल-दीन अल-क़ासम ब्रिगेड कही जाती है और उनका मुख्य उद्देश्य फ़िलीस्तीनी राष्ट्र बनाना है.ताक़त और असर पाने के बाद हमास ने 2007 में गाज़ा पट्टी पर नियंत्रण कर लिया और कसम खाई कि वो इसराइल को बर्बाद कर देगा. तब से लेकर अब तक इस चरमपंथी संगठन ने इसराइल के साथ कई बार युद्ध छेड़े हैं.इसराइल पर हमले के लिए हमास अन्य चरमपंथी संगठनों की सहायता भी लेता है.दूसरी तरफ़ इसराइल ने 2007 से ही मिस्र के साथ मिलकर गाज़ा पट्टी की नाकेबंदी कर रखी है.हमास को इसराइल, अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन जैसी महाशक्तियां आतंकवादी गुट कहती हैं.
वेस्ट बैंक और गाजा को फ़िलिस्तीनी क्षेत्र के रूप में जाना जाता है
हमास और इजराइल युद्ध के विषय में समझने से पहले इसको शुरुआत से जानना जरुरी है..वेस्ट बैंक और गाजा का क्षेत्र हमेशा से ही दोनों पक्षों के बीच संघर्ष का मुख्य कारण रहा है. वेस्ट बैंक और गाजा को फ़िलिस्तीनी क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. इसके अलावा पूर्वी येरुशलम और इज़राइल को रोमन काल में फ़िलिस्तीन क्षेत्र का ही हिस्सा माना जाता था.बाइबिल में ये यहूदी साम्राज्यों की भूमि के रूप में भी जाना जाता था जिस कारण यहूदी इसे अपनी प्राचीन मातृभूमि मानते है. जिसे लेकर हमेशा से संघर्ष होता रहता है. इज़राइल को 1948 में एक देश के रूप में मान्यता दी गयी थी. हालाँकि इज़राइल के अस्तित्व को मान्यता न देने वाले आज भी इस क्षेत्र को फिलिस्तीन का हिस्सा मानते है.
हमास एक फिलिस्तीनी उग्रवादी समूह है जो गाजा पट्टी के कुछ क्षेत्रों को अपने नियंत्रण में रखता है. साथ ही वह इस क्षेत्र को एक इस्लामिक स्टेट बनाना चाहता है. हमास साल 2007 से गाजा पर शासन कर रहा है. इसके बीच हमास ने इजराइल के साथ कई संघर्ष किये. इस युद्ध के बीच इज़राइल ने भी हमास पर कई जवाबी हमले किये है. हमास समूह को इज़राइल, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और ब्रिटेन के साथ-साथ अन्य देशों ने एक आतंकवादी समूह के रूप में घोषित किया है. वहीं हमास को ईरान का समर्थन प्राप्त है जो उसे हथियार तथा प्रशिक्षण मुहैया कराता रहता है.वहीँ , गाजा पट्टी इज़राइल, मिस्र और भूमध्य सागर के बीच 41 किमी लंबा और 10 किमी चौड़ा क्षेत्र है. यहां लगभग 2.3 मिलियन लोग रहते है जो दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रो में से एक है.
इजराइल और फिलिस्तीन विवाद का इतिहास काफी पुराना है
इसराइल और हमास के कनफ्लिक्ट को देखें तो इजराइल और फिलिस्तीन विवाद का इतिहास काफी पुराना है. प्रथम विश्व युद्ध में ओटोमन साम्राज्य की हार के बाद, ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर नियंत्रण हासिल कर लिया, जिसमें यहूदी अल्पसंख्यक और अरब बहुमत रहते थे. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने ब्रिटेन को फिलिस्तीन में एक यहूदी मातृभूमि बनाने का काम सौंपा, जिससे दोनों समूहों के बीच तनाव बढ़ गया. 1920 और 1940 के दशक में, फिलिस्तीन में यहूदी आप्रवासियों की संख्या में काफी वृद्धि हुई, क्योंकि कई यहूदी यूरोप में उत्पीड़न से भाग गए. यहूदियों और अरबों के बीच घर्षण, साथ ही ब्रिटिश शासन का प्रतिरोध तेज हो गया. 1947 में, संयुक्त राष्ट्र ने फिलिस्तीन को अलग-अलग यहूदी और अरब राज्यों में विभाजित करने के लिए मतदान किया, जिसमें यरूशलेम को अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन के अधीन रखा गया. यहूदी नेतृत्व ने योजना को स्वीकार कर लिया, लेकिन अरब पक्ष ने इसे अस्वीकार कर दिया और इसे कभी लागू नहीं किया गया.
इजराइल और फिलिस्तीन कई झड़पों में शामिल रहे
पिछले कुछ वर्षों में, इजराइल और फिलिस्तीन कई झड़पों में शामिल रहे हैं, कुछ मामूली, कुछ विनाशकारी, जिसके कारण हजारों लोगों की मौत हुई. हमास को हथियार प्राप्त करने से रोकने के प्रयास में इजराइल और मिस्र ने गाजा की सीमाओं पर कड़ा नियंत्रण बनाए रखा है. इससे गाजा में मानवीय संकट पैदा हो गया है, कई लोग भोजन और पानी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. गाजा और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनियों का दावा है कि वे इजरायली कार्यों के कारण पीड़ित हैं, जैसे कि गाजा की नाकाबंदी, वेस्ट बैंक बाधा का निर्माण और फिलिस्तीनी घरों का विनाश शामिल है.
इस युद्ध का अंत इतना जल्दी नहीं होगा
मई 2021 में, इजरायली पुलिस ने यरूशलेम में अल-अक्सा मस्जिद पर छापा मारा, जो इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है, जिससे इजरायल और हमास के बीच 11 दिनों का युद्ध शुरू हो गया, जिसमें 200 से अधिक फिलिस्तीनी और 10 से अधिक इजरायली मारे गए. साल 2022 में इजरायली शहरों में कई आतंकवादी हमलों के बाद, इजरायली बलों ने इजरायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक में कम से कम 166 फिलिस्तीनियों को मार डाला और ऐसा लगता है कि सदियों से चली आ रही इस युद्ध का अंत इतना जल्दी नहीं होगा और ये मुद्दा यूं ही कभी मीडिया के सुर्ख़ियों में रहेगा तो कभी सोशल मीडिया x पर ट्रेंड करेगा.