सुमन कुमार झा
कटिहार के सांसद निखिल कुमार चौधरी जी के बाद मुझे सुशील कुमार मोदी जी के साथ काम करने का अवसर मिला। उनके साथ काम करते हुए मुझे जो अनुभव हुआ, उसके आधार पर मैं कह सकता हूं कि लक्ष्य आधारित सतत अध्ययन, शोध और अद्यतन प्रामाणिक डाटा के बिना राजनीति को लोकोपयोगी और रचनातमक बनाना संभव नहीं होता। आज के बदले हुए परिवेश की राजनीति को भी प्रासंगिक बनाए रखने में इसकी भूमिका महत्वपूर्ण है। इस कौशल के मामले में वे एक प्रतिमान हैं।
प्रमाणिक सूचनाओं और जानकारियों का भंडार
सुशील जी अक्सर कहा करते थे कि समाज, देश, और लोक में जो भी है उससे राजनीति का संबंध है। अतः एक राजनेता को सभी क्षेत्रों के सम्बंध में ज्ञान रखना चाहिए। उनकी जब यह बात मैं ध्यान में लाता हूं तो राजनीति के महापंडित चाण्क्य की याद आती है जिनका महान ग्रंथ अर्थशास्त्र है। अर्थशास्त्र में केवल वित्तीय प्रबंधन की ही बात नहीं है, बल्कि शासन, प्राकृतिक संपदा, लोक इच्छा, लोक आकांक्षा, लोक व्यवहार, लोक मानस, परम्परा, जीव-जंतु, पादप, जैसे विषयों से संबंधित जानकारियां भी उपलब्ध हैं। सुशील जी का प्रयास होता था कि उनके पास हरेक क्षेत्र की प्रामाणिक सूचनाएं और जानकारियां रहें। इसके लिए वे सतत प्रयास करते थे। कही से भी कोई जानकारी या ज्ञान मिल जाए तो वे उसे तत्काल लिपिबद्ध व व्यवस्थित करा देते थे ताकि समय पर आसानी से वह उपलब्ध हो सके। यह उनके दैनिक जीवन का एक अहम हिस्सा था। कार्यालय आने के पूर्व वे सभी समाचार पत्रों को पढ़कर अपडेट हो जाते थे। यदि किसी कारणवश सुबह समाचारपत्र नहीं पढ सके तो वे गाडी में बैठकर उसे पढते थे और उपयोगी आलेख या खबर को चिह्नित कर देते थे ताकि वह उनके कंटेट लाइब्रेरी में संग्रहित करा सकें।
जानकारियां संग्रहित करने की आदत और लाइब्रेरी
विभागवार पेपर कटिंग रखने की उनकी व्यवस्था अनुकरणीय है। जब कभी भी जरुरत पड़ती थी तो उनके संग्रह से आसानी से उसे निकल कर उपयोग किया जा सकता था। बाद में तो उन्होंने उसे डिजिटल कराना भी शुरू करा दिया था। उनका प्रेस रिलीज भी एक महत्वपूर्ण स्रोत होता था क्योंकि उसमें प्रामाणिक सूचनाएं और तथ्य होते थे। वे अपने प्रेस रिलिज को भी वर्गीकृत कर उसका संग्रहण कराते थे। अखबारों में छपी खबरों या आलेखों का उपयोग प्राथमिक स्रोत के तौर पर करते थे। अखबारों की खबरों से प्राप्त तथ्यों की प्रामाणिकता की जांच करना और इसके बाद अपने लाइब्रेरी का हिस्सा बनाने का नियम जो उन्होंने तय किया था उसका वे कड़ाई से पालन करते थे।
राजनीति के लिए डाटा-तथ्यों के संग्रह का महत्व
आरबीआई जैसे कुछ महत्वपूर्ण संस्थाओं व संगठनों से प्रकाशित होने वाले डाटा या जर्नल को भी वे एकबार जरूर देखते थे और उसके कंटेंट के बारे में एक सारांश तैयार कर उसे अपनी लाइब्रेरी का हिस्सा बना लेते थे। उनका यह प्रयास होता था कि डाटा और सूचनाओं के बहुत बड़े संग्रह में उपयोगी सूचनाएं कहीं खो न जाएं। इस मामले में वे सावधान रहते थे। अपने उस बड़े डाटा संग्रह का भरपूर उपयोग करने में वे सक्षम थे। आवश्यकता पड़ने पर बहुत पुरानी रिपोर्ट भी उनके पास सहजता से उपलब्ध होती थी। वे अपनी डायरी या टैब में बहुत सारी बातें स्वयं नोटकर उसे सहेजते थे।
अक्सर नेता चुनाव आने पर डाटा तैयार करते हैं। चुनाव समाप्त होने के साथ ही नेता या पार्टी कर्यालय में डाटा संग्रहण का काम भी बंद हो जाता है। लेकिन, इस मामले में सुशीलजी भिन्न थे। चुनाव परिणाम आने के बाद वे चुनाव से सम्बंधित सारे डाटा का संग्रह कराते थे। उसमें बूथ व क्षेत्र स्तर तक की सभी प्रकार की जानकारियां व सूचनाएं शामिल होती थी। उसके आधार पर समीक्षा और तुलनातमक अध्ययन पर आधारित रिपोर्ट भी उसमें शामिल होता था। चुनाव के दौरान क्षेत्र विशेष में उठने वाले मुद्दे, समीकरण कार्यकर्ताओं के व्यवहार जैसे बिंदुओं पर भी प्रामाणिक सूनाएं एकत्रित कराते थे। विभिन्न स्रोतों से मिलने वाली जानकारियों की क्रांस चेकिंग कर उससे संबंधित निष्कर्ष को भी रिपोर्ट में दर्ज करा देते थे। इतना ही नहीं, क्षेत्रीय दलों की स्थिति, उनकी रणनीति और उसके परिणामों को भी लिपिबद्ध कर रिपोर्ट के रूप में संग्रहित करा दिया जाता था। अन्य राज्यों में चुनाव से सम्बंधित डाटा का संग्रह भी उनके पास होता था।
व्यावहारिकता की मिसाल थे सुशील मोदी
यात्रा के क्रम में सुशील जी काफी लोगो से मिलते थे। उनसे बातचीत के क्रम में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां यदि मिल जाती थीं तो वे उसे नोट कर लेते थे। ऐसे मिली जानकारियों पर भी वे काम करते थे और उसकी प्रामाणिकता सिद्ध होने पर उसका उपयोग करते थे। वे अक्सर कहते थे चुनाव में सामाजिक समरसता एक महत्वपूर्ण पक्ष है। इस यथार्थ को स्वीकार कर वे सामाजिक समरसता की स्थिति से समबंधित प्रामाणिक सूचनाएं एकत्रित कराते थे। इस अर्थ में वे एक व्यावहारिक राजनेता थे। चुनाव क्षेत्रों की डेमोग्राफी व विभिन्न वर्गों के मतदाताओं की मनःस्थिति का एक आंकलन उनके पास होता था। मतलब चुनाव सम्पन्न होने के बाद अगले चुनाव के लिए उपयोगी डाटा पूरी तरह से तैयार हो जाती थी। ऐसे डाटा का उपयोग किसी राजनीतिक अभियान या समीक्षा जैसे कामों के लिए उपयोगी होते थे।
परफेक्शनिस्ट होना सुशील जी की पहचान
लोकसभा या विधानसभा का तुलनात्माक अद्यतन अध्ययन होने के कारण पार्टी का कोई भी नेता उन्हें भ्रमित नहीं कर सकता था। बल्कि वे किसी को भी वस्तु स्थिति बताकर उसे गाइड करने की स्थिति में होते थे। उनकी इस तैयारी के कारण पार्टी का कोई कार्यकर्ता या जनप्रतिनिधि जब उनसे मिलने आता था तो पूरी जानकारी के साथ आता था। धीरे-धीरे लोगों में यह जानकारी फैल गयी थी कि सुशील मोदी के पास सभी प्रकार की अद्यतन सूचनाएं सहज उपलब्ध होती हैं। सांसद-विधायक बिना डाटा के उनसे मिलने से हिचकते थे। जानकरी के मामले में उन्हें परफेक्शनिस्ट कहा जा सकता है क्योंकि वे शायद, लगभग जैसे शब्द सुनना नहीं चाहते थे। बैठकों में उपस्थित से संबंधित वृत पर बात के क्रम में कभी कोई कह देता था कि 15-20 लोग उपस्थित थे तो वे तत्काल टोक देत थे। इसका क्या मतलब है उपस्थित लोगों की संख्या तो निश्चित ही होगी। इसका मतलब तो यही हुआ कि बैठक हुई ही नहीं। यदि बैठक हुई भी तो आप बैठक के प्रति गंभीर नहीं थे। उन्होंने प्रयास करके भाजपा में रिपार्टिंग की एक परम्परा विकसित की जिसमें शायद, लगभग जैसे शब्दों का कोई स्थान नहीं था।
शोध कौशल से जनहित में पाईं कई सफलताएं
पत्रकारों को वे सम्म्मान देते थे। पत्रकारों को वे खबर देते थे। इसके साथ ही पत्रकारों से वे सूचनाएं भी लेते थे। पत्रकारों से प्राप्त सूनाओं पर वे काम करते थे। प्रामाणिक डाटा संग्रह का उनका यह काम अद्भुत और अनुकरणीय है। अपने इस विशेषता के कारण ही वे वित्त मंत्री के रूप में कुछ सफल और उपयोगी प्रयोग कर सके। जीएसटी काउंसिल के अध्यक्ष के रूप में उनके कार्य की सर्वत्र सराहना की गयी। वहीं बिहार में पहली बार आर्थिक सर्वेक्षण का कार्य उनके इसी शोध कौशल का परिणाम है।
(लेखक सुमन कुमार झा सुशील मोदी के साथ बतौर सहायक काम कर चुके हैं)