लोकसभा चुनाव के दो चरणों में कम मतदान हुआ है. चुनाव आयोग के अनुसार दूसरे चरण में 64 प्रतिशत के लगभग मतदान हुआ है. वहीं साल 2019 की बातकरें तो दूसरे चरण की 88 में से 85 सीटों पर 69.64 प्रतिशत वोटिंग हुई थी. लोकसबा चुनाव 2024 के पहले चरण में 102 लोकसभा सीटों पर 66 फिसदी मतदान हुआ था. तो साल 2019 में पहले चरण में 70 प्रतिशत के करीब वोटिंग हुई थी. दो चरणों में पिछले आम चुनाव की तुलना में कम मतदान होने से राजनीतिक दलों की पेशगी पर पसीना दिखने लगा है.
मतदान का प्रतिशत गिरने से कभी सत्ताधारी दल को हुआ फायदा तो कभी विपक्ष के सिर पर सजा सेहरा
अगर हम पिछले लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत को देखे तो पांच लोकसभा चुनावों में पिछले की तुलना में कम मतदान हुआ, जिसमें चार बार सरकार बदल गई. जबकि एक बार सत्ताधारी दल की सरकार बनी. वहीं सात लोकसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत बढ़ा और चार बार सरकार बदल गई जबकि तीन बार सत्ताधारी दल को विजय श्री हासिल हुआ था.
वोटिग प्रतिशत कम होने से कांग्रेस को मिला लाभ:-
वर्ष 1980 के लोकसभा चुनाव में वोटिग प्रतिशत कम था तो जनता पार्टी की सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था. साल 1989 में कम मतदान होने से कांग्रेस को सत्ता गंवानी पड़ी थी. साल 1991 में दुबारा हुए लोकसभा चुनाव में भी मतदान प्रतिशत घटा था दब कांग्रेस को सत्ता मिली थी. वहीं 1999 के आम चुनाव में वोटिंग प्रतिशत गिरा था, लेकिन तब सत्ताधारी दल की ही जीत हुई थी. वर्ष 2004 में मतदान प्रतिशत कम दर्ज किया गया और इसका फायदा कांग्रेस को मिला और यूपीए की सरकार बनी.
बिहार में बवाल:-
राजनीतिक पंड़ितों के अनुसार लोकसभा चुनाव 2024 में बढ़ती गर्मी ने वोटरों के कदम को मतदान केंद्र की तरफ जाने से रोक दिया है. की वजह से तो वोटर नहीं निकल रहे.उनका कहना है कि इस बार चुनाव नतीजों में जीत हार का अंतर कम रहेगा और कांटे की टक्कर से नतीजे निकलेंगे. मुकाबले राजनीतिक दल आधारित नहीं बल्कि उम्मीदवार आधारित ज्यादा हो रहे हैं. राजनीतिक पंड़ितों के अनुसार जनता के बीच जाकर उनके मुद्दों पर बात करने के बजाए सोशल मीडिया पर प्रचार ज्यादा है. राजनीतिक दल अपने मुद्दों और प्रचार अभियान से जनता को उत्साहित करने में सफल नहीं हो पा रहे हैं. कांटो की टक्कर में कई सीटें फंस गई हैं. बिहार की बात करें तो नौ लोकसभा सीट पर मतदान हो चुके हैं. पहले चरण में हुए औरंगाबाद ,गया, नवादा और जमुई में एनडीए और इंडी गठबंधन में कांटे की टक्कर है. तो दूसरे चरण के पांच लोकसभा क्षेत्र में हुए मतदानमें भी कांटे की टक्कर है. ऐसे में तमाम राजनीतिक दलों के साथ प्रत्यासियों के दिल की धड़कन भी बढ़ी हुई है.
बहरहाल साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार वोटर्स की उदासीनता साफ दिख रही है. इसके लाभ और हानि का गणित हर दल अपने अपने हिसाब से लगा रहा है. कई दफे मतदान प्रतिशत गिरने के बावजूद भी सत्ताधारी दल की जीत हुई है. वहीं, कई बार सत्ता से हाथ भी धोना पड़ा है. ऐसे में अब इंतजार है 4 जून का….