
उद्यमी एवं सामाजिक कार्यकर्त्ता
गयाजी का अपना लोक विज्ञान है जिसमें सूर्य की स्थिति के साथ पृथ्वी पर होने वाले परिवर्तनों एवं मानव सहित विभिन्न जीव-जंतुओं पर होने वाले प्रभाव का आंकलन है। इसी लोक विज्ञान के आधार पर गयाजी के प्रसिद्ध मिष्टान्नों का विकास हुआ है। इन मिष्टान्नों में तील, और अक्षत यानी चावल की प्रधानता है। एक मिष्टान्न में रामदाना महत्वपूर्ण माना जाता है।
वैसे तो कन्या की संक्रांति अर्थात् आश्विन कृष्णपक्ष यानी पितपृक्ष महालय को लोग गयाजी का प्रमुख समागम या मेला मानते हैं। लेकिन, मकर संक्रांति अर्थात् पौष कृष्ण तथा मेष संक्रांति अर्थात् चैत्र कृष्णपक्ष में भी गयाश्राद्ध को पितृपक्ष का श्राद्ध ही माना जाता है। शास्त्रकारों ने वर्ष में तीन पितृपक्ष माना है।
आश्विन पितृपक्ष के अवसर पर गयाजी आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए अनरसा आकर्षण का केंद्र होता था। भारत की परंपरा के अनुसार अक्षत यानी चावल आदि अन्न है। वहीं तिल को विष्णु के शरीर का अंश माना जाता है जो मानव सहित श्रृष्टि के सभी जीवों के सम्पूर्ण पोषण, परिवर्द्धन, संरक्षण और संतति विस्तार में सक्षम है। भारत की संस्कृति में गो, गंगा और गायत्री इन तीन को माता माना गया है। गो माता से प्राप्त पंचगव्य मानव के लिए अमृत तुल्य है। अनरसा में हजारों वर्षों के अनुभव से प्राप्त इस लोक विज्ञान का प्रयोग दिखता है। वर्षा ऋतु के आगमन और प्रस्थान के बीच प्रकृति में सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता रहती है। इस काल में मानव की पाचन शक्ति थोड़ी कम रहती है। ऐसे में चावल की अधिक मात्र व तील की अत्यंत अल्पमात्र के साथ घी और शक्कर से मंद आंच पर तैयार होने वाला अनरसा स्वादिष्ट के साथ ही गुणकारी भी होता है। अच्छे से तले होने के कारण यह मिठाई खास प्रकार से कुरकुरी होती है जिसपर वातावरण की नमी का असर बहुत कम होता है। यह मिठाई सामान्य से अधिक दिनों तक सुरक्षित होती है।
मकर संक्रांति अर्थात् पौष कृष्ण पक्ष के अवसर पर गयाजी आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए तिलकुट की दुकानें सजी रहती है। तिलकुट में तील की प्रधानता होती है। ठीक से तलने के बाद शक्कर के साथ मिश्रित कर उसकी ठीक से कुटाई होती है जिससे स्वाद के साथ ही वह सुपाच्य भी हो जाता है। मक्कर संक्रांति के समय अधिक ठंड पड़ती है जिसके कारण लोगों की जठराग्नि तेज होती है। भारतीय परंपरा के अनुसार उस समय यहां हेमंत और शिशिर ऋतु का प्रभाव होता है। कवि कालिदास की रचना में ‘हेमंत शिशिरो अति’ का संदर्भ मिलता है। उसके अनुसार इन दो ऋतुओं में स्वस्थ रहने के लिए भोजन में तिल की अधिक मात्रा लेने की सलाह दी गयी है।
इसके बाद मेष संक्रांति अर्थात् चैत्र कृष्णपक्ष में भी गयाश्राद्ध के लिए भारी संख्या में यात्री आते हैं। इस अवसर पर अनरसा या तिलकुट की जगह लाई प्रचुर मात्रा में मिलती है। लाई में रामदाना का प्रयोग होता हैं। शक्कर और रामदाना के साथ लड्डू या अन्य आकार में तैयार होने वाली यह मिठाई शरद से गृष्म ऋतु के संधिकाल के लिए अनुकूल होती है। रामदाना बल, वीर्य वर्द्धक होने के साथ ही सुपाच्य भी होता हैं।