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संस्कृति

गो माता समान फल्गु

Swatva Desk
Last updated: September 16, 2025 1:08 pm
By Swatva Desk 411 Views
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9 Min Read
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गया को नदी तीर्थ कहा गया है। इस प्रकार फल्गु नदी के कारण ही गया व बोधगया का अस्तित्व है। इस नदी को मोक्षदायिनी भी कहा गया है। यह सूखी लेकिन सरस नदी मानी जाती रही है। इसकी तुलना गो माता से की गयी है। गो माता के थन में दूध दिखता नहीं लेकिन हाथ लगाते ही उसकी धारा फूट पड़ती है। उसी प्रकार फल्गु के पेटी में हाथ लगाकर बालू हटाते ही अमृत तुल्य पवित्र जल के सोत फूट पड़ते थें। लेकिन, अब यह बात पुरानी सी हो गयी है। अनियंत्रित स्वार्थ और विकास के नाम पर मूर्खतापूर्ण आत्मघाती कार्य का यह परिणाम है।

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इतना ही नहीं अब इसकी रगों में जो पानी है वह जहरीला हो चला है। यदि इसका अस्तितव मिटा तो इसके आसपास के लाखो की आबादी संकट में होगा। इसके साथ ही गयाजी की महिमा भी घटेगी। कुछ जागरूक लोग इसके अस्तित्व बचाने के लिए आगे आए हैं। दम तोड़ रही फल्गु की रक्षा के लिए उच्च न्यायालय में गुहार लगाया गया। न्यायालय के आदेश की भी अवहेलना होती रही है।

यह नदी गयाजी के हृदय स्थल विष्णुपद मंदिर से सटे बहती है। इसमें केवल वर्षाऋतु में जल रहता है। इसके जलसंग्रहण क्षेत्र में जब जोरदार बारिश होती है तब इसमें कभी-कभी एक-दो दिन के लिए उग्र बाढ़ भी आ जाती है। अन्य महीनों में नदी की रेत को हटा कर थोड़ा गहरा करने पर स्वच्छ जल निकल आता था।

फल्गु नदी का उद्गम छोटा नागपुर पठार है। छोटानागपुर पाठार के उत्तरी भाग में वर्षा के जल से कई जलधाराएं अस्तित्व में आती है। ये जलधाराएं आपस में मिलकर झारखंड की सीमा मंे ही निरंजना या निलांजन नदी का रूप धारण कर लेती हैं। बोधगया के पास मोहना नामक सहायक नदी से मिलकर यह विशाल रूप धारण कर लेती है। गया के निकट इसकी चौड़ाई सर्वाधिक होती है। गयाजी के पूर्व नगकूट पहाड़ी है। उससे दक्षिण फल्गु नदी का नाम मुहाना है।

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वस्तुतः फल्गु नदी आठ जल धाराओं या नदियों का संगम रहा है। लेकिन पांच धाराएं अब लुप्त हो गयी हैं। गयाजी से दक्षिण लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर निरंजना नदी व मुहाने नदी के संगम से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण दिशा में ही सरस्वती मन्दिर तक इस नदी का नाम सरस्वती है। मधुश्रवा नाम की एक छोटी नदी गयाजी से दक्षिण मुहाना के पास ही मिलती है। इसकी धारा वर्षा के बाद जब फल्गु सूख जाती है तब अलग होकर गदाधर-मन्दिर के नीचे बहती है।

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एक और धारा है ब्रह्माणी जो कभी बभनी घाट के समीप मिलती थी। गया शहर के विस्तार के साथ यह धारा लुप्त हो गई है लेकिन घाट का अस्तित्व अब भी है।

पितरों को तृप्त करने के संकल्प के साथ जब श्रद्धालु फल्गु नदी के बालू में जल ढूंढते हैं तो उन्हें निराशा हाथ लगती है। समाज की क्रूरता के कारण इस नदी की अंततः धारा तो सूख गयी, वहीं गया शहर के गंदे नाले का पानी अब इस नदी में खुलेआम गिरने लगा है। गंदे नाले के काले पानी से पितरों को तृप्त करने का कर्मकांड होते यहां देखा जा सकता है। इस दुर्दशा को देख किसी भी संवेदनशील मनुष्य की आंखें भर जायेंगी।

फल्गु सूखी नदी जरूर है लेकिन इसके पेट में सालो भर पानी रहता था। अपने पेट में वह तब तक पानी को समेट कर रख सकी जब तक उसमें भरपूर बालू हुआ करता था। करीब तीस वर्ष पूर्व इस नदी से मनमाने तरीके से बालू निकालने का काम शुरू हुआ। इसके बाद सपाट दिखने वाली फल्गु नहीं गड्ढों में तब्दील हो गयी। इसके साथ ही इसके पाट पर अतिक्रमण का सिलसिला शुरू हुआ। करीब तीन किलोमीटर पाट वाली फल्गु नदी सिमटती चली गयी और अब इसकी चोड़ाई कही-कहीं पांच सौ मीटर तक रह गई है।

Dry Falgu river in Gaya raises a stink, but fails to create poll buzz |  Hindustan Times

एक अध्ययन के अनुसार इस नदी से 350 से अधिक पईन निकले थे। वर्षा के समय में जब नदी में पानी उठता था तब नदी की धारा स्वतः पइनों की ओर मुड़ने लगती थी जैसे गाय अपने बच्चे का पेट भरने के लिए अपना थन उसके मुंह के पास कर देती है। बारिस का पानी पइन के माध्यम से आसपास के क्षेत्र में स्थित आहरों तक पहुंच जाता था जिससे इस क्षेत्र का भूजल स्तर हमेशा बना रहता था। इसके प्रभाव से फल्गु की पेटी में भी गर्मी में भी पानी की कमी नहीं होती थी। अब तो जोरदार बारिश होने पर फल्गु में भयंकर बाढ़ आ जाती है और कुछ ही घंटे में वह पानी तबाही मचाते हुए गायब भी हो जाता है। फल्गु के अस्तित्व पर छाये संकट का संकेत इस अल्पकालिक बाढ़ के रूप में पिछले चालीस वषों से मिल रहा था लेकिन जनसमान्य के साथ ही समाज के प्रबुद्ध लोग भी गहरी नींद में सोये रहे।

गया शहर के विस्तार के साथ-साथ घरों के गंदे पानी एवं हजारों टन कचरों के निस्तारण की समस्या ने रही सही कसर भी पूरी कर दी। अस्तित्व संकट से जूझ रहे इस नदी में शहर के गंदे नालों के जहरीले पानी डाले जाने लगे। पूरे शहर के कचरा भी इस मोक्षदायिनी नदी में डाले जाने लगे। देखते ही देखते यह नदी दुर्गंध देने वाला नाला और कचरा ढेर में परिवर्तित हो गई।

The 'Falgu' Man – Brijnandan Pathak – Humans of Gaya

गया में फल्गु नदी को प्रदूषण से बचाने के लिए कोई उपाय न होने से लोगों की आस धूमिल होने लगी है। नदी में प्रदूषण की यह समस्या दिनोंदिन सुरसा की तरह मुंह बाये चली जा रही है। गया जिले के एक बहुत बड़े भूभाग को अभिसिंचित करने वाली फल्गु नदी का यहां के लोगों के जीवन से बहुत ही गहरा जुड़ाव है। इस नदी से गांवों के हजारों लोगों का आर्थिक, धार्मिक एवं सामाजिक जुड़ाव है। गया जिले के बहुत से ऐसे गांव हैं, जहां के निवासी फल्गू व इसमें समाहित होने वाली नदियों का पानी पीकर ही जीते हैं। ग्रामीण इलाकों में खेती के लिए इसका प्रयोग हो रहा है। भविष्य में अंधकार भी तय मानिए।

गंगा नदी की तरह निरंजना व फल्गु नदी का भी प्राधिकरण बनाने की मांग उठती रही है। इस मांग को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास भी पत्र भेजे गए हैं। देश के कई राज्यों में छोटी-छोटी नदियों का प्राधिकरण बनाया गया है, लेकिन 126 किमी लंबी निरंजना व फल्गु नदी का प्राधिकरण बनाने के बारे में अभी तक कोई प्रस्ताव नहीं आया है जबकि इस नदी का धार्मिक, सामाजिक व पर्यावरण की दृष्टि से महत्व अन्य छोटी नदियों से कहीं अधिक है। इस क्षेत्र के महत्व के अनुरूप इसके विकास के लिए प्राधिकरण का गठन आवश्यक है।

किसी भी नदी का जीवन उसके जल संग्रहण क्षेत्र पर निर्भर है। जलसंग्रहण क्षेत्र मंे उसका उद्गम स्थान भी आता है। यदि फल्गू को बचाना है तो झारखंड में स्थित उसके उद्गम स्थान से अभियान चालाना होगा। इसके साथ ही फल्गु नदी से जुड़े हुए सैकड़ों पईनों को भी पुनर्जीवित करना होगा क्योंकि बरसात मे जब फल्गु नदी में सतह पर पानी प्रवाहित होने लगता था तब इन्हीं पईनों के माध्यम से वर्षा जल का संग्रहण होता था। इसके कारण इस क्षेत्र में भूमिगत जल की कमी नहीं होती थी और फल्गु की अंतःधारा भी गर्मी के मौसम में बरकरार रहती थी। प्रकृति की यह व्यवस्था गयाजी की विशेषता है।

TAGGED: गंगा नदी, गयाजी, गो माता, नरेन्द्र मोदी, पानी, फल्गु, फल्गु नदी, सरस नदी
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