हमारा संविधान क्या है? कैसी परिस्थितियों में इस संविधान का निर्माण हुआ? हमें संविधान को बचाना चाहिए, लेकिन किस तरह? हमारा संविधान सजीव है या जड़ और निर्जीव? भारत में संविधान साक्षरों की संख्या का प्रतिशत क्या है? ऐसे कुछ प्रश्न हैं जिनके सहारे हम अपने संविधान को जानने, समझने का इमानदार प्रयास करें तो हम अपने संविधान को सही अर्थों में जान सकेंगे। अन्यथा यह एक पॉलिटिकल लफ्फाजी से ज्यादा कुछ नहीं। फिर चाहे वह संविधान बचाने की बात करना हो, या फिर जनता को भ्रम में डालने वाले अपने कुत्सित एजेंडे से इतर होने का ढोंग रचना।
संविधान सभा की बहस में आए विचार और सुझाव
इन संदर्भ प्रश्नों के उत्तर ढूंढने के लिए जो प्रामाणिक सामग्री है, वह है संविधान सभा की कार्यवाही के दौरान बहस के रूप में आए विचार और सुझाव। कुछ लोग इस बात पर नाक-भौं सिकोड़ सकते हैं, लेकिन संविधान को जानने—समझने और इसके पीछे के भाव को अनुभव करने का तो यही एकमात्र स्रोत है। इसके बावजूद संविधान सभा की बहस जो कि दस्तावेज के रूप में आज भी उपलब्ध है हमारे अध्ययन और शोध से बाहर रहा। यदि कुछ अध्ययन या शोध हुए भी होंगे तो वे सामान्य लोगों के लिए सहज उपलब्ध नहीं हैं।
नेतृत्व समूह के सुझावों पर कितना हुआ अमल?
इतना तो स्पष्ट है कि हमारे संविधान सभा में एक नेतृत्व समूह बन गया था जिसमें अधिक से अधिक 30 विचारशील लोग शामिल थे। विचारशील लोगों के इस समूह की चिंता, चिंतन, अनुभव और भविष्य दृष्टि से हमारा यह संविधान आकार ले सका। जब हमारा संविधान यह आकार ले रहा था उस समय भारत में महाभारत जैसी स्थिति थी। महाभारत में श्रीकृष्ण की वाणी से गीता प्रकट हुई थी तो भारत के विभाजन के दर्द और गृहयुद्ध की स्थिति में हमारा संविधान आकार ले रहा था। गीता का लाभ तो उसे ही मिलता है जो उसका पाठ करता है और उसे अपने व्यवहार में उतारता है। उसी प्रकार संविधान का लाभ लेने के लिए जनसामान्य से संविधान का पाठ कराया जाना अपेक्षित था। ताकि वे अपने संविधान के मर्म का जान सकें और उसके अनुसार अपना व्यवहार रख सकें। लेकिन हुआ क्या? भारत में संविधान की साक्षरता 5 प्रतिशत भी नहीं है।
आपातकाल में संविधान की आत्मा पर कुठाराघात
पूरे संविधान में सनातन भारत की ज्ञान परंपरा, राज्यव्यवस्था, सामाजिक-नैतिक आदर्श व कर्तव्यबोध को जीवंत करने वाले चित्र है। दुर्भाय की बात यह है कि संविधान लागू होने के कई दशक बाद भी भारत की जनता को उसके अपने मूल संविधान की प्रति के दर्शन नहीं हुए। संविधान सभा ने बहुमत से सेक्युलर वर्ड को रिजेक्ट कर दिया था। लेकिन उसे आपातकाल में पीछे से संविधान के प्रस्तावना में जोड़ा गया। मतलब यह कि संविधान की आत्मा पर प्रहार हुआ। यह भारत के मूल संविधान की हत्या करने जैसा ही था। बाद में कुछ प्रबुद्ध लोगों की जोरदार आपति के बाद सेक्युलर शब्द का अनुवाद पंथ निरपेक्षता किया गया। कुछ अतिवादी विचारधारा वाले आपातकाल लगाने वाली सरकार के समर्थन के बदले सेक्युलर शब्द का धर्मनिरेपेक्षता अनुवाद कराने पर अडिग थे। लेकिन, सरकार में शामिल कुछ लोगों के विरोध के बाद ऐसा नही हो सका था। 42 वें संविधान संशोधन के बाद सेक्युलर शब्द के समानार्थी शब्द के रूप में धर्मनिरेपेक्षता का प्रयोग किया जाने लगा। मतलब यह कि संविधान की भावना की इस लोकतांत्रिक भारत में रोज हत्या हो रही है। और जनसामान्य इससे अनभिज्ञ है।
महात्मा गांधी का रामराज्य और संविधान पर खतरा
संविधान सभा में महात्मा गांधी की इच्छा का जिक्र करते हुए ये प्रस्ताव पारित हुआ था कि भारत के संविधान का लक्ष्य भारत में रामराज्य जैसी राज्य व्यवस्था की स्थापना है जहां कोई दरिद्र, कोई अज्ञानी, कोई कपटी, कृतध्न, इर्ष्यालु और रोगग्रस्त नहीं हो। शायद यही कारण है कि संविधान के मौलिक अधिकार वाले भाग के प्रथम पृष्ठ पर वनवासी श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के चित्र अंकित हैं। इधर कुछ दिनों से जोर-जोर से कहा जा रहा है कि संविधान खतरे में है। संविधान को अवश्य बचाना चाहिए। लेकिन, किस तरह? यह वह प्रश्न है जो गंभीर विमर्श की मांग करता है। यह विमर्श किसी विचारधार या छद्म राजनीतिक ऐजेंडे की छाया में संभव नहीं है। समाज रचना की दृष्टि से सनातन सिद्धांतों के साथ इसके लिए युगानुकूल विचार दृष्टि की भी आवश्यकता है क्योंकि हमारा संविधान निर्जीव पत्थर से निर्मित शोभा की मूर्ति नहीं है।
संविधान के पृष्ठों में छिपे संदेशों को जानना जरूरी
हमारे संविधान के सभी 22 भागों के प्रथम पृष्ठों पर विशिष्ट चित्र अंकित है जिसका स्पष्ट संदेश है। वह संदेश है कि हमारा संविधान सजीव, सचेत, सामयिक, सर्वकालिक एवं परिवर्तित-परिवर्द्धित होने वाला ऐसा जीवंत दस्तावेज है जो समाज जीवन की परंपरा, संस्कृति, जीवन आदर्श और विश्व के लिए संदेश को अपने में समेटे रहता है। कुछ लोगों का दावा है कि हमारे संविधान का आधार गुलाम भारत में अंग्रेजों द्वारा बनाया गया भारत सरकार का अधिनियम 1935 है। लेकिन, संविधान को हमने जिस रूप में अंगीकार किया उससे पता चलता है कि भारत एक प्राचीन देश है जहां संवैधानिक विकास की यात्रा ईसा के बहुत पहले शुरू हो गयी थी। जब यूरोप और नई दुनिया ने सभ्यता के दर्शन नहीं किए थे उस समय भारत ने राजतंत्र, जनतंत्र और गणतंत्र आदि के प्रयोग कर लिए थे।