महागठबंधन में सीटों के बंटवारे पर संग्राम छिड़ गया है। इसमें शामिल अलग—अलग दलों ने अपनी ऐसी—ऐसी डिमांड रखी है कि तेजस्वी यादव के लिए महागठबंधन का ये बढ़ता कुनबा संभालना मुश्किल हो गया है। गठबंधन में शामिल सहयोगी दलों की बढ़ी हुई महत्वाकांक्षा ने बिखराव का भी डर पैदा कर दिया है। एक तहफ वीआईपी के मुकेश साहनी ने 60 सीटों वाली सख्त लाइन खींच दी है तो वहीं कांग्रेस और लेफ्ट समेत अन्य सहयोगी पार्टियों ने भी अपनी—अपनी बढ़ी हुई सीटों की डिमांड तेजस्वी के सामने रख दी है। लेकिन तेजस्वी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत वीआईपी के मुकेश साहनी ने पैदा करते हुए दबाव की रणनीति के तहत एनडीए से भी पींगे बढ़ानी शुरू कर दी है।
कांग्रेस और लेफ्ट ने भी रखी डिमांड
महागठबंधन की प्रमुख सहयोगी पार्टी कांग्रेस ने पिछले चुनाव में 70 सीटों पर लड़कर 19 सीटें जीती थीं। अंदरखाने से आ रही सूचना के अनुसार इस बार कांग्रेस करीब 50 सीटों पर दावेदारी कर सकती है। वहीं खबर है कि वाम पार्टी CPI ने भी 24 सीटों की सूची तेजस्वी यादव को सौंप दी है। जबकि एक और वाम पार्टी माले ने भी 40 से अधिक सीटों पर दावेदारी ठोक रखी है। ऐसे में तेजस्वी के लिए सहयोगी दल सहयोग करते कम और मुसीबत बनते ज्यादा नजर आ रहे। सबसे बड़ी टेंशन तो वीआईपी के मुकेश सहनी ने पैदा कर दी। उन्होंने महागठबंधन से 60 सीटें मांगी हैं। जोकि पूरी होती नजर नहीं आ रही। ऐसे में डर है कि सहनी 2020 की तरह एक बार फिर पाला बदल सकते हैं।
कैसे कुनबा संभालेंगे तेजस्वी यादव
तेजस्वी के लिए समस्या यह है कि कांग्रेस और तेजस्वी अपने कोटे की सीटें कम करके भी मुकेश सहनी को 10-15 सीट से ज्यादा नहीं दे पा रहे। ऐसे में 60 सीट वाली उनकी डिमांड हवा-हवाई ज्यादा और धरातल पर उतरती कम नजर आ रही है। यही नहीं, मुकेश साहनी अपने लिए डिप्टी सीएम पद पर भी दावा ठोक रहे हैं जो असंभव बात प्रतीत हो रही।उनके अलावा सीपीआई और माले अपने पिछले प्रदर्शन के आधार पर दावा कर रहे हैं कि उन्हें भी 40 सीटें चाहिए। उधर पशुपति पारस भी अपने लिए सम्मानजनक सीटें मांग रहे हैं।सीट शेयरिंग के लिए अब तक महागठबंधन की 5 बैठकें हो चुकी हैं और अभी तक नतीजा बनने की जगह बिगड़ने वाला ज्यादा दिख रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि विधानसभा चुनाव के ऐलान होने तक तेजस्वी किस तरह महागठबंधन का कुनबा संभाले रख सकते हैं।