ओम बिरला दूसरी बार लोकसभा स्पीकर चुन लिये गए हैं। उन्हें ध्वनिमत से 18वीं लोकसभा का नया स्पीकर चुना गया। ध्वनिमत पर विपक्ष ने डिविजन की मांग नहीं की। ओम बिरला के नाम पर विपक्ष का विरोध न करना मोदी सरकार के लिए भी किसी सरप्राइज से कम नहीं रहा। लेकिन कांग्रेस नीत विपक्ष ने ऐसा क्यों किया? मुल्क की बदलती राजनीति जो पहले समावेशी हुआ करती थी, लोकसभा स्पीकर के चुनाव में यह तार—तार कैसे हो गई। चिंता यह कि इस दौरान कांग्रेस का राजनीतिक खौफ और कन्फ्यूजन भी पर्दे के बाहर आ गया क्योंकि ध्वनिमत पर डिविजन की मांग नहीं की गई।
क्या है कांग्रेस और बाकी विपक्ष का खौफ
सूत्रों के हवाले से ये जानकारी पहले ही सामने आ गई थी कि विपक्ष संभवतः स्पीकर चुनाव में वोटिंग के लिए दबाव नहीं बनाएगा। अगर ध्वनिमत से चुनाव परिणाम आ जाता है तो उसे मान लिया जाएगा। कल मंगलवार की रात मल्लिकार्जुन खरगे के घर इंडिया गठबंधन की बैठक हुई थी। बैठक में रामगोपाल यादव और कुछ अन्य नेताओं ने ये प्रस्ताव रखा था। नेताओं का कहना था कि इंडिया गठबंधन के पास संख्या बल नहीं है। वहीं इंडिया गठबंधन के कुछ सांसद गैर हाज़िर भी रहेंगे। ऐसे में अगर वोटिंग हुई तो इंडिया गठबंधन की संख्या और कम दिखेगी, जबकि एनडीए संख्याबल में बेहद मज़बूत दिखेगा।
स्पीकर पर तार—तार हुआ विपक्षी गठबंधन
स्पीकर के चुनाव में परंपरा तो यही रही है कि सरकार जिस नाम को आगे बढ़ाती है, उसपर प्रतिपक्ष निर्विरोध सहमति देता है। लेकिन 42 वर्षों बाद यह परंपरा टूट गई और विपक्ष ने एनडीए सरकार के प्रत्याशी ओम बिरला के मुकाबले के सुरेश को मैदान में उतार दिया। हालांकि विपक्ष को तब झटका लगा जब उसके 5 सदस्य बतौर संसद सदस्य शपथ नहीं ले पाये। इसके अलावा तृणमूल कांग्रेस ने भी विपक्ष के कैंडिडेट चयन में उनकी राय न लेने पर इंडिया गठबंधन से इतर रुख रखने का संकेत दे दिया। इसके अलावा विपक्ष को एक और झटका लगा जब आंध्र की वाईएसआर कांग्रेस ने एनडीए प्रत्याशी को समर्थन का ऐलान कर दिया।
दांव पर राहुल की इमेज बिल्डिंग…
इधर आज जब स्पीकर पद पर चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई तो विपक्ष ने ध्वनिमत पर डिविजन की मांग नहीं की। इसके बाद ध्वनिमत से ही बिरला को लोकसभा का अध्यक्ष चुन लिया गया। जबकि उम्मीद यही की जा रही थी कि विपक्ष वोटिंग की मांग करेगा और फिर पूरी प्रक्रिया के तहत मतदान होगा। लेकिन अचानक ट्विस्ट तब आया जब ध्वनिमत से बिरला को अध्यक्ष चुने जाने पर विपक्ष ने वोटिंग की मांग ही नहीं रखी और इसे मान लिया। इस सारी प्रक्रिया के दौरान एक बात तो स्पष्ट हो गया कि विपक्ष जहां इस कन्फ्यूजन का शिकार रहा कि वोटिंग के दौरान उसकी एकता कहीं बेपर्दा न हो जाए। जबकि कांग्रेस इस डर से खौफजदा हो गई कि राहुल गांधी की इमेज बिल्डिंग वाली उनकी मुहिम की पोल न खुल जाए।