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देश-विदेश

100वीं जयंती पर PM मोदी ने बताया… कैसे अटल जी ने अंकवार में भर पीठ पर धौल जमा दी

Amit Dubey
Last updated: December 25, 2024 12:14 pm
By Amit Dubey 3k Views
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8 Min Read
अटल जी, 100वीं जयंती, PM मोदी, लेख
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पीएम नरेंद्र मोदी का लेख

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं…लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं? अटल जी के ये शब्द कितने साहसिक, कितने गूढ़ हैं। अटल जी, कूच से नहीं डरे। उन जैसे व्यक्तित्व को किसी से डर लगता भी नहीं था। वह यह भी कहते थे…जीवन बंजारों का डेरा आज यहां, कल कहां कूच है..कौन जानता किधर सवेरा। आज अगर वह हमारे बीच होते, तो अपनी जन्मतिथि पर नया सवेरा देख रहे होते। मैं वह दिन नहीं भूलता, जब उन्होंने मुझे पास बुलाकर अंकवार में भर लिया था और जोर से पीठ पर धौल जमा दी थी। वह स्नेह, वह अपनत्व, वह प्रेम मेरे जीवन का बहुत बड़ा सौभाग्य रहा है।

Contents
पीएम नरेंद्र मोदी का लेखइस तरह रख दी नए भारत की नींवउन्होंने देश को एक नई दिशा दीकनेक्टिविटी का समझाया महत्वकभी भी दवाब में नहीं लिया फैसलागठबंधन की राजनीति को नई पहचानदल से बड़ा हमेशा देश को रखासत्ता और विचार में विचार चुना
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इस तरह रख दी नए भारत की नींव

25 दिसंबर का दिन भारतीय राजनीति और भारतीय जनमानस के लिए एक तरह से सुशासन का अटल दिवस है। आज पूरा देश अपने भारत रत्न अटल को, उस आदर्श विभूति के रूप में याद कर रहा है, जिन्होंने अपनी सौम्यता, सहजता और सहृदयता से करोड़ों भारतीयों के मन में जगह बनाई। पूरा देश उनकी राजनीति और उनके योगदान के प्रति कृतज्ञ है।

उन्होंने देश को एक नई दिशा दी

21वीं सदी को भारत की सदी बनाने के लिए उनकी सरकार ने जो कदम उठाए, उसने देश को एक नई दिशा और गति दी। 1998 के जिस कालखंड में उन्होंने पीएम पद संभाला, उस दौर में देश राजनीतिक अस्थिरता से घिरा हुआ था। नौ साल में देश ने चार बार लोकसभा के चुनाव देखे थे। लोगों को शंका थी कि यह सरकार भी उनकी उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाएगी। ऐसे समय में एक सामान्य परिवार से आने वाले अटल जी ने देश को स्थिरता और सुशासन का माडल दिया और भारत को नव विकास की गारंटी दी। वह ऐसे नेता थे, जिनका प्रभाव आज तक अटल है. वह भविष्य के भारत के परिकल्पना पुरुष थे। उनकी सरकार ने देश को आइटी और दूरसंचार की दुनिया में तेजी से आगे बढ़ाया। उनके शासनकाल में ही तकनीक को सामान्य मानवी की पहुंच तक लाने का काम शुरू किया गया।

कनेक्टिविटी का समझाया महत्व

दूर-दराज के इलाकों को बड़े शहरों से जोड़ने के सफल प्रयास किए गए। वाजपेयी जी की सरकार में शुरू हुई जिस स्वर्णिम चतुर्भुज योजना ने महानगरों को एक सूत्र में जोड़ा, वह आज भी स्मृतियों पर अमिट है। लोकल कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए भी उनकी गठबंधन सरकार ने पीएम ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रम शुरू किए। उनके शासनकाल में दिल्ली मेट्रो शुरू हुई, जिसका विस्तार आज हमारी सरकार एक वर्ल्ड क्लास इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के रूप में कर रही है। ऐसे ही प्रयासों से उन्होंने आर्थिक प्रगति को नई शक्ति दी। जब भी सर्व शिक्षा अभियान की बात होती है, तो अटल जी की सरकार का जिक्र जरूर होता है। वह चाहते थे कि भारत के सभी वर्गों यानी एससी, एसटी, ओबीसी और महिलाओं के लिए शिक्षा सहज और सुलभ हो।

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कभी भी दवाब में नहीं लिया फैसला

अटल सरकार के कई ऐसे साहसिक कार्य हैं, जिन्हें आज भी हम देशवासी गर्व से याद करते है। देश को अब भी 11 मई 1998 का वह गौरव दिवस याद है, जब एनडीए सरकार बनने के कुछ ही दिन बाद पोकरण में सफल परमाणु परीक्षण हुआ। इस परीक्षण के बाद दुनियाभर में भारत के वैज्ञानिकों को लेकर चर्चा होने लगी। कई देशों ने खुलकर नाराजगी जताई, लेकिन अटल जी की सरकार ने किसी दबाव की परवाह नहीं की। पीछे हटने की जगह 13 मई को एक और परीक्षण किया गया। इस दूसरे परीक्षण ने दुनिया को यह दिखाया कि भारत का नेतृत्व एक ऐसे नेता के हाथ में है, जो अलग ही मिट्टी से बना है। उनके शासनकाल में कई बार सुरक्षा संबंधी चुनौतियां आईं। कारगिल युद्ध का दौर आया। संसद पर आतंकियों ने कायरना प्रहार किया। अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हुए हमले से वैश्विक स्थितियां बदलीं, लेकिन हर स्थिति में अटल जी के लिए भारत का हित सर्वोपरि रहा।

गठबंधन की राजनीति को नई पहचान

अटल जी की बोलने की कला का कोई सानी नहीं था। विरोधी भी उनके भाषणों के मुरीद थे। उनका यह कथन ‘सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी, मगर यह देश रहना चाहिए’, आज भी मंत्र की तरह सबके मन में गूंजता रहता है। एनडीए की स्थापना के साथ उन्होंने गठबंधन की राजनीति को नए सिरे से परिभाषित किया। एक समय उन्हें कांग्रेस ने गद्दार तक कह दिया था। इसके बाद भी उन्होंने कभी असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया। उनमें सत्ता की लालसा नहीं थी। 1996 में उन्होंने जोड़-तोड़ की राजनीति न चुनकर, पीएम पद से इस्तीफा देने का रास्ता चुना। राजनीतिक षड्यंत्रों के कारण 1999 में उन्हें सिर्फ एक वोट के अंतर के कारण प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा। वह आपातकाल के खिलाफ लड़ाई का भी बड़ा चेहरा बने।

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दल से बड़ा हमेशा देश को रखा

मैं जानता हूं कि आपातकाल के बाद 1977 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनसंघ का जनता पार्टी में विलय का निर्णय सहज नहीं रहा होगा, लेकिन उनके लिए हर राष्ट्रभक्त कार्यकर्ता की तरह दल से बड़ा देश था, संगठन से बड़ा संविधान था। विदेश मंत्री बनने के बाद जब संयुक्त राष्ट्र में भाषण देने का अवसर आया, तो उन्होंने हिंदी में अपनी बात कही। उन्होंने भारत की विरासत को विश्व पटल पर रखा। उन्होंने भाजपा की नींव तब रखी, जब कांग्रेस का विकल्प बनना आसान नहीं था।

सत्ता और विचार में विचार चुना

लालकृष्ण आडवाणी और डा. मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गजों के साथ उन्होंने पार्टी को अनेक चुनौतियों से निकालकर सफलता के सोपान तक पहुंचाया। जब भी सत्ता और विचारधारा के बीच एक को चुनने की स्थितियां आईं, उन्होंने विचारधारा को खुले मन से चुना। वह देश को यह समझाने में सफल हुए कि कांग्रेस के दृष्टिकोण से अलग एक वैकल्पिक वैश्विक दृष्टिकोण संभव है। अटल जी की सौवीं जयंती सुशासन के एक राष्ट्र पुरुष की जयंती है। आइए हम सब इस अवसर पर उनके सपनों को साकार करने के लिए मिलकर काम करें, एक ऐसे भारत का निर्माण करें, जो सुशासन, एकता और गति के अटल सिद्धांतों का प्रतीक हो। मुझे विश्वास है, भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के सिखाए सिद्धांत हमें भारत को नव प्रगति और समृद्धि के पथ पर प्रशस्त करने की प्रेरणा देते रहेंगे। .

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