By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept
Swatva Samachar
Notification
  • Home
  • देश-विदेश
  • राज्य
  • राजपाट
  • खेल-कूद
  • मनोरंजन
  • अपराध
  • अर्थ
  • अवसर
  • आप्रवासी मंच
    • बिहारी समाज
  • मंथन
  • वायरल
  • विचार
  • शिक्षा
  • संस्कृति
  • स्वास्थ्य
  • वीडियो
  • E-Magazine
Font ResizerAa
Swatva SamacharSwatva Samachar
  • देश-विदेश
  • राजपाट
  • खेल-कूद
  • मनोरंजन
  • अपराध
  • अर्थ
  • अवसर
  • आप्रवासी मंच
  • बिहारी समाज
  • मंथन
  • वायरल
  • विचार
  • शिक्षा
  • संस्कृति
  • स्वास्थ्य
Search
  • About us
  • Advertisement
  • Editorial Policy
  • Grievance Report
  • Privacy Policy
  • Terms of use
  • Feedback
  • Contact us
Follow US
मनोरंजन

सरकार कोई कंपनी नहीं है, वह माहौल बना दे, फिल्मकार फिल्में बना लेंगे

इस नीति का पूरा नाम है— 'बिहार फिल्म प्रोत्साहन नीति—2024'। यानी सरकार का जोर अनुदान के माध्यम से फिल्मकारों को प्रोत्साहन देना है, जबकि इसका बृहद् स्वरूप होगा कि ऐसी नीति रहे, जो बिहार में समेकित फिल्म इकॉनमी खड़ी करने में सहायक हो। इस नीति के आने के बाद क्या सचमुच बिहार में एक सिने उद्योग खड़ा हो सकता है? इस प्रश्न का उत्तर ही इस नीति का लिटमस टेस्ट होगा। यानी अभी नीति के रूप में केवल ट्रेलर आया है, पूरी फिल्म आनी बाकी है।

Prashant Ranjan
Last updated: August 1, 2024 8:39 am
By Prashant Ranjan 2.4k Views
Share
8 Min Read
SHARE

फिल्म प्रोत्साहन नीति—2024

लंबी प्रतीक्षा के बाद आखिरकार बिहार में फिल्म नीति की घोषणा हो गई। 19 जुलाई को बिहार के उपमुख्यमंत्री सह कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने प्रेसवार्ता कर ‘बिहार फिल्म प्रोत्साहन नीति-2024’ की औपचारिक रूप से घोषणा की।

Contents
फिल्म प्रोत्साहन नीति—2024क्या है नीति में?भोजपुरी फिल्मों का आयातित कहानियों पर गुजाराबिहारियों का जलवा, बिहार नदारदफिल्मों में ‘बिहार’ की अनदेखीसरकार कोई कंपनी नहीं
- Advertisement -

क्या है नीति में?

इस नीति के लागू होने के बाद बिहार के सिने संसार में क्या—क्या बदलने वाला है, इसकी पड़ताल आवश्यक है। ‘बिहार फिल्म प्रोत्साहन नीति-2024’ के बारे बताया गया है कि चार करोड़ तक की राशि फिल्म निर्माण के लिए दी जाएगी अथवा कुल बजट का 25 प्रतिशत व क्षेत्रीय फिल्मों के लिए 50 प्रतिशत, जो भी कम हो। इसके अलावा बिहारी कलाकारों व बिहार के शूटिंग स्थलों पर 75 प्रतिशत शूटिंग करने पर 50 लाख रुपए तक का अतिरिक्त अनुदान दिया जाएगा। बिहार राज्य फिल्म विकास एवं वित्त निगम की वेवसाइट पर पोर्टल के माध्यम से फिल्मकारों से आवेदन लिए जाएंगे, जिनका कागजात सत्यापन के बाद अनुदान की अनुशंसा की जाएगी। ​बिहार में जो लोग स्टुडियो, लैब आदि बनाना चाहते हैं, उनके लिए भी 25 प्रतिशत सब्सिडी का प्रबंध है। साथ ही खराब हालात वाले छविगृहों को भी ठीक करने की बात कही गई है। इसके अतिरिक्त मान्यताप्राप्त फिल्म संस्थानों में नामांकन पाने वाले बिहारी छात्र—छात्राओं को इस नीति के तहत छात्रवृत्ति भी दी जाएगी।

भोजपुरी फिल्मों का आयातित कहानियों पर गुजारा

भारतीय सिनेमा का नाम उच्चारते ही मानस पटल पर बंबइया शैली की हिंदी फिल्में व व्यावसायिक तड़के से सज्जित दक्षिण भारतीय फिल्में छा जाती हैं। अगर सोचने वाला व्यक्ति बौद्धिक जमात से है, तो इन फिल्मों के अतिरिक्त वह बंगाली, मराठी या असमिया सिनेमा की बात करेगा। जाहिर सी बात है कि भारत के क्षेत्रीय सिनेमा की प्रासंगिकता इसीलिए है कि वह अपने क्षेत्र विशेष की न केवल कहानी कहता है, बल्कि एक पूरे सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना को पर्दे पर उकेरता है। शायद यही कारण है कि पश्चिमी दुनिया अन्य स्रोतों के अलावा फिल्मों के जरिए भी भारत को समझने की चेष्टा करती है। लेकिन, दु:खद है कि भोजपुरी फिल्में आयातित कहानी पर गुजारा करती हैं। इसलिए, एक पल के लिए ठहरकर सोचना चाहिए कि इस सिनेमाई यात्रा में बिहार कहां पीछे छूट गया है?

बिहारियों का जलवा, बिहार नदारद

भारत के फिल्म उद्योग में व्यक्तिगत रूप से बिहारियों का पताका तो लहरा ही रहा है। विचारणीय है बिहार। बिहार व बिहार के बाहर के फिल्मकारों को जब भी मौका लगा, उन्होंने व्यवसायिक पक्ष को साधने के लिए बिहार की नकारात्मक छवि प्रस्तुत की। सिनेमा के इस रचनात्मक विडंबना का एक और स्याह पक्ष है कि बिहार की छवि दांव पर लगाकार बनी फिल्मों से बिहार को कुछ हासिल हुआ होता, तो भी किंचित संतोष की बात होती। लेकिन, बिहार की कहानी कहने वाली फिल्मों की शूटिंग बिहार के बाहर होती है और उन फिल्मों के अधिकतर कलाकार बिहार के बाहर के होते हैं, यानी मौद्रिक लाभ के मोर्चे पर दोहरा घाटा। यह तो हुई हिंदी फिल्मों की बात। भोजपुरी सिनेमा तो और वक्री हो गया है। हर वर्ष रिलीज होने वाली 90 प्रतिशत भोजपुरी फिल्मों में आपको बिहार नहीं दिखेगा। अस्सी के दशक में बनी बी-ग्रेड हिंदी फिल्मों की सी-ग्रेड रीमेक बनाकर भोजपुरी वाले खुश हैं।

- Advertisement -

फिल्मों में ‘बिहार’ की अनदेखी

भारत के एक छोटे से कोने में मनाया जाने वाला करवा-चौथ आज देश के कोने-कोने में मनाया जा रहा है, तो इसके पीछे मुख्यधारा की बड़ी हिंदी फिल्मों में उस त्योहार को प्रस्तुत किया जाना है। लेकिन, आज तक किसी बड़ी फिल्म में छठ महापर्व को नहीं दिखाया गया। इसमें सबसे अधिक दोषी बिहार से निकले फिल्मकार हैं। भारतीय सिनेमा के सवा सौ साल से अधिक के इतिहास में बिहार का मौलिक प्रतिनिधित्व करने वाली फिल्मों के नाम याद करेंगे, तो बात ’तीसरी कसम’ से शुरू होकर वहीं पर ठहर जाएगी। वह तो शैलेंद्र की जीवटता थी, तो फिल्म साकार हुई। उसमें दही-चुड़ा से लेकर पुर्णिया की पगडंडी तक व्याप्त है। फिर वैसा प्रयास करने का साहस किसी अन्य ने नहीं किया। हिंदी की मुख्यधारा के फिल्मकारों को पता है कि बिहार से उनकी फिल्मों को क्या ही हासिल होगा? जनसंख्या के अनुपात में यहां सिनेमाघर अत्यंत कम हैं। किसी हिंदी फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर कुल धन संग्रह का कितना प्रतिशत बिहार के सिनेमाघरों से आता है, यह पक्ष भी बिहार की कहानी कहने से फिल्मकारों को रोकता है। यह विशुद्ध व्यवसायिक मामला है। इसलिए सिनेमा में बिहार के प्रतिनिधित्व को ठीक करने के लिए सबसे पहले बिहार में सिनेमाघरों की संख्या बढ़ानी चाहिए, जो कि राज्य सरकार के सहयोग के बिना कठिन है। राहत की बात है कि ​फिल्म प्रोत्साहन नीति-2024 में बंद पड़े या खराब हालात वाले सिनेमाघरों को ठीक किए जाने की बात कही गई है।

सरकार कोई कंपनी नहीं

हालांकि, 25 साल की चिरप्रतीक्षा के बाद बिहार को अपनी फिल्म नीति मिल गई, जो कई दृष्टि से अन्य प्रदेशों की फिल्म नीति से बेहतर भी है। लेकिन, फिल्म नीति के अधिकतर विधान अनुदान देने व निमार्ण करने तक सीमित प्रतीत होते हैं। इस मामले में सरकार का वैचारिक सॉफ्टवेयर अपेडेट नहीं है, वरना उसे पता होता कि डिजिटल युग में स्मार्टफोन से रियल लोकेशन पर फिल्में बन रही हैं। ऐसे में सरकार अगर यही सुनिश्चित कर दे कि बिहार की कहानी कहने वाली फिल्म को कम से कम बिहार में बड़ा पर्दा नसीब होगा, तब भी स्थिति सुधर सकती है। सरकार कोई फिल्म निर्माण कंपनी नहीं है, बल्कि उसे फिल्म उद्योग के लिए एक बाह्य अभिभावक की भूमिका में होना चाहिए, जिसका पहला काम हो फिल्म से जुड़े लोगों व उनकी गतिविधियों के लिए विधिव्यवस्था सुनिश्चित करना, दूसरे बिहार में बनी हुई फिल्मों के लिए बाजार उपलब्ध कराना, यानी एक सिनेमाई अर्थव्यवस्था खड़ा करने पर जोर देना। इस नीति का पूरा नाम है: ‘बिहार फिल्म प्रोत्साहन नीति—2024’। यानी सरकार का जोर अनुदान के माध्यम से फिल्मकारों को प्रोत्साहन देना है, जबकि इसका बृहद् स्वरूप होगा कि ऐसी नीति रहे, जो बिहार में समेकित फिल्म इकॉनमी खड़ी करने में सहायक हो।

- Advertisement -

इस नीति के आने के बाद क्या सचमुच बिहार में एक सिने उद्योग खड़ा हो सकता है? इस प्रश्न का उत्तर ही इस नीति का लिटमस टेस्ट होगा। यानी अभी नीति के रूप में केवल ट्रेलर आया है, पूरी फिल्म आनी बाकी है।

प्रशांत रंजन
सदस्य
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

TAGGED: Bihar Film Policy, cinema, film industry
Share This Article
Facebook Twitter Whatsapp Whatsapp LinkedIn Telegram Copy Link
Did like the post ?
Love4
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0
By Prashant Ranjan
Follow:
Hello, I am prashant Ranjan

हमने पुरानी ख़बरों को आर्काइव में डाल दिया है, पुरानी खबरों को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर। Read old news on Archive

Live News

- Advertisement -

Latest News

जी हां! चौंकिए नहीं, प्रखंड परिसर से हो रही शराब तस्करी
बिहारी समाज
मशरूम की खेती का हब बना नवादा, राज्य समेत अन्य राज्यों में की जा रही आपूर्ति
बिहारी समाज
140 लीटर महुआ शराब बरामद, बाइक जब्त, धंधेबाज फरार
बिहारी समाज
मुखिया को पदच्युत करने में विभाग के फूल रहे हाथ पांव
बिहारी समाज
- Advertisement -

Like us on facebook

Subscribe our Channel

Popular Post

जी हां! चौंकिए नहीं, प्रखंड परिसर से हो रही शराब तस्करी
बिहारी समाज
मशरूम की खेती का हब बना नवादा, राज्य समेत अन्य राज्यों में की जा रही आपूर्ति
बिहारी समाज
140 लीटर महुआ शराब बरामद, बाइक जब्त, धंधेबाज फरार
बिहारी समाज
मुखिया को पदच्युत करने में विभाग के फूल रहे हाथ पांव
बिहारी समाज
- Advertisement -
- Advertisement -

Related Stories

Uncover the stories that related to the post!
मनोरंजन

जयंती पर मांग: बिहार के लाल संगीतकार चित्रगुप्त को मिले पद्म सम्मान

पटना: भारतीय सिनेमा के इतिहास में महान संगीतकार एवं गीतकार चित्रगुप्त ऐसे…

By Swatva Desk
FIR, ज्योति सिंह, अचार संहिता उल्लंघन, पवन सिंह, पत्नी
चुनाव

पवन सिंह की पत्नी ज्योति सिंह पर FIR, अचार संहिता उल्लंघन का आरोप

भोजपुरी सिनेमा के एक्टर पवन सिंह की पत्नी और काराकाट विधानसभा क्षेत्र…

By Amit Dubey
धर्मेंद्र, एक्टर, हालत, नाजुक, मौत, अफवाह
देश-विदेश

सदाबहार धर्मेंद्र की हालत नाजुक, मौत की अफवाह पर परिवार ने जताई नाराजगी

आज मंगलवार को बॉलीवुड समेत पूरी दुनिया को तब एक गहरा झटका…

By Amit Dubey
मनोरंजन

ऋत्विक घटक: विभाजन की पीड़ा को पर्दे तक लाने वाले फिल्मकार

प्रशांत रंजन फिल्मकार कैसा लगता होगा उस फिल्मकार को जिसकी पहली फिल्म…

By Prashant Ranjan
Show More
- Advertisement -

About us

पत्रकारों द्वारा प्रामाणिक पत्रकारिता हमारा लक्ष्य | लोकचेतना जागरण से लोकसत्ता के सामर्थ्य को स्थापित करना हमारा ध्येय | सूचना के साथ, ज्ञान के लिए, गरिमा से युक्त |

Contact us: [email protected]

Facebook Twitter Youtube Whatsapp
Company
  • About us
  • Feedback
  • Advertisement
  • Contact us
More Info
  • Editorial Policy
  • Grievance Report
  • Privacy Policy
  • Terms of use

Sign Up For Free

Subscribe to our newsletter and don't miss out on our programs, webinars and trainings.

[mc4wp_form]

©. 2020-2024. Swatva Samachar. All Rights Reserved.

Website Designed by Cotlas.

adbanner
AdBlock Detected
Our site is an advertising supported site. Please whitelist to support our site.
Okay, I'll Whitelist
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?