सुरेंद्र किशोर
मैंने सुशील कुमार मोदी को करीब से देखा था, जब वे बिहार विधान सभा में प्रतिपक्ष के नेता के रूप में प्रभावकारी भूमिका निभा रहे थे। तब मैं प्रेस संवाददाता था। मैं सन 1983 से सन 2001 तक दैनिक जनसत्ता का बिहार संवाददाता था। मोदी जी सन 1996 से सन 2004 तक प्रतिपक्ष के नेता थे। सन 1990 से 1997 तक लालू प्रसाद मुख्यमंत्री थे। सन 1997 से 2005 तक राबड़ी देवी मुख्यमंत्री थीं।
नेता प्रतिपक्ष की कारगर भूमिका
उस काल खंड में प्रतिपक्ष के नेता के रूप में कारगर भूमिका निभाना कोई सामान्य बात नहीं थी। बहुत साहस,समझदारी और तथ्यपरकता की जरूरत होती थी। वह सब गुण सुशील मोदी में मौजूद थे। उस राज को पटना हाईकोर्ट ने ‘‘जंगल राज’’ कहा था। विधायिका के भीतर और बाहर का माहौल सामान्य नहीं था। सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच अक्सर तनावपूर्ण स्थिति पैदा होती रहती थी। अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी सुशील मोदी ने कारगर भूमिका निभाई,यह अधिक महत्वपूर्ण बात है। वे अच्छी राजनीतिक और आर्थिक समझ वाले नेता थे। साथ ही, उनके पास अकाट्य तथ्यों का भंडार रहता था। उनका निजी संदर्भालय बेजोड़ था।
पक्की जानकारी जुटाने में माहिर
उन दिनों राज्य के विभिन्न हिस्सों में नर संहार तथा अन्य तरह की घटनाएं होती रहती थीं। सुशील मोदी ऐसी घटनाओं के बारे में विस्तार से जानने के लिए यथा संभव और शीघ्रताशीघ्र सुदूर स्थित घटनास्थलों पर भी पहुंच जाते थे। वहां से वे पक्की जानकारी ले कर पटना आते थे। वह सब वे मीडिया को बताते थे। या, सदन की बैठक हो रही होती थी तो मोदी जी सदन में वह सब बातें मजबूती से रखते थे। उन्होंने नेताओं तथा अफसरों के भ्रष्टाचार के भी कई बड़े मामलों को उजागर किया। उन मामलों को तार्किक परिणति तक पहुंचाया। चारा घोटाले पर तो उनकी किताब भी आई है। जन मानस पर उसका असर होता था।
बिना जानकारी नहीं बोलते थे
सुशील मोदी की खूबी यह थी कि विषय की विस्तृत जानकारी लिए बिना वे नहीं बोलते थे। उन्हें अच्छी राजनीतिक और आर्थिक समझ वाला नेता माना जाता था। सुशील मोदी को सन 2011 के जुलाई महीने में माल और सेवा कर (जीएसटी) के कार्यान्वयन के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति का अध्यक्ष बनाया गया था। तब बिहार में वे उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री थे।
खलती है मीडिया को उनकी कमी
सुशील मोदी उन अत्यंत थोड़े से नेताओं में थे जोे बारी-बारी से विधान सभा,विधान परिषद,लोक सभा और राज्य सभा के सदस्य बने। मीडिया से भी कुल मिलाकर उनका संबंध अच्छा रहता था। वे लोगों से विनम्रता और शालीनता से मिलते थे। मीडिया को भी उनकी कमी अब खलती है।