अरवल – नए क्रिमिनल कोड के खिलाफ़ देशव्यापी प्रतिवाद दिवस के तहत आज अरवल में विशाल विरोध मार्च निकाला गया ।माले विधायक महानंद सिंह और माले जिला सचिव जितेन्द्र यादव के नेतृत्व में जिला कार्यालय से प्रतिवाद दिवस विभिन मार्ग होते हुए प्रखंड परिसर पहुंचा और बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के पास सभा में तब्दील हो गया।
सभा को महानंद सिंह ने संबोधित करते हुए कहा कि मोदी सरकार के नए क्रिमिनल कोड नागरिक स्वतंत्रताओं और अधिकारों का हनन करने और सरकारी दमन बढ़ाने के औजार है. इन पर तत्काल रोक लगनी चाहिए. अंग्रेजों के जमाने से भी ज्यादा खतरनाक हैं ये नए आपराधिक कानून. हमने राष्ट्रपति से इन कानूनों को रद्द करने की मांग की है। कानून के जरिए सरकार देश में इमरजेंसी थोप रही है।
समाज के विभिन्न तबको और न्याय पसंद बिरादरी द्वारा तीन नए फौजदारी संहिताओं, भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम को लेकर गम्भीर चिंताएं हैं. यह तीनों संहिताएं क्रमशः भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया सहित 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 का स्थान लेगी, जो मूलभूत नागरिक स्वतंत्रताएं-बोलने की स्वतंत्रता, हक-अधिकार के लिय आवाज उठाने, प्रदर्शन की स्वतंत्रता और अन्य नागरिक अधिकारों को अपराध की श्रेणी में लाने वाले कठोर कानून हैं। नए नामकरण के साथ कुख्यात राजद्रोह कानून भारतीय दंड संहिता आईपीसी की धारा 124 ए को कायम रखा गया है. भूख हड़ताल को भी अपराध बना दिया गया है।
पुलिस को अनियंत्रित शक्तियां दे दी गई हैं जिनका देश में नागरिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. नागरिक सुरक्षा संहिता कानून के तहत अब जनता के सवालों को लेकर सरकार के खिलाफ आवाज भी नहीं उठा सकते है. आंदोलन भी नहीं कर सकते है. सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया पर पोस्ट भी नहीं डाल सकते है. अन्यथा देशद्रोह का मुकदमा हो सकता है।
इसका मतलब है भाजपा सरकार अब प्रशासन के जरिए दमन कर जनता की आवाज को खामोश कर देना चाहती है. किसी गिरफ्तार आरोपी का नाम पता और अपराध की प्रवृत्ति का हर पुलिस स्टेशन और जिला मुख्यालय पर भौतिक एवं डिजिटल प्रदर्शन प्रमुख रूप से किया जाएगा. ये प्रावधान जनता के अधिकार और किसी व्यक्ति की मानवीय गरिमा के हनन के अलावा कुछ नहीं है. इसके जरिए व्यक्तियों को पुलिस द्वारा निशाना बनाए जाने को आसान करता है. सबसे गंभीर बात यह है कि पुलिस अभिरक्षा की अवधि को वर्तमान 15 दिन से बढ़कर 60 या 90 दिन कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि फौजदारी मामलों में पहले से ही पूरे भारत में 4 करोड़ मुकदमे लंबित है, उसके बीच में इन तीन कानून को लागू करना दो समानांतर कानूनी व्यवस्थाएं उत्पन्न करेगा जिससे और बैकलॉग बढ़ेगा तथा पहले से अत्यधिक बोझ झेल रहे न्यायिक तंत्र पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि भारत के न्याय ढांचे को सुधार की अधिक जरूरत है लेकिन तीन फौजदारी कानून इसका जवाब नहीं है. यह कारण ही हड़बड़ी में बिना चर्चा या संसदीय परख के ऐसे समय में पास किए गए जबकि 146 विपक्षी सांसद निलंबित कर दिया गया था।
इसलिए जरूरी है कि केंद्र सरकार इन तीन फौजदारी कानून को लागू करने का निर्णय स्थगित करे और उन्हें संसद में फ़िर से पेश करें ताकि इनकी सही जांच-परख हो सके और इन पर चर्चा हो सके. सभा को भाकपा-माले जिला कमिटी सदस्य रामकुमार सिन्हा, करपी प्रखंड सचिव मिथलेश यादव,नगर सचिव नंद किशोर कुमार, जिला कमिटी सदस्य सुएब आलम, मधेसर प्रसाद , सुनील कुमार, बादशाह प्रसाद, त्रिभुवन शर्मा , रामविनेश यादव उर्फ त्यागी जी सूर्यनाथ वर्मा, उमैर अंसारी, सैकड़ो कार्यकर्ता मौजूद थे।
देवेंद्र कुमार की रिपोर्ट