आर. सी. पी. है कहां?
राजनीति बेरहम और निर्मम होती है। राजनीति में केवल मुद्दे ही नहीं बदलते हैं बल्कि शख्सीयतें भी बदल जाती हैं। राजनीति औकात बताने और जताने का भी खेल है। कौन मोहरा कब अर्श और कब फर्श पर होगा, राजनीति यह भी तय करती है।
बिहार की राजनीति में लम्बे समय तक सुर्खियों में रहे आर. सी. पी. सिंह यानी रामचन्द्र प्रसाद सिंह फिलवक्त चर्चा से बाहर है। एक तरह से गुमनाम। कभी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और दल में नीतीश कुमार के बाद दूसरे नम्बर पर रहने वाले आर. सी. पी. थोड़े दिन पहले तक नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल में जदयू कोटा से मंत्री थे। उनके अवसान की कहानी भी उसी समय से शुरू होती है।
बिहार सहित पूरे देश में लोकसभा चुनाव की गहमागहमी है। मगर आर.सी.पी. फिलवक्त नदारद हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अब तक बिहार में पांच सभाएं हो चुकी हैं, अमित शाह की भी तीन सभाएं और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा की बिहार में रैलियां हो चुकी हैं। मगर इनमें से किसी भी रैलियों में आर. सी. पी. सिंह कहीं दिखे नहीं।
कभी जदयू के बड़े चेहरे आर.सी.पी.सिंह जदयू में कलह बढ़ने के बाद पिछले साल भाजपा का दामन थाम लिए थे। मुख्यमंत्री के निकटतम सहयोगी रहे आर.सी.पी. सिंह मुख्यमंत्री के सजातीय और उनके गृहजिला के भी रहने वाले हैं। ब्यूरोक्रेट्स से पॉलिटिशियन बने आर.सी.पी.सिंह वरिष्ठ आईएएस अधिकारी रहे हैं। जदयू में उनका कद निश्चिित तौर पर काफी बड़ा था। एक दौर ऐसा भी था जब आर. सी. पी. सिंह की सहमति के बिना जदयू में एक पता भी नहीं हिलता था।
आज आर.सी.पी. सिंह गुमनाम है। उम्मीद थी कि भाजपा उनका उपयोग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ चुनाव प्रचार में करेगी। मगर समय पलटा और मुख्यमंत्री स्वयं अपने दल के साथ दो महीने पहले एनडीए का दामन थाम लिए। इसी के साथ बिहार की राजनीति में भी काफी कुछ बदल गया, सरकार बदली, सरकार में शामिल राजद मुख्य विपक्षी दल हो गया और भाजपा एक बार फिर नीतीश कुमार की अगुवाली वाली सरकार की हिस्सेदार हो गई। इसी के साथ आर. सी. पी. सिंह की महत्ता और भूमिका भी बदल गयी। फिलवक्त आर. सी. पी. सिंह के हिस्से गुमनामी है। ऐसे में यह सवाल स्वाभाविक है कि आर. सी. पी. सिंह है कहां?