बिहार में वोटर लिस्ट रिविजन (SIR) कराने के चुनाव आयोग के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में आज गुरुवार को लंबी सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान याचिका कर्ताओं और चुनाव आयोग की तरफ से अपने—अपने पक्ष में तमाम दलीलें दी गईं जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिहार में वोटर लिस्ट पुनरीक्षण कराना गलत नहीं है। लेकिन इसको समय रहते अंजाम दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, “SIR प्रक्रिया में कोई बुराई नहीं है, लेकिन इसे समय पर किया जाना चाहिए था। अब जब चुनाव नजदीक हैं, तब इतनी बड़ी प्रक्रिया को 30 दिनों में पूरा करने की बात कही जा रही है। यह व्यवहारिक नहीं लगता।” जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ इस पर सुनवाई कर रही है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के साथ ही चुनाव आयोग ने अपनी-अपनी दलीलें पेश कीं। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग की तरफ से मतदाता सूची के पुनरीक्षण को लेकर सवाल किए। शीर्ष अदालत ने चुनाव आयोग से कहा कि आपको यह प्रक्रिया जल्द शुरू करनी चाहिए थी। इस दौरान निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि उसे बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर कुछ आपत्तियां हैं। याचिकाकर्ता का कहना था कि आधार और वोटर कार्ड को क्यों नहीं स्वीकार किया जा रहा है। मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या नियमों में यह स्पष्ट है कि पुनरीक्षण कब करना है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने कहा कि चुनाव आयोग जो कर रहा है वह उसका संवैधानिक दायित्व है। इसे कराने का तरीका चुनाव आयोग तय करेगा। कानून में स्पेशल रिवीजन का प्रावधान है।
इस दौरान पुनरीक्षण में आधार कार्ड को दस्तावेजों की सूची से बाहर रखने पर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से सवाल पूछे। इसपर चुनाव आयोग ने कहा कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है। तब सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा कि आप मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण में नागरिकता के मुद्दे को क्यों उठा रहे हैं? यह गृह मंत्रालय का अधिकार क्षेत्र है। अगर आपको पुनरीक्षण के जरिये नागरिकता की जांच करनी थी तो आपको यह पहले करना चाहिए था। इसमें अब बहुत देर हो चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परेशानी पुनरीक्षण प्रक्रिया से नहीं है। बल्कि दिक्कत इसके लिए चुने गए समय से है। न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि इस गहन प्रक्रिया में कुछ भी गलत नहीं है ताकि गैर-नागरिक मतदाता सूची में न रहें, लेकिन यह इस चुनाव से पहले होना चाहिए। न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा कि एक बार मतदाता सूची को अंतिम रूप दे दिया जाए और अधिसूचित कर दिया जाए और उसके बाद चुनाव हों तो कोई भी अदालत उसमें हाथ नहीं डालेगी।