प्रशांत रंजन
पटना: आज बाबा तुलसीदास जी की जयंती है। महर्षि वाल्मिकी ने रामायण रचकर अतुल्य कार्य किया है। तथापि, गुलामी से घिरे भारत के मानस को अपनी अमर कृति से जागृत करने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी उतने ही स्मरणीय हैं। आज जब 60 साल उम्र के बाद लोग रिटायर होकर घर बैठ जाते हैं, तुलसी बाबा ने 61 वर्ष की आयु में बनारस के गंगाजी के आंचल में आसन लगाकर 1572-74 ई. के बीच बाबा ने ऐसा ग्रंथ रचा कि उसने सुषुप्त रामभक्ति को उच्च क्षितिज पर पुनः स्थापित कर दिया। बाबा यहीं नहीं रुके, उन्होंने तीन स्तर पर रामलीला, कीर्तन और कथा का ऐसा ढांचा खड़ा किया कि राजा राम अभिजात्य वर्ग की परिधि से परे जाकर सबके हो गए। श्रीरामचरितमानस के लिखने से पहले ही बाबा को बनारस के तथाकथित विद्वान अभिजात्य समाज का कोपभाजन भी बनना पड़ा। लिखने के बाद भी आलोचनाएं हुईं।
दरअसल, श्रीरामचरितमानस केवल एक धार्मिक कथा का ग्रंथ नहीं है। बल्कि, इसमें एक साथ परिवार कल्याण, सामाजिक न्याय, मानवीय मूल्यों, वैयक्तिक चरित्र से लेकर भाषाई शुद्धि के सूत्र भी हैं। एक सूत्र अभी बता देता हूं – आपके स्कूली बच्चे का उच्चारण ठीक करना है तो हर दिन केवल एक चौपाई उसे पढ़ाइए, लिखकर देता हूं कि अगले 90 दिन में उससे अधिक शुद्ध उच्चारण आपके खानदान में किसी का नहीं होगा। बाबा की जयंती है तो दूसरा सूत्र भी लगे हाथ लीजिए: कभी आपको किसी के यहां जाने को लेकर उधेड़बुन हो तो बाबा की इस चौपाई का स्मरण करें, सारी कंफ्यूजन खत्म हो जाएगी:
आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह।
‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥
इस दृष्टि से देखें तो पाएंगे कि यह अमूल्य ग्रंथ संपूर्ण मानव जाति के लिए आदर्श आचार संहिता है।
तुलसी बाबा की जयंती पर प्रणाम
(यह लेखक के निजी विचार हैं)