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मंथन

डीप फेक के मास्टर इंदिरा गांधी और लालू यादव …

लोकसभा चुनाव 2024 में डीप फेक का मामला गरमाया हुआ है। इस साइबर युग में किसी नेता के विडियों की आवाज बदलकर या किसी फर्जी नमूने से लोगों की आंखों में धूल झोंककर उसका राजनीतिक लाभ लेना अब आसान नहीं है। क्योंकि तकनीक के सहारे कुछ ही मीनटों में सारे भेद खुल जा रहे हैं।

K.K Ojha
Last updated: May 24, 2024 1:38 pm
By K.K Ojha 1.1k Views
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लोकसभा चुनाव 2024 में डीप फेक का मामला गरमाया

लोकसभा चुनाव 2024 में डीप फेक का मामला गरमाया हुआ है। इस साइबर युग में किसी नेता के विडियों की आवाज बदलकर या किसी फर्जी नमूने से लोगों की आंखों में धूल झोंककर उसका राजनीतिक लाभ लेना अब आसान नहीं है। क्योंकि तकनीक के सहारे कुछ ही मीनटों में सारे भेद खुल जा रहे हैं।

Contents
लोकसभा चुनाव 2024 में डीप फेक का मामला गरमाया1970-80 के दशकों में डीप फेक से पालिटिकल नैरेटिव बनाना या बिगाड़ना आसान थाराजनीति की चतुर खिलाड़ी इंदिरा गांधीइंदिरा गांधी के इस निर्णय का उनकी बहू सोनिया गांधी ने विरोध किया था4 जून 1977 को नैतिक मूल्यों के प्रति हमेशा सचेत रहने वाले समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुएडीप फेक की राजनीतिक कथा
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1970-80 के दशकों में डीप फेक से पालिटिकल नैरेटिव बनाना या बिगाड़ना आसान था

लेकिन पिछली शताब्दी के 1970-80 के दशकों में डीप फेक से पालिटिकल नैरेटिव बनाना या बिगाड़ना आसान था। क्योंकि अखबार व पत्रिका (इमेज) के माध्यम एक बार यदि झूठ फैला दिया जाता था तब वह विश्वास बन जाता था। बिहार की राजनीति में डीप फेक की रोचक कथाएं है जो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व पूर्व मुख्यमंत्री लालू यादव से जुड़ी हुई हैं।
बिहार के इतिहास में 7 मई 1977 का दिन काला दिवस के रूप में दर्ज है। इसी दिन बिहार के तत्कालीन पटना जिले के बेलछी गांव में दलित समाज के 11 लोगों का बेरहमी से जिंदा जला दिया गया था। बिहार में सामूहिक नरसंहार की यह पहली घटना थी।

राजनीति की चतुर खिलाड़ी इंदिरा गांधी

कुछ ही माह पूर्व संपन्न लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह से हार गयी थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी स्वयं भी यूपी के रायबरेली लोकसभा क्षेत्र से चुनाव हार चुकी थीं।
राजनीतिक संक्रमण के इस काल में अगले दो-ढाई माह तक इस घटना की किसी राजनेता ने सुध नहीं ली। लेकिन, चुनाव हार कर घर बैठीं इंदिरा गांधी के पास जैसे ही इस घटना की सूचना पहुंची वह एकदम से सक्रिय हो गयी। राजनीति की चतुर खिलाड़ी इंदिरा गांधी को इस घटना में अवसर दिखा। उन्होंने अपने सहयोगियों से कहा था कि यह घटना हमें फिर से खड़ा कर देगी। तत्काल उन्होंने दलितों को सांत्वना देने के लिए बेलछी जाने का निर्णय लिया।

इंदिरा गांधी के इस निर्णय का उनकी बहू सोनिया गांधी ने विरोध किया था

इस प्रकार की राजनीतिक यात्राएं उन दिनों विचित्र मानी जाती थी। तब किसी राष्ट्रीय या प्रादेशिक नेता के ऐसी घटनाओं के बाद मौके पर जाने की परंपरा नहीं थी। आज जैसे मुआवजे और सरकारी मदद की तो 1977 में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था।
इंदिरा गांधी के इस निर्णय का उनकी बहू सोनिया गांधी ने विरोध किया था। सोनिया के जीवनीकार जेवियर मोरो ने अपनी पुस्तक ‘द रेड सारीज‘ में इस घटना का जिक्र किया है। सोनिया की सलाह थी कि ‘बिहार अच्छी जगह नहीं है, अतः आप न जाएं। लेकिन, इंदिरा नहीं मानीं।

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13 अगस्त 1977 को इंदिरा गांधी हवाई जहाज से दिल्ली से पटना पहुंचीं और बेलछी जाने के लिए कार से निकल पड़ीं। उस दिन तेज बारिश हो रही थी। नदियां उफान पर थीं। रास्ते कीचड़ से सने थे। कार से आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा था। एक जगह पर कार कीचड़ में बुरी तरह से फंस गयी। फिर ट्रैक्टर के सहारे वह आगे बढ़ी। बिहार कांग्रेस के नेता मौसम को देखते हुए दौरा स्थगित करने का दबाव डाल रहे थे लेकिन, इंदिरा गांधी अडिग रहीं। नदी पार करने के लिए हाथी का इंतजाम किया गया। हाथी का नाम था मोती। हौदा नहीं था उस पर। फिर भी इंदिरा ऐसे ही बैठने को तैयार हो गईं। महावत के पीछे हाथी पर सवार इंदिरा नदी पारकर आखिरकार बेलछी पहुंच गईं। नरसंहार के बाद बेलछी पहुंचने वाली वह पहली राजनेता थीं।

इंदिरा गांधी के इस यात्रा की सूचना कांगे्रस समर्थक पत्रकारों ने पूरे विश्व की मीडिया को दे दी। लेकिन, पटना के कुछ स्थानीय फोटोग्राफरों व कुछ पत्रकारों के अलावा बाहर का कोई भी पत्रकार या फोटोग्राफर वहां नहीं पहुंच सका था। पटना के प्रसिद्ध प्रेस फोटोग्राफर केएम किशन कहते थे कि इंदिरा गांध की बेलछी यात्रा के अच्छे फोटो ेवल मेरे पास ही थे। विदेशी अखबारों को मैने फोटो देना शुरू किया जिससे मुझे अच्छी आमदनी हुई थी।

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बेलछी से लौटने के बाद पटना में इंदिरा गांधी ने पत्रकारों से बात की। पत्रकार वार्ता के दौरान इंदिरा गांधी ने एक पोटली से कुछ मुट्ठी अनाज निकालकर पत्रकारों के सामने रखा था। अनाज सड़ा हुआ था और उसमें कीड़े रेंग रहे थे। थोड़े से सड़े अनाज को दिखाते हुए इंदिरा गांधी ने प्रेस को बताया कि मात्र चार माह में ही जनता पार्टी की सरकार ने गरीबों को पशु बना दिया है। जनवितरण की दुकानों पर गरीब लोगों को सड़े चावल दिए जा रहे हैं। इंदिरा गांधी के कारण वह  गांव दुनियाभर में चर्चा में आ गया था। साथ ही सरकार की भी भारी फजीहत हुई। न्यू यॉर्क टाइम्स(इमेज) ने मीनू मसानी के हवाले से इंदिरा गांधी को ‘द गॉल‘ और ‘मॉम जनरल‘ की संज्ञा दी।

4 जून 1977 को नैतिक मूल्यों के प्रति हमेशा सचेत रहने वाले समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए

अब बात करते हैं उस अनूखे डीप फेक की। 24 जून 1977 को नैतिक मूल्यों के प्रति हमेशा सचेत रहने वाले समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर(इमेज) बिहार के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो चुके थे। इंदिरा गांधी का प्रेस के समक्ष उस खुलासे से वे भौंचक रह गए थे। उन्होंने तत्काल अपने अधिकारियों को कार्रवाई करने व जांच रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। आपूर्ति विभाग के कई अधिकारियों व कर्मचारियों पर कार्रवाई हो गयी। लेकिन, जब जांच रिपोर्ट आयी तब पाया गया कि दानापुर के एक अनाज व्यवसायी के गोदाम से सड़े अनाज मंगाकर प्रेस के समक्ष प्रस्तुत कर दिया गया था।

आहत कर्पूरी ठाकुर ने कहा था -उंच निवास नीच करतूती। इतनी उंचाई पर जाने के बाद भी हम इतना नीचे कैसे गिर सकते हैं। बाद में 1980 में इंदिरा गांधी फिर से सरकार में वापस आ गयी थीं। लेकिन राजनीति का पतन तेज हो गया था। इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने चुनाव जीतने के लिए भारत के बाहुबलियों व धनबलियों को प्रचूर मात्रा में टिकट दिया था। कांग्रेस तो जीत गयी लेकिन भारत की हार वहां से शुरू हो गयी थी।

डीप फेक की राजनीतिक कथा

डीप फेक की एक और राजनीतिक कथा की चर्चा कर रहा हूं। 18 मार्च 1974 को पुलिस ने छात्रों की उग्र भीड़ पर फायरिग कर दी थी जिसमें तीन छात्रों की मौत हो गयी। छात्रों की मौत की खबर से पूरे पटना में सनसनी फेल गयी। इसी बीच किसी ने प्रेस को लिखित बयान जारी कर दिया कि पुलिस फयारिग में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष लालू यादव की मौत हो गयी है। कुछ ही घंटों में लालू यादव का नाम देश-विदेश में फेल गया लेकिन, प्रेस में विज्ञप्ति के माध्यम से दी गयी वह सूचना गलत निकली। आंदोलन में शामिल अन्य छात्र नेताओं का कहना था कि आंदोलन में नेताओं की भीड़ में स्वयं को अतिमहत्व दिलाने के लिए  लालू यादव ने इस गंभीर झूठ का सहारा लिया था।

इस अर्थ में लालू यादव कांग्रेस के नेताओं के करीब दिखते हैं। बाद में वे कांग्रेस के साथ ही आ गए। गांधी-नेहरू परिवार (इकी ही तरह लालू यादव भी अपने परिवार को राजपरिवार बनाए रखने के लिए वे सारे दांवपेंच आजमा रहे हैं जो गांधी-नेहरू परिवार आजमाता रहा है।

WATCH ALSO:https://youtu.be/pudMxCjM0pE?si=04KOeSiGIz5X4HZH

https://youtu.be/ivKrUEqI_O4?si=CX8CF88DIt7hfJju

TAGGED: #bihar update, #RAHULGANDHI, BJP, congress, POLITICAL NEWS
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