रॉबिनहुड छवि वाले गोपालगंज के पूर्व सांसद काली प्रसाद पांडे नहीं रहे। उनका लंबी बीमारी के बाद दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में बीती देर शाम निधन हो गया। काली पांडे को बिहार के बाहुबलियों का गुरु माना जाता था। उनके निधन की खबर मिलते ही गोपालगंज में शोक की लहर दौड़ गई। 80 के दशक में एक समय काली प्रसाद पांडेय की गोपालगंज में तूती बोलती थी। उन्होंने अपने दम पर निर्दलीय राजनीति शुरू की और विधायक बने। 1980 से 84 तक वे बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। चुनाव जीतने के लिए उन्हें कभी पार्टी के टिकट की दरकार नहीं रही। एक समय तो ऐसा था, जब पूरे देश में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस की लहर होने के बावजूद वो गोपालगंज से निर्दलीय लोकसभा का चुनाव जीत गए। बाद में राजीव गांधी उन्हें कांग्रेस में लेकर आए।
काली प्रसाद पांडेय का सियासी सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा। 1980 में विधायक रहते हुए एक मामले में आरोपित काली पांडे को जेल जाना पड़ा था। इससे इलाके में उनकी छवि बाहुबली रॉबिनहुड की बन गई थी। उनकी लोकप्रियता भी खूब थी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब पूरे देश में सहानुभूति फैक्टर के चलते कांग्रेस की लहर थी, उसके बावजूद साल 1984 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ गोपालगंज से निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता। इस चुनाव में काली प्रसाद पांडेय ने जेल में रहते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में कांग्रेस प्रत्याशी नगीना राय को हराया और सांसद बने। काली प्रसाद पांडेय की जीत के बाद उनका प्रभाव और बढ़ता जा रहा था। इसको देखते हुए राजीव गांधी ने उन्हें कांग्रेस में शामिल कराया।
इसके बाद काली प्रसाद पांडेय ज्यादा समय कांग्रेस में रहे। बाद में वो रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा से भी जुड़े। 2003 में वे लोजपा में शामिल हुए और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव, प्रवक्ता और उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में सक्रिय रहे। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने लोजपा छोड़कर कांग्रेस में वापसी की और कुचायकोट सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। बाद के चुनावों में उन्हें सफलता नहीं मिली। बिहार की राजनीति में उन्हें ‘रॉबिनहुड’ की तरह भी देखा गया। 1987 में आई सुपरहिट हिंदी फिल्म प्रतिघात में विलेन ‘काली प्रसाद’ का किरदार उन्हीं से प्रेरित था।