अश्विनी कुमार चौबे, पूर्व केंद्रीय मंत्री
सुशील जी का स्मरण करते ही मेरी आंखों के सामने 50-55 वर्षों की अनंत स्मृतियां सामने आ जाती हैं। उन्हें अभी और बहुत काम करना था लेकिन, चले गए। मेरा मानना है कि वे प्रयोगधर्मी थे। विद्याथी परिषद से लेकर भाजपा तक उन्होंने कई प्रयोग किए जिसके अच्छे परिणाम आए। विद्यार्थी जीवन से ही हम दोनों को संघ के प्रचारक, विचारक और कुशल संगठनकर्ता गोविंदाचार्य का स्नेह और मार्गदर्शन मिलता था। विद्यार्थी परिषद के कार्य विस्तार में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। पटना विश्वविद्यालय में पहले वामपंथी छात्र संगठनों की स्थिति मजबूत थी। पटना विश्वविद्यालय के छात्र और विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के रूप में सुशील मोदी ने कुछ प्रयोग किए थे। उसके बेहतर परिणाम सामने आए थे। संघ की शाखा में हम लोग कबड्डी खेलते थे।
साइंस कॉलेज के मैदान में पहला प्रयोग
एक दिन सुशील जी ने कहा कि हम लोगों को साइंस कालेज के मैदान में कबड्डी प्रतियोगिता का आयोजन करना चाहिए। मैं भी उनके इस विचार से सहमत हो गया। इसके बाद हम लोगों ने विभिन्न कालेजों, छात्रावासों में संपर्क करना शुरू किया। प्रतियोगिता में भाग लेना है तो अभ्यास भी करना होगा। कबड्डी प्रशिक्षक के रूप में हम लोग विभिन्न कालेजों व छात्रावासों में जाने लगे। संपर्क बढ़ा, नजदीकी बढ़ी और कुछ ही माह में हमारी टोली भी बढ़ गयी। कबड्डी प्रतियोगिता का हमारा वह प्रयोग सफल हुआ था। मुझे स्मरण है गोविंदाचार्य ने भी इस प्रयोग की प्रशंसा की थी। इसके बाद पटना विश्वविद्यालय में संध की शाखाओं की भी संख्या बढ़ गयी थी। उस समय पटना विश्वविद्यालय में 18 नियमित शाखाएं थीं। उस प्रयोग के परिणाम स्वरूप पटना विश्वविद्यालय में हमारी स्थिति मजबूत हुई और हम छात्रसंध का चुनाव जीतने और अपने समर्थन से दूसरों को भी जीताने की स्थिति में आ गए। विद्यार्थी परिषद के प्रत्याशी के रूप में सुशील मोदी महामंत्री पद के लिए निर्वाचित हुए, वहीं हमारे समर्थन से लालू यादव छात्रसंध के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे।
रक्तदान शिविर के माध्यम से छवि निर्माण
इस प्रयोग के बाद सुशील जी के नेतृत्व में हम लोगों ने रक्तदान शिविर का आयोजन शुरू किया। उसके कारण पटना शहर के प्रतिष्ठित लोगों में विद्यार्थी परिषद एवं उसके कार्यकर्ताओं की अच्छी छवि बनी। हमारी छवि किसी उदंड संगठन की नहीं बल्कि राष्ट्र और समाज के लिए समर्पित और कुछ करने वालों की बनी। हमारे इन कार्यो की जानकारी जयप्रकाश नारायण तक पहुंच गयी थी। रक्तदान के माध्यम से विद्यार्थी परिषद की बनी छवि आपातकाल के समय काम आयी। सरकार की दमनकारी नीतियों के कारण लोग भयभीत थे, इसके बावजूद हमें अपने घरों में आश्रय देते थे। भोजन देते थे। सहायता भी करते थे। मेरा मानना है कि हमारा सामाजिक सम्पर्क क्षेत्र इसके माध्यम बहुत विकसित हुआ जो हमारी बहुमूल्य पूंजी थी।
जेपी को आमंत्रित करने का संकल्प
यहां एक घटना का जिक्र आवश्यक समझता हूं। 1973 में पटना विष्विद्यालय में हम लोगों ने छात्र नेता सम्मेलन का आयोजन किया था। हमने विचार किया कि उस सम्मेलन के मुख्य अतिथि के रूप में हम जेपी को आमंत्रित करेंगे। आमंत्रित करने के लिए हम लोग कदमकुआं स्थित जेपी के आवास पर पहुंच गए। उस समय जेपी आपने आवास के प्रथम तल पर बैठ कर अध्ययन कर रहे थे। हमने उनके सहयोगी से कहा कि हम पटना विश्वविद्यालय के छात्र है, उन्हें छात्र नेता सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने आए हैं। हम सीढ़ी के पास नीचे खड़े थे। जब उनके सहयोगी ने हमारे आने की सूचना दी तब उन्होंने गुस्से में जोर-जोर से कहा कि किसी की दुकान प्रतिष्ठान जलाने वाले अराजक छात्रों से मैं नहीं मिलना चाहता। कह दो कि वे यहां से चले जाएं। सीढ़ी के पास खड़े हम लोग जेपी की आवाज सुन रहे थे। वस्तुतः कुछ दिन पहले ही छात्रों के एक समूह ने पटना के एक रेस्तरां में आग लगा दी थी। खाने के बाद पैसा न देने के कारण होटल मालिक से उनकी लड़ाई हो गयी थी। इसके बाद उदंड छात्रों के समूह ने उस होटल में आग लगा दी थी। यह खबर पटना के अखबारों में छपी थी और जेपी उससे आहत थे।
रक्तदान की छवि ने जेपी को किया प्रभावित
जेपी के सहयोगी लौटकर आए और कहा कि वे आप लोगों से नहीं मिलेंगे। कहा है कि आप लोग यहां से चले जाइये। सुशील जी ने कहा कि हम यहां से ऐसे कैसे चले जाएं। आग लगाने वालों में तो हम नहीं थे। जेपी के सहयोगी के कहने के बाद भी हम लोग वहीं सीढ़ी के पास बैठे रहे। इसी बीच जेपी के कार्यालय के लोगों से बातचीत होने लगी। हमने अपना परिचय दिया कि हम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता हैं। पटना विष्वविद्यालय के छात्र हैं लेकिन हमारा संबंध उन छात्रों से नहीं है। इसी बीच एक व्यक्ति ने हमसे पूछा कि आप लोग वही हैं, जो रकतदान करते हैं। हमने कहा जी हम वही हैं। जेपी को हमारे इस काम की भी जानकारी थी। इस बात की जानकारी जब जेपी को हुई तब उन्होंने हर्ष के साथ हमें अपने पास बुलाया। छात्र सम्मेलन में आने का निमंत्रण भी स्वीकार कर लिया। वे हमारे सम्मेलन में शामिल हुए थे।
अद्भुत नेतृत्व क्षमता के धनी थे सुशील जी
छात्र जीवन से ही सुशील जी में नेतृत्व की अद्भुत क्षमता थी। वे सही बात के लिए बड़े से बडे आदमी के सामने भी डटकर खड़े हो जाते थे। संघ की शाखा में उन्हें जो संस्कार और दृष्टि मिली उस पर वे आगे बढ़कर काम करते थे। उस समय कहां किसी को पता था कि उस काम के बदले हमें कुछ प्राप्त भी होगा। लेकिन, संघ से जो हमें विचार मिले वे समय के साथ-साथ दृढ़ होते चले गये और आगे दृढ़ संकल्प बन हमें प्ररित करते रहे। उस समय मेरी या सुशील मोदी की कल्पना में भी यह बात नहीं थी कि हम विधायक, सांसद या मंत्री बनेंगे।
अनिश्चितता का कालखंड और अटूट धैर्य
विद्यार्थी परिषद के काम से लौटने के बाद सुशील जी के सामने एक अनिश्चितता का काल खंड था। एक सामान्य व्यक्ति के नाते जीवन यापन के लिए वृति और गृहस्थी की समस्या थी। उस समय भी उनका धैर्य अद्भुत था। मुझसे उनका पारिवारिक संबंध था। मैं हमेशा उनके घर जाता था। उनकी माताजी मुझे पुत्रवत मानती थीं। उनकी माता जी अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहती थीं कि मेरे बाद सुशील का क्या होगा? यदि इसकी शादी नहीं हुई तो इसके जीवन में बहुत कष्ट होगा। शादी की बात करने पर उठकर चला जाता है। बूढापे में इसको अपार कष्ट होगा। एक दिन उन्होंने उनकी कुंडली देते हुए कहा कि किसी से दिखाओ कि इसकी शादी कैसे होगी। राजेन्द्र नगर में रहने वाले एक प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य ने उनकी कुडली देखकर बताया था कि उनका अंतर्जातीय विवाह होगा और उन्हें राजयोग है।
(पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे से बातचीत पर आधारित)