बिहार विधानसभा चुनाव में बदलाव का दावा कर सत्ता में वापसी की आस लगाए राहुल गांधी और तेजस्वी यादव को तगड़ा झटका लगा है। मतगणना के कई दौर गुजर जाने के बाद भी इनके गठबंधन की दशा में सुधार होता नहीं दिख रहा। सीटों के बंटवारे में ज्यादा से ज्यादा सीटें पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने वाली कांग्रेस तो सिर्फ 5 सीटों पर आगे है। जबकि उसने 60 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसमें कई सीटों पर तो महागठबंधन के अंदर ही फूट पड़ गया और करीब 12 सीटों पर दोस्ताना लड़ाई देखी गई। विधानसभा चुनाव 2020 में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी थी और 19 सीटें ही जीत पाई थी। इस तरह कहा जाए कि इस चुनाव में राहुल गांधी का वोट चोरी वाला दांव और उनका हाइड्रोजन बम पूरी तरह फुस्स हो गया तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं होगी।
फ्रेंडली फाइट की 11 में से 10 सीटों पर पीछे
महागठबंधन की इस दशा के लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जहां एनडीए में सारे दल एकजुुट होकर लड़े, वहीं महागठबंध में कांग्रेस—राजद समेत सभी दल सीट बंटवारे के प्रश्न पर ही अंतिम समय तक उलझते रहे। नौबत ये हुई कि 11 सीटों पर महागठबंधन की पार्टियां फ्रेंडली फाइट में आपस में ही लड़ गईं। नतीजा इन 11 सीटों में से 10 पर एनडीए ने उनका पासा पलट कर रख दिया। कांग्रेस के बाद महागठबंधन में तेजस्वी यादव की पार्टी राजद ने पिछली बार 74 सीटों पर विजय पताका फहराया था और वो सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। लेकिन इस बार वो रुझानों में खुद 36 पर आकर ठिठक गई है, जो पिछली बार के मुकाबले आधी है। डिप्टी सीएम का ख्वाब देखने वाले विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी भी एक सीट पर सिमटते दिख रहे हैं।
महागठबंधन के पिछड़ने की ये 4 बड़ी वजहें
महागठबंधन के अंदर महाभारत चुनाव के पहले ही शुरू हो गई थी। सीटों को लेकर नामांकन के आखिरी वक्त तक समझौता नहीं हो पाया जिस कारण 12 सीटों पर फ्रैंडली फाइट की नौबत आ गई।
- कांग्रेस ने सीटों के बंटवारे पर नाराजगी के बीच तेजस्वी यादव को सीएम फेस बताने को लेकर हिचक दिखाई। खुद राहुल गांधी ने सार्वजनिक मंच पर इसको लेकर कुछ नहीं कहा। चुनाव के एक दिन पहले महागठबंधन के दलों की बैठक में रार साफ दिखी।
- राहुल गांधी की चुनाव प्रचार में भी ज्यादा सक्रियता नहीं दिखी। उन्होंने वोट चोरी को लेकर बड़ा दांव भी खेला, लेकिन यह चुनाव में कोई बड़ा स्थानीय मुद्दा नहीं बन पाया।
- जनता ने बीजेपी-जेडीयू सरकार के आखिरी महीनों में मिली सौगातों को हाथोंहाथ लिया। सवा करोड़ महिलाओं को एकमुश्त 10 हजार रुपये मिलना बड़ा टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ।
- कांग्रेस सीमांचल की कुछ सीटों को छोड़कर बाकी इलाकों में सहयोगी दलों का वोट भी पाले में नहीं कर पाई। पिछली बार जीती गईं सीटों पर भी उसका प्रदर्शन कमजोर दिख रहा है।