ब्राह्मण बहुल बक्सर सीट पर भाजपा और राजद दोनों खेम में हलचल है। यहां दोनों गठबंधनों ने अपने पुराने चेहरों को आराम देकर नए योद्धाओं को चुनावी अखाड़े में उतारा है। लेकिन दोनों ही गठबंधनों को ‘अपनों’ ने ही भारी टेंशन दे रखी है। इन सबके बीच बसपा ने भी मजबूत कैंडिडेट देकर दोनों मुख्य पार्टियों को मुश्किल में डाल दिया है। जबकि निर्दलीय आनंद मिश्रा की चुनावी मुहिम उनके लिए बार—बार उठने वाली टीस की तरह डंस रही है।
भाजपा और आरजेडी दोनों क्यों हैं परेशान
भगवान राम की कर्मभूमि और महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि बक्सर में जीत को लेकर सभी दलों और प्रत्याशियों ताकत झोंक दी है। लेकिन कुल मिलाकर देखा जाए तो यहां भाजपा ने फिर वही गलती की है जो वह पिछले दो चुनावों से यहां करती रही है। पहले बाहरी कैंडिडेट अश्विनी चौबे को दो बार यहां से लड़वाया, और अब तीसरी बार उन्हें हटाया तो फिर किसी बाहरी को ही टिकट देकर अपने लिए मुश्किल खड़ी कर ली। चौबे के दो टर्म में प्रधानमंत्री मोदी के नाम और काम पर लोगों ने उन्हें वोट तो दिया लेकिन एक बात उन्हें खटकती रही कि क्या बक्सर में भाजपा के पास एक भी स्थानीय चेहरा नहीं है?
भाजपा की गलती और निर्दलीय का जलवा
2024 के चुनाव में भाजपा ने बक्सर से गोपालगंज वाले मिथिलेश तिवारी को टिकट दिया है। लेकिन उन्हें यहां बाहरी होने के कारण भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा। पीएम मोदी भी यहां चुनावी रैली कर चुके हैं, लेकिन बाहरी प्रत्याशी को लेकर लोगों की नाराजगी दूर नहीं हुई है। इतना ही नहीं, इस सीट से यहीं के निवासी और ब्राह्मण समाज से आने वाले आईपीएस आनंद मिश्रा चुनाव लड़ना चाहते थे। उन्होंने वीआरएस भी लिया था लेकिन उन्हें भाजपा का टिकट नहीं मिला। अब निर्दलीय चुनावी मैदान में उतर कर उन्होंने मिथिलेश तिवारी के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है।
राजद को बसपा और ददन पहलवान का डर
बक्सर में जो परेशानी भाजपा को हो रही है, वही कुछ राजद के साथ भी है। यहां पिछले दो चुनाव से राजद ने जगदानंद सिंह को लड़वाया। लेकिन इस बार पार्टी ने प्रत्याशी बदलते हुए जगदानन्द सिंह के पुत्र सुधाकर सिंह को मैदान में उतारा है। सुधाकर सिंह को डुमरांव के पूर्व विधायक ददन पहलवान का खतरा है जो राजद के यादव वोटबैंक में मजबूत पकड़ रखते हैं। ददन पहलवान के निर्दलीय चुनावी अखाड़े में उतर जाने से राजद के वोट बैंक में टूट का खतरा बढ़ गया है।
दलित-महादलित वोटर बिगाड़ सकते हैं समीकरण
बक्सर संसदीय सीट पर दलित और महादलित वोट भी काफी निर्णायक होता है। इनकी संख्या ब्राह्मण, यादव और राजपूत वोटबैंक के बाद आती है। लेकिन दोनों ही गठबंधन इस वोटबैंक पर अपना दावा पेश करते रहे हैं। इसबार बसपा ने भी यहां के लोकल और मजबूत नेता अनिल कुमार को चुनावी मैदान में उतारकर सभी दलों के राजनीतिक समीकरणों को बिगाड़ दिया है। जनतांत्रिक विकास पार्टी के जरिये बक्सर में अपनी खास पहचान बना चुके अनिल कुमार पिछले कई सालों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं।
क्या कहते हैं लोग, कैसा है मूड
अगर मुद्दों की बात करें तो यहां लोकल दिक्कतों के अलावे किसी खास समस्या पर उतनी चर्चा नहीं हो रही जितनी बाहरी और भितरी प्रत्याशी की हो रही है। दिनारा, बक्सर, राजपुर, ब्रह्मपुर आदि विधानसभा क्षेत्रों में एक ही बात लोग कह रहे कि कब तक बाहरी उम्मीदवारों के सहारे भाजपा को ढोते रहें। दिनारा के गोविंद कहते हैं कि आनन्द मिश्रा को टिकट मिलता तो जीत सुनिश्चित थी। मोदी जी के चेहरे पर कब तक बाहरी लोगों को सांसद बनाते रहेंगे। जबकि राजपुर विधानसभा क्षेत्र में लोग बसपा के पक्ष में कहते नजर आए कि अब यहां बदलाव जरूरी है। माना जा रहा है कि जो भी प्रत्याशी अपने जातीय समीकरण और अपनी पार्टी के वोटबैंक को संभाल लेगा, उसकी राह आसान हो जाएगी।