सही के साथ खड़ा रहना उनकी प्रकृति थी। शोले को जब सेंसर बोर्ड की कैंची का सामना करना पड़ा, तो ‘भारत कुमार’ फिल्म उद्योग के हितचिंतक के नाते अधिकारियों ने वन-टू-वन बात की और तथ्य भरे अपने तर्क से फिल्म को पास करा दिया। यहां यह ध्यातव्य है कि शोले के रिलीज होने से उन्हें फूटी-कौड़ी का लाभ भी नहीं होना था। फिर भी नि:स्वार्थ भाव से उन्होंने पहल की थी। आज ऐसे लोग कितने मिलेंगे?
सत्तर के दशक में प्रधानतंत्री गांधी के किसी प्रस्ताव को ठुकराने के लिए ठोस कलेजा चाहिए होता था। आपातकाल को महिमामंडित करने वाली फिल्म ‘नया भारत’ के प्रस्ताव को आरंभिक वार्ता के बावजूद नकार कर मनोज कुमार ने सिद्ध किया था कि वे पर्दे के अलावा असल जीवन में भी हीरो हैं। आजकल जिन अमृता प्रीतम पर युवा लहालोट होते हैं, उनके द्वारा आपातकाल के सकारात्मक पहलू को दिखाने के लिए पटकथा लिखे जाने पर मनोज कुमार ने फोनकर अमृता को फटकारा था। इन दोनों मामलों में वे चाहते तो पॉलिटकली करेक्ट रह सकते थे। लेकिन, उन्होंने सत्य का चयन किया।
इंदिरा जी के समय एक कानून आया कि किसी फिल्म रिलीज के हो सप्ताह बाद दूरदर्शन पर दिखाना होगा। इससे उनकी फिल्म शोर को सिनेमाघर में दर्शक नहीं मिले। कर्मठ स्वभाव के स्वामी मनोज जी सरकार के खिलाफ कोर्ट चले गए और लंबी लड़ाई के बाद केस जीता।
1965 में उनकी अभिनीत फिल्म शहीद आई, जिसे देखने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी को आमंत्रित किया गया था। सिनेमा में रुचि नहीं रखने वाले शास्त्री जी केवल दस मिनट के लिए फिल्म देखने की सहमति दी थी। लेकिन, यह शहीद-ए-आजम भगत सिंह व उनका किरदार निभाने वाले मनोज कुमार का सम्मोहन ऐसा छाया कि प्रधानमंत्री ढाई घंटे तक पूरी संपन्न कर ही उठे। जाते-जाते प्रधानमंत्री शास्त्री जी उनके प्रसिद्ध नारे ‘जय जवान, जय किसान’ को केंद्र में रखकर एक फिल्म बनाने का आग्रह मनोज कुमार से किया। फिर क्या था! भारत मां का अच्छा बेटा मनोज दिल्ली से मुंबई जाते समय विमान में ही ‘उपकार’ फिल्म की कथा का खाका तैयार कर लिया और प्रधानमंत्री से किए अपने वायदे के अनुसार दो साल के अंदर 1967 में फिल्म बना भी डाली। लेकिन, संयोग ऐसा रहा कि फिल्म पूरी के एक साल पहले ही 1966 में शास्त्री जी का असमय निधन हो गया। हालांकि, शास्त्री जी का आशीर्वाद व मनोज की मेहनत सफल रही। फिल्म सुपरहिट हुई। बाद में मनोज कुमार के करियर का एकमात्र राष्ट्रीय पुरस्कार इसी फिल्म के लिए मिला।
कई बड़े कलाकारों ने उनके साथ काम करने से मना कर दिया था। दूसरी ओर, अपनी फिल्मों में उन्होंने कई नवोदितों को पहला अवसर दिया। फिल्म स्टार के रूप में स्थापित होने के बाद अधिकतर लोग उनको श्रेय भी नहीं देते। देश की सरकार ने उन्हें पद्मश्री तथा दादासाहेब फाल्के सम्मान से विभूषित किया है। लेकिन, देश के करोड़ों लोगों ने उन्हें ‘भारत कुमार’ से अलंकृत किया है। यह अनुपम सम्मान केवल उन्हीं के लिए है। कोई अन्य भारत कुमार नहीं होगा।
भारत के इस सुंदर सपूत को कोटि-कोटि नमन।