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संस्कृति

अनादि हैं गयाजी

Swatva Desk
Last updated: September 15, 2025 4:09 pm
By Swatva Desk 192 Views
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8 Min Read
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Swami Venkatesh Prapannacharya ji - YouTube
गया पीठाधीश्वर जगदगुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री वेंकटेश प्रपन्नाचार्य

अनादि काल से करोड़ों लोगों के हृदय में, मन में, वाणी में गदाधर भगवान विष्णु की यह पुण्य नगरी ‘गयाजी’ नाम से स्थापित हैं। हमारे पितर ऋषियों की कृपा से जब भारत का वातावरण सनातन धर्म और अध्यात्म के अनुकूल होने लगा तब सरकार के दस्तावेज में भी गया नगर का नाम ‘गयाजी’ हो गया। इसका अर्थ यह नहीं कि गयाजी 2024 में हुए। गयाजी तो नित्य और अनादि है।

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पांच सौ वर्षों के प्रयत्न के बाद अयोध्या में प्रभु श्रीराम के जन्म स्थान को लेकर सारे भ्रम दूर हो गए है। इसके बाद राघवेन्द्र सरकार की प्रभा और कृपा से सम्पूर्ण विश्व आलोकित और आह्लादित होने लगा है। प्रकृति अनुकूल होने लगी है। ऐसे में गयाजी के प्राचीन गौरव की पुनर्स्थापना का समय भी अब बहुत नजदीक दिखने लगा है।

हमारी आर्ष संस्कृति का उद्घोष है कि जहां विष्णु का मूल है वहीं सनातन है। सनातन भारत की आत्मा हैं। गयाजी में भगवान विष्णु अनंतकाल से विराजमान है। इस प्रकार गयाजी भारत की आत्मा है।

भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है जो सृष्टि के प्रारंभ से ब्रह्मज्ञान के प्रकाश में रमण करता है। ज्ञान के प्रकाश में सारे भ्रम नष्ट हो जाते हैं। चारांे ओर वही परमात्मा दृष्टिगत होने लगते हैं। ज्ञान में रत रहने वाले ऐसे भारत के पितर ऋषियों ने वसुधैव कुटुम्बकम्, सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः जैसे अनेक सूत्र दिए हैं जिससे विश्व में शांति, सद्भाव, आनंद की स्थापना होती रही है। अशांत विश्व आज भी शांति के लिए भारत की ओर ही देख रहा है।

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आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान के प्रकाश में जब माया और अविद्या का प्रभाव नष्ट हो जाता है तब राजकुमार सिद्धार्थ का कायांतरण होते देर नहीं लगता। वे गौतम बुद्ध बनकर सम्पूर्ण विश्व के मानव को भारत के धर्म, संस्कार और संस्कृति से अवगत कराने निकल पड़ते हैं। सिद्धार्थ के गौतम बुद्ध बनने की यह घटना धर्मसत्ता के समक्ष राजसत्ता के प्रभाहीन होने का एक उदाहरण है।

भारत में इतिहास के नाम पर बालू की ढेर को पहाड़ सिद्ध करने के उपक्रम खूब चले हैं। इतिहास के नाम पर मनगढ़ंत कथाओं को प्रस्तुत करने वालों ने यह कहने की भी दुस्साहस की है कि गौतम बुद्ध के कारण गयाजी की ख्याति है। इस प्रकार की बातें अज्ञानता और बुद्धिहीनता की पराकाष्ठा की ओर संकेत करती हैं। इसके साथ ही यह भारत के प्रामाणिक इतिहास को नष्टकर भारत को कमजोर करने वाले नैरेटिव की स्थापना का एक दुष्टतापूर्ण बौद्धिक प्रयास भी है। हम सनातनियों के लिए रामायण, महाभारत हमारे इतिहास ग्रंथ हैं। पुराणों से हमंे अपने राष्ट्र के इतिहास और भारत की समृद्ध ज्ञान परम्परा का बोध होता है। इसे नकारते हुए कपोलकल्पना को इतिहास बताना भारत की आत्मा एवं आत्मविश्वास पर घातक प्रहार है। गयाजी भारत की ज्ञान परपम्परा, अध्यात्म एवं धर्म के प्रमुख केंद्र हैं। इसीलिए विदेशी विचारधारा की कठपुतली बने कथित बुद्धिजीवियों ने यहां के इतिहास को भ्रामक व काल्पनिक आख्यानों से आच्छादित कर देने का प्रयास किया है। इस प्रयास में वे बहुत हद तक सफल भी हुए हैं। लेकिन, भारत के लोग और सनातनी चिंतक विचारकों की ओर से सत्य को सामने लाने के प्रसास तेज कर दिए गए हैं।

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बुद्ध से बहुत पहले राम, परशुराम, प्रहलाद, वामन, कृष्ण बलराम हुए जिन्होने अनादि तीर्थ गयाजी में न केवल वास किया बल्कि यहां पितृ यज्ञ कर भारत की सांस्कृतिक परम्परा को आगे बढ़ाया था। हमारे प्राचीन ग्रंथों में इसके प्रमाण भरे पड़े हैं। इन साहित्यिक स्रोतों से मिलने वाली जानकारियां पुरातात्विक प्रमाणों से संपुष्ट भी होती हैं। इसके बावजूद बुद्ध, बोधगया और गयाजी को लेकर झूठ-अफवाह फैलाये जाते रहे हैं। वास्तव में यह भारत को निस्तेज करने के लिए शुरू की गयी विचारधारा का संघर्ष है जिसके पीछे कट्टर मजहबी और इवेंजेलिकल शक्तियां एकसाथ मिलकर खड़ी है। इनको वैश्विक बाजारवादी शक्तियां संसाधन से मदद कर रही हैं। इस प्रकार गया और बोधगया में संघर्ष की काल्पनिक कहानियां गढ़ने वाले वास्तव में एक सांस्कृतिक विभ्रम निर्माण कर एक संघर्ष की पृष्ठभूमि तैयार करने का प्रयास कर रहे हैं।

idol of gautam buddha in one of the places where he use to meditate in  early days in bodh gaya, india

गयाजी की कुलदेवी गायेश्वरी हैं। मातृदेवो भव, पितृदेवो भव, आचार्य देवो भव तब अतिथि देवो भव गयाजी का संदेश है। जब सनातनी सर्वेभवन्तु सुखिनः मंत्र का उच्चारण करते हैं तब उनकी दृष्टि संकुचित नहीं होती है। वह अपने परिवार के साथ ही अपने पड़ोसी, अपने गांव-शहर, जिले, प्रदेश, देश और सम्पूर्ण विश्व के जीवों की सुख की कामना कर रहे होते है।

गौतमबुद्ध से बहुत पहले धर्मराज युधिष्ठीर गयाजी के धर्मारण्य में आए थे। महाभारत और पुराणों में वर्णित इतिहास से पता चलता है कि गयाजी की धर्मारण्य वेदी ही वर्तमान का बोध गया है। धर्मारण्य में युधिष्ठिर को जो बोध हुआ था, वहीं गौतम बुद्ध को हुआ।

गयाजी में तो सभी जीवों के कल्याण की कामना से कर्मकांड होते हैं। विश्व के किसी भी भाग में मां के गर्भ से जन्म लेने वाला मानव, किसी भी पंथ को मानने वाला मानव अपने पूर्वजों की आत्मा की शंति के लिए गयाजी में निवास कर कर्मकांड कर सकता है। इस प्रकार गयाजी का कर्मकांड सार्वभौम है। सनातन से स्वयं को अलग मानने वाले सम्प्रदाय के विदेशी लोगों ने भी गया में पिंडदान कर शांति का अनुभव किया है।

सभी पंथ, सम्प्रदाय सनातन से निकले हैं लेकिन कोई पंथ स्वयं को सनातन नहीं कह सकता। सनातन सम्पूर्ण ब्रह्मांड है जिसमें पंथ एक ग्रह नक्षत्र की तरह होते हैं।

भारतीय विचारधारा को मानने वाली सक्षम सरकार आने के बाद न्याय मिलने में देर नहीं हुआ। ऐसे ही सक्षम और सशक्त सरकार के कारण त्रिलोकन्यारी नगरी अध्योध्याजी का नवीकरण हुआ। आधुनिक सुविधाओं के कारण बाहर से आने वाले लाखों-करोड़ों भक्तों को अब परेशानी का सामना नहीं करना पड़ रहा है। ऐसे में गयाजी के भी भौगोलिक और भौतिक विकास की आशा जगी है। इस दिशा में काम शुरू हो गए हैं।

गयाजी को लेकर सनातनियों में एक भ्रम है कि जीवन के अंतिम समय में गयाजी जाना चाहिए। यह भ्रम दूर होना चाहिए। गयाजी में युवाओं को आवश्य आना चाहिए क्योंकि इस तीर्थ में जीवन के संघर्ष में विजयी बनाने का समर्थ्य प्रदान करने की क्षमता है। यहां की मिट्टी व वातावरण में आध्यातिमक उर्जा है जो मनुष्य को अवसाद से मुक्ति दिलाता है। गौतमबुद्ध को इसी पुण्य धरा पर दुखों से मुक्ति के मार्ग का ज्ञान हुआ था।

TAGGED: गयाजी, गयाजी का महात्म्य, गौतमबुद्ध, बोधगया, बोधगया मंदिर, भगवान विष्णु, सांस्कृतिक
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