नवादा : नगर समेत जिले में 26 मई को वट सावित्री की पूजा की गयी। अहले सुबह से ही विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री की पूजा करने में जुटी रही और बरगद के वृक्ष में कच्चा सूत बांधकर अपनी मनोकामना पूर्ण होने के लिए कथा का श्रवण किया। बता दें कि सनातन धर्म में वट सावित्री व्रत को विशेष महत्वपूर्ण माना गया है। मान्यता है कि वट सावित्री व्रत के दिन सावित्री ने अपने तप व संकल्प से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे। बताते चलें कि ज्येष्ठ मास अमावस्या तिथि पर वट सावित्री व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने से सुहागिन महिलाओं की अखंड सुहाग की प्राप्ति होती है। साथ ही पति-पत्नी के रिश्ते में मधुरता आती है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा-अर्चना करने का विशेष महत्व है।
क्या है सावित्री – सत्यवान की कथा:-
सावित्री के सतीत्व के आगे जब डर से नहीं आए यमराज के दूत…फिर क्या हुआ… द्रौपदी से आखिर क्यों की गई तुलना:.., सती सावित्री ने पतिव्रता धर्म की शक्ति से यमराज को भी पराजित कर अपने मृत पति सत्यवान को जीवनदान दिलाया। सच्ची निष्ठा, धैर्य और धर्मपालन से असंभव भी संभव हो सकता है।
सतीत्व की शक्ति
जीवन जब उसूल से जिया जाय तो फिर कोई उसका बाल बांका नहीं कर पाता। इतिहास में उसका सशक्त उदाहरण हैं सती सावित्री। महाभारत के वनपर्व में इनकी कथा मिलती है। जब युधिष्ठिर मार्कण्डेय ऋषि से पूछते हैं कि क्या कभी कोई और स्त्री थी जिसने द्रौपदी जितना भक्ति प्रदर्शित की, तब मार्कण्डेय ऋषि उनको विस्तार से सावित्री की कथा सुनाते हैं। सावित्री राजर्षि अश्वपति की एकमात्र कन्या थी। अपने वर की खोज में जाते समय उसने निर्वासित और वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान् को पतिरूप में स्वीकार कर लिया। जब देवर्षि नारद ने उनसे कहा कि सत्यवान की आयु केवल एक वर्ष की ही शेष है तो सावित्री ने बड़ी दृढता के साथ कहा- जो कुछ होना था सो तो हो चुका।
माता-पिता ने भी बहुत समझाया, परन्तु सती अपने धर्म से नहीं डिगी! सावित्री का सत्यवान् के साथ विवाह हो गया। सत्यवान् बडे गुणी, धर्मात्मा, माता-पिता के भक्त एवं सुशील थे। सावित्री राजमहल छोड़कर जंगल की कुटिया में आ गयी। आते ही उसने सारे वस्त्राभूषणों को त्यागकर सास-ससुर और पति जैसे वल्कल के वस्त्र पहनते थे वैसे ही पहन लिये और अपना सारा समय अपने अन्धे सास-ससुर की सेवा में बिताने लगी। सत्यवान् की मृत्यु का दिन निकट आ पहुँचा।
सत्यवान् अगिन्होत्र पूजा के लिये जंगल में लकडियाँ काटने जाया करते थे। आज सत्यवान् के महाप्रयाण का दिन है। सावित्री चिन्तित हो रही है। सत्यवान् कुल्हाड़ी उठाकर जंगल की तरफ लकडियाँ काटने चले। सावित्री ने भी साथ चलने के लिये अत्यन्त आग्रह किया। सत्यवान् की स्वीकृति पाकर और सास-ससुर से आज्ञा लेकर सावित्री भी पति के साथ वन में गयी। सत्यवान लकडियाँ काटने वृक्षपर चढे, परन्तु तुरंत ही उन्हें चक्कर आने लगा और वे कुल्हाडी फेंककर नीचे उतर आये। पति का सिर अपनी गोद में रखकर सावित्री उन्हें अपने आंचल से हवा करने लगी।
थोडी देर में हीं यमराज उपस्थित हुए। काले रंग के सुन्दर अंगोंवाले, हाथ में फाँसी की डोरी लिये हुए, सूर्य के समान तेजवाले एक भयंकर देव-पुरुष को देखा। उसने सत्यवान् के शरीर से फाँसी की डोरी में बँधे हुए अँगूठे के बराबर पुरुष को बलपूर्वक खींच लिया। सावित्री ने अत्यन्त व्याकुल होकर आर्त स्वर में पूछा- हे देव! आप कौन हैं और मेरे प्रिय इन हृदयधन को कहाँ ले जा रहे हैं? उस पुरुष ने उत्तर दिया- हे तपस्विनी! तुम पतिव्रता हो, अत: मैं तुम्हें बताता हूँ कि मैं यम हूँ और आज तुम्हारे पति सत्यवान् की आयु क्षीण हो गयी है, अत: मैं उसे ले जा रहा हूँ। तुम्हारे सतीत्व का तर्ज इतना था कि तुम्हारे सामने मेरे दूत नहीं आ सके, इसलिये मैं स्वयं आया हूँ। यह कहकर यमराज दक्षिण दिशा की तरफ चल पड़े।
सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे जाने लगी। यम ने बहुत मना किया। सावित्री ने कहा- जहाँ मेरे पतिदेव जाते हैं वहाँ मुझे जाना ही चाहिये। यह सनातन धर्म है। यम बार-बार मना करते रहे, परन्तु सावित्री पीछे-पीछे चलती गयी। उसकी इस दृढ निष्ठा और पातिव्रतधर्म से प्रसन्न होकर यम ने एक-एक करके वररूप में सावित्री के अन्धे सास-ससुर को आँखें दीं, खोया हुआ राज्य दिया, उसके पिता को सौ पुत्र दिये और सावित्री को लौट जाने को कहा। परन्तु सावित्री के प्राण तो यमराज लिये जा रहे थे, वह लौटती कैसे? यमराज ने फिर कहा कि सत्यवान् को छोडकर चाहे जो माँग लो, सावित्री ने कहा-यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे सत्यवान् से सौ पुत्र प्रदान करें। यम ने बिना ही सोचे प्रसन्न मन से तथास्तु कह दिया। वचनबद्ध यमराज आगे बढे।
सावित्री ने कहा- मेरे पति को आप लिये जा रहे हैं और मुझे सौ पुत्रों का वर दिये जा रहे हैं। यह कैसे सम्भव है? मैं पति के बिना सुख, स्वर्ग और लक्ष्मी, किसी की भी कामना नहीं करती। बिना पति मैं जिना भी नहीं चाहती। वचनबद्ध यमराज ने सत्यवान् के सूक्ष्म शरीर को पाशमुक्त करके सावित्री को लौटा दिया और सत्यवान् को चार सौ वर्ष की नवीन आयु प्रदान की। जरूरत है कि इस कथा का थोड़ा सा अंश भी जी लिया जाय तो जीवन धन्य हो जाता है…।
भईया जी की रिपोर्ट