भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी के पास स्थित उमराहां गांव में 2024 के अगहनी शुक्ल पंचमी से शुरू विराट आध्यात्मिक समारोह की चर्चा पूरे विश्व में हो रही है। इस आयोजन के बारे में तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं लेकिन इसके पीछ की जो कहानी है उसका सम्बंध भारत के खोए हुए आत्मविश्वास के जागरण से जुड़ा है। हजारों वर्षों की दासता के कारण भारत ने अपना आत्मविश्वास खो दिया था। पिछली शताब्दी में भारत के ऋषियों एवं संतों के आध्यात्मिक संकल्प से भारत का आत्मविश्वास जागृत होने लगा। इसके साथ ही भारत की सौम्य शक्ति भी सक्रिय हुई। कुछ ही वर्षों में भारत का सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक और राजनीतिक वातावरण भी बदलने लगा। राजनीतिक स्वतंत्रता के सात दशक बाद विकसित व समर्थ भारत की ओर हमारे कदम तेजी से बढ़ रहे हैं। हम भारत को विश्व गुरु के पद पर आसीन करने के संकल्प को सिद्ध करने के लिए प्रयासरत हैं।
शताब्दी वर्ष : उमराहां में अमृत काल का सदाफल कलश
काशी के बाहरी क्षेत्र के एक गांव उमराहां का यह स्वर्वेद महामंदिर, भारत की सौम्य शक्ति यानी आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक बनकर विश्व के सामने खडा है। यह दिव्य और भव्य मंदिर हिमालय स्थित शून्य शिखर की कंदरा में महर्षि सदाफल देव जी महाराज के चिदाकाश में उतरे आध्यात्मिक अनुभवों एवं विशुद्ध ज्ञान-विज्ञान से साक्षत्कार कराने वाला तीर्थ केंद्र है। इस विराट आध्यात्मिक केंद्र में एक साथ 20 हजार लोग ध्यान साधना कर आध्यात्मिक अनुभव प्राप्त कर सकते हैं।
समर्थ भारत से कैसे जुड़ा है काशी का स्वर्वेद महामंदिर
अब आप प्रश्न कर सकते हैं कि इस मंदिर का सम्बंध समर्थ भारत से कैसे? तो इस प्रश्न का उतर जानने के लिए आपको 1920 की एक ऐतिहासिक घटना के बारे में जानना होगा। बिहार की राजधानी पटना के निकट दानापुर सैनिक छावनी में 20 दिसंबर 1920 को संत श्री विज्ञानानंद जी महाराज का सैनिकों के समक्ष जोशिला भाषण देश में नई राजनीतिक चेतना उभार का शुभारंभ माना जाता है। बाद में विज्ञानानंद जी महाराज ही सदाफल देव के नाम से विख्यात हुए। सदाफल देव जी महाराज की डायरी में यह बात अंकित है कि वे एक गुहा में समाधि अनुष्ठान में लगे थे। लेकिन समाधि अवस्था में उनके हृदय में यह भाव उठ रहा था कि अपना देश गुलाम है और आप यहां मोक्ष के लिए साधना कर रहे हैं। यह भाव इतना संघानित हो गया कि सदाफल देव जी महाराज अपनी गुफा से निकल गए। गंगा किनारे चलते-चलते वे दानापुर सैनिक छावनी पहुंच गए और यहां भारतवंशी सैनिकों के बीच अपनी मातृभूमि, धर्म और संस्कृति के प्रति उनकी जिम्मेदारी का बोध कराने के लिए भाषण देना शुरू कर दिया।
दानापुर सैनिक छावनी में जोशीला भाषण और संत समाज
1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद भारतीय सैनिकों द्वारा अंगेजों के विरूद्ध उठ खड़ा करने का यह पहला उदाहरण था। अंग्रेजी सरकार ने तत्काल सदाफल देव जी महाराज को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें दो वर्षों के कठोर जेल की सजा दी गयी। जेल की सजा भोगने के बाद सदाफल देव जी महाराज फिर तपस्या करने लगे। अध्यात्मज्ञान से सम्पन्न होने के बाद स्वामीजी के मन में यह भाव आया कि राजनीतिक आजादी के बाद सरकार की बागडोर भारतीयों के हाथों में अवश्य आ जायेगी। लेकिन उससे भारत का समार्थ्य जागृत नहीं होगा। उससे भारत पुनः विश्वगुरू नहीं बन सकेगा। इस भावभूमि पर उन्होंने भारत के आध्यात्म यानी चेतन विज्ञान ब्रह्मविद्या का प्रचार सम्पूर्ण विश्व में करने के संकल्प के साथ वर्ष 1924 में संत समाज की स्थापना की। वैदिक मंत्रों से एक लाख आहुति से लक्षाहुति यज्ञ सम्पन्न करने के बाद महर्षि सदाफल देव जी महाराज ने आध्यात्म राज के संकल्प को पूर्ण करने के लिए संत समाज की स्थापना की घोषणा की।
ईश्वर को जगाने के लिए रची आध्यात्मिक प्रार्थना
स्वामीजी ने राजनीतिक आजादी के बाद भारत की मूल प्रकृति, संस्कृति व धर्म के अनुसार समाज और राज्य व्यवस्था के लिए अनुकूल सामाजिक, राजनीतिक और बौद्धिक वातावरण निर्माण को अति आवश्यक माना है। इसके बाद ही अपनी धरती माता को सही अर्थों में विदेशियों की निरंकुश रावणशाही मानसिकता से मुक्त कराया जा सकता है। भारतीय सैनिकों में अपने देश, धर्म और संस्कृति के प्रति भक्ति का भाव भरने के जुर्म में कठोर कारावास की सजा भोगते हुए सदाफल देव जी महाराज ने एक प्रार्थना की रचना की थी। वह रोज उसका पाठ करते थे।
वह प्रार्थना है-
शोक का दिन आज मेरा, न्याय भगवन कीजिए।
विश्व का तू न्याय करता, ईश यह वर दीजिए।
स्वाधीन भारत कीजिए, पद दीजिए अब ना टरूं।
रोऊं मैं किससे को सुने, प्रभु शरण किसकी मैं परूं।
परचार में, परभाव में, प्रभु रोक वाणी है यहां।
स्वच्छन्द वाणी धार बिनु, प्रभु अज्ञता दुःख दूर कहां।
नीति नियम विरुद्ध सारे, काम भारत हो रहा।
किस भांति तव आदेश जीवन, को सुनाऊं प्रभु महा
गोबध मद्यप पाप सारे, धर्म भक्ति क्षीण गई।
मलेच्छ नीच समाज बाढ़े, भक्त सज्जन हीन भई।
इन दुर्जनों को शुद्ध कीजे या निकालो या मही।
प्रभु दीन भारत लो शरण में विनय दुख जन की यही
देश-विदेश में प्रचार-प्रसार और विहंगम योग संत समाज
स्वामी श्री सदाफल देव जी महाराज के सत्य संकल्प से स्थापित विहंगम योग संत समाज का कार्य अनवरत आगे बढ़ता गया। उनके उत्तराधिकारी आचार्य श्री धर्मचंद्र देव जी महाराज ने प्रसिद्धि परांगमुख वृति के साथ उनके काम को सम्पूर्ण देश में फैलाया। उनके बाद द्वितीय आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज ने देश से बाहर इस ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। आचार्य श्री स्वतंत्र देव जी महाराज के साथ उनके उतराधिकरी श्री विज्ञान देव जी महाराज इस ज्ञान का प्रचार प्रसार कर रहे हैं।
स्वर्वेद में चारों वेदों के सारतत्व ‘सारशब्द’ की महिमा
सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज ने चारों वेदों के तत्वों को लेकर स्वर्वेद नामक ग्रंथ की रचना की थी। उस ग्रंथ में वर्णित विचार को पूरे विश्व में ले जाने के संकल्प के साथ वाराणसी के पास विशाल स्वर्वेद महामंदिर का निर्माण कराया गया है। इस महामंदिर की दिवारों पर स्वर्वेद के दोहे अंकित हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस महामंदिर का दौरा किया है। प्रधानमंत्री ने वहां आयोजित समारोह में सदाफल देव जी महाराज की जेल यात्रा के शताब्दी वर्ष की चर्चा की थी।
औपनिवेशिक शक्तियों के चंगुल से भारत को मुक्त कराने के बाद महर्षि सदाफल देव जी महाराज ने भारत और भारत के लोगों को औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त कराने के लिए जो अभियान यात्रा शुरू की थी वह आज पूरे प्रवाह में जारी है। अब भारतवंशियों को औपनिवेषिक मानसिकता से मुक्ति दिलाने का वह संकल्प सिद्ध होता दिख रहा है। स्वर्वेद महामंदिर की दिव्यता और भव्यता का दर्शन हम सभी को अवश्य करना चाहिए।