प्रशांत रंजन
फिल्मकार
कैसा लगता होगा उस फिल्मकार को जिसकी पहली फिल्म बनने के 25 साल बाद रिलीज़ हुई? जिसे किसी अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव से कभी बुलावा नहीं आया? बुलावा छोड़िए, जिसकी फिल्में कभी वहां चयनित नहीं हुईं? जिसे कभी सर्वश्रेष्ठ फिल्म या सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार नहीं मिला? जिसकी फिल्में कभी सुपरहिट नहीं हुईं। लेकिन, इन तमाम विसंगतियों के बावजूद वह जीवन के अंतिम क्षण तक सिनेशिल्प के प्रति समर्पित रहा। अपने जीवनकाल में किए कार्यों के अनुरूप उसका रिर्टन मिलने की जिसने चिंता नहीं। बस उसी निष्ठा से कार्य करते हुए अंतिम सांस ली। उनका वह निष्ठा व समर्पण ही है, जो उन्हें न केवल भारत के महान फिल्मकारों में शुमार करता है, बल्कि विश्व के प्रसिद्ध फिल्मोत्सवों में उनकी फिल्मों को रेट्रोस्पेक्टिव चलाकर सम्मान दिया जाता है। इन सारी विसंगतियों को एक साथ समेट देने पर एक व्यक्तित्व उभरता है, जिसका नाम है ऋत्विक घटक।
घटक की पहली फिल्म नागरिक 1952 में बनकर तैयार हो गई थी। अगर वह समय पर रिलीज होती, तो बांग्ला की प्रथम कला फिल्म होने का गौरव पाती। लेकिन, उसे रिलीज के लिए 25 वर्षों तक राह देखनी पड़ी। इस बीच सत्यजीत रे की पाथेर पांचाली 1955 में आकर प्रथम होने का तमगा ले चली। घटक व रे समकालीन थे। अपने सिनेमाई कौशल पर अभिमान रखने वाले माणिक दा घटक को ही अपने में लगाते थे। वरना, डिसिका को गुरु मानने वाले रे साहब कुरोसावा, गोदार, त्रुफो, बर्गमैन, तारकोवोस्की से नीचे उतरते नहीं थे।
रे ने जहां मानवीय संवेदनाओं को अपनी फिल्मों का विषय बनाया, वहीं घटक राजनीतिक विषयों को साधने का जोखिम लेते थे। विभाजन त्रयी— मेघे ढाका तारा, कोमल गंधार व सुवर्णरेखा, तो उनकी कालजयी है ही, अन्य फिल्मों में भी विभाजन के दंश को पर्दे पर उकेरने में कोताही नहीं बरती। विभाजन को हर फिल्म के किसी फ्रेम में रखने की कोशिश की। जोखिम लेने का एक और वाक्या देखिए। 1965 में देश में युद्ध का महौल था। एफटीआईआई के वाइस प्रिंसीपल रहते हुए जब विद्यार्थियों को कॉलेज आने में समस्या हुई, तो स्टुडियो खुलवाकर उनके आवासन का प्रबंध कर दिया और संस्थान के कैंटिन में भोजन का। छात्रहित में किए गए इस ‘दुस्साहस’ के लिए उन्हें प्रशासनिक कोपभाजन भी झेलना पड़ा।
50 की अल्पायु में दुनिया से विदा लेने वाले घटक महोदय के नानाप्रकार के कार्य किए। थियेटर अभिनय, पुस्तक, आलेख, नाटक लेखन, वृत्तचित्र। बिहार के ऐतिहासिक स्थलों पर 1955 में डॉक्यूमेंटरी बनायी। बिमल रॉय की मधुमति के लिए कथा व पटकथा लिखी। अपनी अंतिम फिल्म ‘जुक्ति जक्को आर गप्पो’ में अभिनय भी किया। यह आत्मकथात्मक थी। सिनेयात्रा के मध्य ही देह छूट गया, इसलिए आधा दर्जन फिल्में अधूरी रह गईं।
आज ऋत्विक घटक की जन्मशती है। महान फिल्मकार को नमन।