श्याम राजक को आरजेडी से इस्तीफा दिये हुए 3 दिन हो चुके हैं, लेकिन अब तक उन्होंने ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि उनका अगला कदम क्या होगा। ऐसे में श्याम रजक केे अगले राजनीतिक पड़ाव को लेकर सियासी अटकलें शुरू हो गईं हैं। राजद तो उन्होंने छोड़ा ही है। समाजवादी चोला उनको भाजपा में जाने नहीं देगा। लेकिन जदयू से अबतक कोई न्योता नहीं मिलना और श्याम रजक की ओर से तीन दिन तक चुप्पी साधे रहना यह संकेत देता है कि शायद वे PK की जनसुराज के बारे में मंथन कर रहे हैं।
क्यों PK से हाथ मिला सकते हैं श्याम रजक
दरअसल, श्याम रजक के बारे में जनसुराज को लेकर चली हवा के अपने कारण हैं। जनसुराज को भी एक बड़े दलित चेहरे की तलाश है और श्याम रजक को भी एक ऐसे दल की जरूरत है जहां उनकी पूछ हो और उनकी बात को गंभीरता से सुना जाता हो। पीके गांधी जयंती 2 अक्टूबर के दिन अपनी नई राजनीतिक पार्टी लॉन्च करने वाले हैं। इससे पहले उन्होंने बिहार में पिछले कई महीनों से घूम—घूमकर इसके लिए ठोस जमीन भी तैयार कर ली है। उनकी जनसुराज से बड़ी संख्या में लोग जुड़े भी हैं। ऐसे में श्याम रजक जनसुराज पार्टी की बड़े दलित चेहरे वाली खाली वैकेंसी में पूरी तरह फिट बैठते हैं।
जनसुराज में जाने का नफा और नुकसान
PK ने कहा भी है कि टिकट बंटवारे में वे दलित और मुसलमानों को तरजीह देंगे। बिहार विधानसभा का चुनाव उनकी पार्टी लड़ेगी, पर वे खुद नहीं लड़ेंगे। बिहार की कमान किसी दलित के हाथ में देंगे। श्याम रजक के लिए यह उचित और अनुकूल जगह हो सकती है। लेकिन श्याम रजक के लिए एकदम से जनसुराज में चले जाना इतना आसान भी नहीं। क्योंकि ऐसा करने के अपने पॉलिटिकल नफा और नुकसान हैं। यही कारण है कि राजद छोड़ने के बाद श्याम रजक अब तक सियासी चुप्पी साध मंथन में लीन हैं। वे जानते हैं कि जनसुराज में जाना जोखिम भरा कदम होगा। एक तो नई पार्टी, दूसरे जनसुराज की आमलोगों में स्वीकार्यता। यानी फायदा भी और रिस्क भी।
RJD और JDU में श्याम रजक को क्या दिक्कत
श्याम रजक के अगले राजनीतिक पड़ाव के संकेत उन कारणों में देखे जा सकते हैं जिनके कारण उन्होंने दूसरी बार राजद और एक बार जदयू छोड़ी थी। राजद में श्याम रजक को आउटडेटेड समझा जाने लगा था। हाल के लोकसभा चुनाव में वे जमुई या समस्तीपुर से पार्टी का टिकट चाह रहे थे। लेकिन पार्टी ने उन्हें घास नहीं डाला। इसके अलावा राजद के युवा नेतृत्व के साथ वे तालमेल और सामंजस्य भी नहीं बिठा पा रहे थे। ऐसे में उन्हें वहां अपने राजनीतिक करियर के बंद गली में जाने का खतरा महसूस होने लगा। रही बात जदयू की तो वहां वे मंत्री भी बनाए गए। कुछ समय तो सब ठीक रहा, लेकिन नीतीश कुमार से धीरे—धीरे उनके रिश्ते खराब होते गए। इसके बाद बढ़ती तल्खी के बीच नीतीश ने उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया था और श्याम रजक एक बार फिर राजद में लौट गए थे।
रिस्क तो है, लेकिन जनसुराज बेस्ट च्वाइश
स्पष्ट है कि श्याम रजक इस समय सियासी उहापोह में फंसे हुए हैं कि क्या करें और क्या न करें। लेकिन उन्हें इतना जरूर पता है कि अगर बिहार की राजनीति करनी है तो उन्हें लालू के विरोधी खेमे में ही शरण मिल सकती है। विरोधी सियासी खेमा भी वह होना चाहिए जिसमें उनकी पूछ हो और जिसके लिए वे भी फायदेमंद हो सकें क्योंकि श्याम रजक धोबी समाज से आते हैं और पीके को भी एक बड़े दलित चेहरे की तलाश है। ऐसे में श्याम रजक के लिए प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी एक सही जगह हो सकती है। जहां उनकी बात का वजन भी होगा और उन्हें पार्टी के निर्णयों में भी अच्छी भागीदारी मिल सकती है।