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राजपाट

महोबिया से पप्पू तक…बिहार में बाहुबली से नेता बनने वालों की लंबी लाइन

Swatva
Last updated: April 25, 2024 6:06 pm
By Swatva 1.6k Views
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4 Min Read
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पटना : बिहार की राजनीति में 90 के दशक से ही बाहुबलियों का जोर रहा है। यह जोर आज 2024 के ताजा लोकसभा चुनाव में भी दिन—दूनी, रात चौगुनी तरक्की के साथ बदस्तूर कायम है। आइए कुछ ऐसे किस्से  बयां करते हैं जो आज भी लोगों की ज़ुबां पर चढ़े हुए हैं। बिहार के इन बाहुबलियों के कारनामों की छाप आज की राजनीति के साथ  अखबारी कागज़ के पन्नों पर दर्ज़ मिल ही जाती हैं। यहां कुछ ऐसे बाहुबली विधायक हुए हैं जो हाथ जोड़कर दहशतगर्दी का वो आलम रच गए जिसकी विरासत मौजूदा राजनीति में आज भी हावी है।

Contents
वीरेंद्र सिंह मोहबिया भी बने थे निर्दलीय प्रत्याशीगुरु के रास्ते पर चलते थे मोहबियापुराने तरीकों से वोट बटोरने की चाहमसीहा बनना चाह रहा था मोहबिया
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वीरेंद्र सिंह मोहबिया भी बने थे निर्दलीय प्रत्याशी

वहीं, बात करें बिहार विधानसभा चुनाव 1980 की ये कहानी है वैशाली के जनदाहा निर्वाचन क्षेत्र से है जहां कुख्यात वीरेंद्र सिंह मोहबिया निर्दलीय प्रत्याशी बना। उसके गुर्गों ने ‘वीर मोहबिया कड़ाम-कड़ाम, मुहर मारो धड़ाम-धड़ाम’ का नारा दिया। तब यह भी आरोप लगा था कि पागल हाथी पालने का शौकीन मोहबिया ने वोटरों को अपने पक्ष में मतदान के लिए आतंकित किया और बड़े ही अलग अंदाज़ में जनता के बीच अपनी दहशत स्थापित की।

गुरु के रास्ते पर चलते थे मोहबिया

मोहबिया जगन्नाथ मिश्र को अपना मार्गदर्शक मानता था और उनके ही रास्ते पर चलता था, एक प्रचलित किस्सा है कि मोहबिया अपने गुरु के तरह ही दसों ऊँगली में अंगूठियां पहनता था और एक बार अपने इलाके में यज्ञ करवाने के लिए उसने तमाम अंगूठियां बेच दी थी बावजूद इसके कि उसके पास धन संपत्ति की कोई कमी नहीं थी लेकिन, महान छवि स्थापित करने का ये एक अच्छा तरीका माना जा सकता है। रसूख तो इतना कि जिस भी वाहन पर कड़ाम-कड़ाम लिखा होता था उसे छूने की हिम्मत पुलिस में भी नहीं थी।

पुराने तरीकों से वोट बटोरने की चाह

इस सन्दर्भ को आज के दौर में समझने कि कोशिश करेंगे तो ये समझना बेहद आसान हो जायेगा की जनता को किस प्रकार से विनम्र धमकी देकर उनके मनोवृति को आतंरिक डर से ग्रसित कर उनके मत को अपने पक्ष में लाने का नेताओं का ये टेक्टिक्स/तरीका काफी पुराना है तब से जब शायद हम अस्तित्व में भी नहीं थे।

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मसीहा बनना चाह रहा था मोहबिया

वहीं, कुछ नेताओं के करतबों के किस्से कुछ यूं प्रचलित है कि वर्तमान दौर में भी मोहबिया के तरह के हथकंडे अपनाकर लोगों के बीच ऐसे घूमते है मानो वो एक मसीहा है और जनता के पास कोई अन्य विकल्प भी नहीं है। हाथ जोड़कर आतंकित करना किसे कहते है ये महोबिया के इस छोटे से उदाहरण से बखूबी समझा जा सकता है। वर्तमान में भी चुनावी जगत में ऐसे मोहबिया है जिसे आप खुद से पहचानकर और समझकर उस समाज की स्थापना कर सकते है जिसमें आप दहशतगर्दी से वंचित होकर नए भविष्य को भयमुक्त वातावरण में सृजित कर सकते हैं।

शिवम प्रेरणा की रिपोर्ट 

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