प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज के छात्र, चिकित्सक और शिक्षक के रूप में विशिष्ट कीर्तिमान स्थापित करने वाले डॉ. पारस नाथ सिन्हा का सम्पूर्ण जीवन सेवा के लिए समर्पित था। उनका धर्म सेवा ही था। वैसे तो वे नेत्र रोग के प्रसिद्ध चिकित्सक थे। लेकिन, एक चिकित्सक के साथ ही उन्होंने खतरनाक श्वांस व संक्रमण रोग से पीड़ित लोगों के लिए पटना में ही एक शोध संस्थान की स्थापना की परिकल्पना की थी। संस्थान की स्थापना और उसे मूर्त रूप देने का उन्होंने न केवल संकल्प लिया था बल्कि इसके लिए अपना समय, श्रम और धन सब कुछ लगाया।
यह उनकी कड़ी मेहनत, समर्पण, अथक प्रयास तथा राज्य सरकार और केंद्र सरकार, आईसीएमआर, सीएसआईआर तथा कई अन्य सोसायटियों के साथ निरंतर अनुनय-विनय और संपर्क का ही परिणाम था कि पटना के अगम कुआं में राजेंद्र मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की स्थापना हुई। वर्तमान में यह संस्थान चिकित्सा शिक्षा प्रदान करने तथा शोध करने के लिए देश का एक बहुत प्रसिद्ध चिकित्सा संस्थान है। यह संस्थान आईसीएमआर की एक इकाई के रूप में कार्य कर रहा है। कोरोना के समय इस संस्थान ने जांच और लोगों की जान बचाने में बहुत ही सराहनीय भूमिका निभायी थी।
डॉ. पारस नाथ सिन्हा का जन्म 15 जनवरी 1904 को बिहार (अब झारखंड) के पलामू जिले के मंगलपुर गांव में हुआ था। उन्होंने 1929 में पीएमसीएच से एमबीबीएस, 1938 में लंदन से डीओएमएस, 1939 में लंदन से डीएलओ किया। उन्हें 1939 में पीएमसीएच में मानद सर्जन के पद पर नियुक्त किया गया था। 1940-43 में उन्होंने पटना मेडिकल कालेज में नेत्र एवं ईएनटी के व्याख्याता के रूप में कार्य किया (1944-47) और 1948-1960 तक पटना मेडिकल कॉलेज में नेत्र एवं ईएनटी के प्रोफेसर रहे। वे पटना विश्वविद्यालय के सीनेट के सदस्य (1952-1960), पटना विश्वविद्यालय के सिंडिकेट के सदस्य (1952-1956) और भारत के कई मेडिकल कॉलेजों में नेत्र एवं ईएनटी में स्नातक और स्नातकोत्तर के परीक्षक थे। उन्होंने मॉन्ट्रियल में नेत्र रोग पर आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया।
उन्होंने पेरिस में ओटोरहिनोलेरिंगोलोजी के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, भारत के प्रतिनिधि के रूप में नई दिल्ली में नेत्र पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, भारत में प्रतिनिधि के रूप में टोक्यो में ओटोरहिनोलेरिंगोलोजी के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लिया। उन्होंने ग्वालियर में आयोजित भारतीय ओटोरहिनोलेरिंगोलोजी सम्मेलन की अध्यक्षता की और सोसायटी के संस्थापक सदस्य, वे नेत्रविहिन संघ, पटना के अध्यक्ष तथा राजेंद्र मेमोरियल सोसाइटी ऑफ मेडिकल साइंसेज के सचिव थे। वे एक प्रसिद्ध ईएनटी सर्जन, एक बहुत अच्छे शिक्षक तथा शोध में गहरी रुचि रखने वाले व्यक्ति थे। डा.सिन्हा मानवीय गुणों से परिपूर्ण थे। वे बहुत दयालु, मददगार तथा उदार थे। दृष्टिहीन सहायता शिविरों में उनकी बहुत रुचि थी। अपनी सेवानिवृत्ति के पश्चात उन्होंने 1960 में दानापुर में गरीबों के लिए नेत्र चिकित्सालय खोला तथा अपना जीवन गरीब मरीजों की सेवा में समर्पित कर दिया। उनके देहांत के बाद उनके पुत्र डा.आरएन सिन्हा ने उस अस्पताल में गरीबों के निःशुल्क चिकित्सा और उपचार की परम्परा जारी रखा था। वर्तमान में वह अस्पताल एक न्यास के तहत संचालित हो रहा है।