भारत का संविधान तो सेक्युलर है लेकिन राजनीति का चाल-ढाल एकदम कम्युनल रहा है। अल्लाह के कानून को पूरी धरती पर लागू कराने के लिए बवाल मचाने वाली जमात चाहती है कि सेक्युलर संविधान वाले देश में उनका वक्फ कानून उनके मन-मिजाज के मुताबिक मजबूती से चलता रहे। लेकिन, मोदी सरकार ने तो सेक्युलर संविधान के तराजु पर वक्फ कानून को तौलना शुरू कर दिया है।
अंग्रेजों ने कहा हिंदू-मुसलिम दोनों अलग-अलग प्रकार के प्राणी है। दोनों के हित अलग-अलग हैं। अतः भारत को यदि आजाद होना है तो इसे दो भागों में बांटने का प्रस्ताव स्वीकार करना होगा। हमारे नेताओं ने आजादी के लिए भारत का विभाजन स्वीकार कर लिया।
सांप्रदायिक राजनीति का उदहारण वक्फ कानून
साम्प्रदायिक आधार पर भारत का बंटवारा तो हो गया लेकिन साम्प्रदायिक मानसिकता विभाजित भारत में न केवल जीवित है, बल्कि और मजबूत हुई है। इसका उदाहरण वक्फ कानून है।तुष्टिकरण की राजनीति के तहत 2013 में यूपीए की सरकार ने जब वक्फ कानून में बदलाव किया तब भारत में वक्फ के अधीन जमीन का क्षेत्रफल दोगुना से भी अधिक हो गया, 2009 में वक्फ के पास करीब 4 लाख एकड़ जमीन थी जो अचानक बढ़ कर करीब 10 लाख एकड़ हो गयी.
जब से वक्फ कानून में बदलाव की बात उठी है तब से बवाल मचा हुआ है। बवाल मचाने वालों में मुसलमानों से ज्यादा सत्ता सुख के लिए कुछ भी करने को आतुर हिंदुओं की संख्या ज्यादा है। थोक मुसलिम वोट हथियाने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार राजनीतिक पार्टियां या नेताओं ने वक्फ कानून के नाम पर मातम ड्रामा शुरू कर दिया है। कोई छाती पीट रहा है तो कोई अजीब तरीके से धमकी दे रहा है। राजनीति का हाई वोल्टेज वक्फ ड्रामा चरम पर है।
क्या है वक्फ
अब प्रश्न उठता है कि वक्फ कानून क्या है? आम आदमी इसके बारे में कुछ जानता भी है क्या? इसका उत्तर यह है कि भारत के 95 प्रतिशत से भी अधिक लोगों को वक्फ व उसके कानून के बारे में जानकारी नहीं है। वक्फ का इतिहास हिंदुस्तान में इस्लामी आक्रांताओं के शासन के साथ शुरू होता है। मध्यकाल यानी मुसलमान शासकों के समय में यह नियम बना दिया गया था कि जब कोई व्यक्ति अल्लाह या इस्लाम के नाम कोई संपत्ति दान देता है तो उसकी देखरेख वक्फ करेगा। आजादी के बाद भी इस व्यवस्था को जारी रखने के लिए बहुत पहले भारत में वक्फ बोर्ड बना दिया गया था।
तुष्टिकरण की राजनीति
अब प्रश्न उठता है कि साम्प्रदायिक आधार पर जब भारत का विभाजन कर ही दिया गया तब भारत में वक्फ बोर्ड की क्या आवश्यकता थी? खैर, विभाजन के बाद भी भारत में वक्फ का अस्तित्व कायम रहा। जहां तक हम जानते हैं कि भारत में संविधान का राज है। संविधान के अनुसार निर्णय देने के लिए यहां न्यायपालिका की व्यवस्था है। लेकिन, मुसलिम तुष्टिकरण की राजनीति ने भारत के संविधान को बदलने में संकोच नहीं किया।
संविधानसभा की घटना
यहां संविधानसभा की एक रोचक घटना का जिक्र आवश्यक है। संविधानसभा ने ही काफी विमर्श के बाद संविधान का निर्माण किया था। संविधान का निर्माता कोई व्यक्ति नहीं बल्कि भारत की जनता के प्रतिनिधियों की सभा है। टब बात करते है संविधानसभा की वह आंखें खोलने वाली घटना की। संविधानसभा में एक मुसलमान सदस्य ने कहा था कि भारत में मुसलमान अल्पसंख्याक हैं अतः इनके मत का वेटेज अधिक होना चाहिए। उनके इस कथन पर सरदार पटेल गुस्से से लाल हो गए थे, उन्होंने कहा था कि आपके इस प्रस्ताव से भारत को टुकड़ों में बांटने वाली साम्प्रदायिक मिजाज की बू आती है। यदि आपको वेटेज चाहिए तो चले जाइए पाकिस्तान।
इस घटना के कुछ ही दिनों बाद दिसम्बर 1950 में सरादर पटेल की मृत्यु हो गयी। इसके बाद भारत की राजनीति बदलने लगी और इसके केंद्र में मुसलिम तुष्टिकरण आ गया। परिणामतः भारत में अभी 32 स्टेट वक्फ बोर्ड हैं। एक सेंट्रल वक्फ बोर्ड भी है। मुसलमानों का एकमुश्त वोट लेने के लिए 1995 में वक्फ बोर्ड की शक्तियां और अधिक बढा दी गयी थी। 2013 में यूपीए सरकार ने 1995 के मूल वक्फ एक्ट में बदलाव करके बोर्ड की शक्तियों में फिर से इजाफा किया था।
सामने आया क्रूर चेहरा
देश में वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर हंगामा मचा हुआ है। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार वक्फ बोर्ड की असीमित शक्तियों पर अंकुश लगाना चाहती है। लेकिन कांग्रेस समेत तमाम विरोधी दल इसकी खिलाफत कर रहे हैं। लेकिन वक्फ बोर्ड की असीमित शक्तियों पर अंकुश लगाना क्यों आवश्यक है? इस प्रश्न का उत्तर ढुंढने के लिए आपको बिहार के विभिन्न जिलों के गांवों में जाना होगा जहां सर्वे के नाम पर वक्फ बोर्ड के लोग ग्रामीणों को धमका रहे हैं।
हाल ही में बिहार की राजधानी पटना से 30 किमी दूर स्थित फतुहा के एक गांव गोविंदपुर को अपना बताते हुए सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इसपर अपना दावा ठोक दिया है। ग्रामीणों से कहा गया है कि वे 30 दिन के भीतर गांव खाली कर दें। जिस गांव पर वक्फ बोर्ड ने दावा ठोका है वहां 95 फीसदी हिंदू आबादी है। यही हाल रहा तो वक्फ बोर्ड यह भी कह सकता है कि भारत पर मुसलमान शासकों का शासन था जिन्होंने भारत की पूरी भूमि अल्लाह के नाम कर दी है। अतः पूरा भारत वक्फ बोर्ड की सम्पति है। यह लोकतंत्र के लिए अशुभ व खतरनाक प्रवृति का संकेत है जो भारत के लिए चिंताजनक है।