आरोप-प्रत्यारोप, प्रतिबंध-अनुबंध, विरोध-समर्थन जैसे प्रतिकूल और अनुकूल वातावरण से गुजरता हुआ आरएसएस यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने 100 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। संघर्ष पूर्ण जीवन के अनुभवों के साथ सामूहिक शक्ति के प्रकटीकरण का सांगठनिक कौशल कोई एक दिन में आकार नहीं लेता। इस दृष्टि से यदि विचार करें, तो संघ की स्थापना एक दिन में संभव नहीं हुई। लेकिन इस सांगठनिक यात्रा का संकल्प जिस मुहूर्त में हुआ, उसे समाज संघ की स्थापना दिवस मानता है। संघ भी उसी तिथि को अपना स्थापना दिवस स्वीकार करता है।
विजयादशमी के दिन हुई सांगठनिक पुरुषार्थ की शुरुआत
आरएसएस की स्थापना डा. केशव बलराम हेडगेवार ने 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन की थी। इस अभिजीत मुहूर्त में संघ की यात्रा शुरु करने का सामूहिक संकल्प डा. हेडगेवार के साथ कुछ तरूणों व युवाओं ने लिया था। इसीलिए हर साल आरएसएस विजयादशमी पर अपना स्थापना दिवस मनाता है। संघ की स्थापना डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने एक छोटे समूह के साथ की थी, लेकिन पावन पुरुषार्थ का यह संकल्प इतना दृढ़ था कि यह सूक्ष्म बीज विराट हिमालय बनकर आज विश्व के समक्ष खड़ा है। भारत का यह स्वयंसेवी संगठन विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है। यह भारतीयों के लिए गर्व का विषय है।
क्या है आरएसएस की शक्ति का मूल स्रोत?
इस प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ने में पूरे विश्व के शोधकर्ता, मीडिया कर्मी और खुफिया ऐजेंसियां आज भी लगी हुई हैं। वे अपनी-अपनी नजरों से संघ को देखते हैं, संघ को लेकर अपनी अवधारणा बनाते हैं और उसपर कुछ लिखते-पढ़ते भी हैं। वहीं, संघ को अपने जीवन में उतारने वाले स्वयंसेवकों का कहना है कि संघ की शक्ति का एकमात्र स्रोत शाखा है जहां प्रतिदिन व्यक्ति और व्यक्त्त्वि निर्माण का कार्य होता है। संघ केवल शाखा लगाता है, और कुछ नहीं करता। वहीं शाखा में तैयार स्वयंसेवक भारत माता को परम गौरव पर पहुंचाने वाले प्रत्येक कार्य को संकल्प रूप से करते हैं और उन्हें सिद्ध करते हैं। इस प्रकार शाखा में तैयार स्वयंसेवकों ने लगभग 80 संगठनों का निर्माण कर दिया। इन्हीं संगठनों में एक भाजपा यानी भारतीय जनता पार्टी भी है।
संघ की दैनिक शाखा कार्यशैली का मूल आधार
आरएसएस की कार्यशैली का मूल आधार दैनिक शाखा को माना जाता है। यहां अनुशान का बड़ा महत्व है। शाखा में तय समय व स्थान पर लोग एकत्र होते हैं और इसमें शारीरिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक विकास से संबंधित गतिविधियों व कार्यक्रमों का आयोजन होता है। पहली ऐसी दैनिक ‘शाखा’ संघ के स्थापना दिवस के दिन यानी विजयादशमी को शुरू नहीं हुई थी। बल्कि काफी विमर्श के बाद 28 मई 1926 से शुरू हुई। जिस स्थान पर आरएसएस की पहली शाखा आरंभ हुई थी, वह नागपुर का मोहितेबाड़ा मैदान था, जो वर्तमान में आरएसएस मुख्यालय परिसर का हिस्सा है। वर्तमान में संघ की देशभर में 60,000 से अधिक दैनिक शाखाएं हैं।
स्थापना से अब तक तीन बार लगे प्रतिबंध
संघ पर तीन बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है। पहली बार महात्मा गांधी की हत्या के बाद 1948 में। दूसरी बार आपातकाल के समय 1975 में और तिसरी बार 1992 में बाबरी ढांचा ध्वस्त किए जाने के बाद। इन प्रतिबंधों के बावजूद संघ की यात्रा रुकी नहीं, बल्कि पूर्व की तुलना में और तीव्र गति से आगे बढ़ती रही। अपने लाखों समर्पित कार्यकर्ताओं के बल पर संघ का जो विराट अभी का स्वरूप सामने आया है, उसका उदाहरण कहीं नहीं है। यह विशाल संगठन भारत की संस्कृति, प्रकृति, ज्ञान परम्परा और सौम्य शक्ति की अभिव्यक्ति है। संघ का संकल्प है कि वह अखंड भारत के अपने सपने को साकार करेगा।
आरएसएस पर तीसरी बार बैन की वजह
आरएसएस पर तीसरी बार प्रतिबंध साल 1992 में लगा। दरअसल पहली बार बीजेपी ने 1984 का लोकसभा चुनाव लड़ा। इस चुनाव में पार्टी महज 2 सीटों पर सिमट गई। लेकिन बाबरी मस्जिद ने राजनीतिक परिदृश्य बिल्कुल पूरी तरह बदल दिया। 1986 में अयोध्या के विवादित परिसर का ताला खोल दिया गया और वहां से मंदिर-मस्जिद की राजनीति गर्मा गई। इसी मौके को भाजपा ने भुना लिया। नतीजतन इसको लेकर 1986 से 1992 के बीच खूब टकराव हुआ। जगह-जगह हिंसा हुई, लोगों की जानें गईं। साल 1992 में अयोध्या में भीड़ ने विवादित ढांचे का गुंबद गिरा दिया।
बाबरी विध्वंस और तुष्टिकरण की राजनीति
बाबरी विध्वंस के बाद देश के कई हिंसों में तनाव पसर गया। हिंसा होने लगी और माहौल खराब होने लगा। देश की स्थिति देख तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव ने आरएसएस पर भी प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद एक बार फिर जांच चली। लेकिन जांच में अरएसएस के खिलाफ कुछ नहीं मिला। नतीजतन आखिर में तीसरी बार भी 4 जून 1993 को सरकार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर से प्रतिबंध हटाना पड़ा।
वह आदेश जिसमें सरकारी कर्मियों पर लगा बैन
1966, 1970 और 1980 की तत्कालीन केंद्र सरकारों द्वारा जारी उन आदेशों में संशोधन किया गया है, जिनमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखाओं और उसकी अन्य गतिविधियों से दूर रखने के लिए रोक लगाई गई थी। आरोप है कि पूर्व सरकारों ने सरकारी कर्मचारियों के संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर रोक लगा दी थी। आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर कर्मचारियों को सजा देने तक का प्रावधान भी लागू किया गया। सरकारी सेवाओं से जुड़े लाभ लेने के लिए कर्मचारी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों से दूर रहते थे।