‘लेडिज़ फर्स्ट’ की अवधारणा के पीछे का सही कारण जानना जरूरी : डॉ. शिप्रा शर्मा
पटना: समाज और देश में महिलाओं की सहभागिता के बिना ना तो राष्ट्र का सही से निर्माण हो सकता है और ना ही सांस्कृतिक उत्थान का कोई कार्य हो सकता है। यह सच है कि आजादी के समय पुरुष और महिलाओं के बीच अधिकारों की जो खाई थी, उसको पाटने में हमलोग बहुत हद तक सफल हुए हैं। लेकिन, अगर हमें एक विकसित देश का निर्माण करना है, तो महिला और पुरुष अधिकारों के बीच जरा सा भी अंतर नहीं होना चाहिए। लैंगिक समानता के बिना विकसित भारत का निर्माण करना कठिन है।
उक्त बातें पटना विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर पत्रकारिता एवं जनसंचार (एमजेएमसी) के निदेशक सह स्नातकोत्तर हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. विजय कुमार ने कहीं। शनिवार को वे एमजेएमसी विद्यार्थियों द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस समारोह में बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि मानव समाज के सफल संचालन के लिए पुरुषों और महिलाओं की समान सहभागिता होनी चाहिए, क्योंकि ये दोनों जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए हैं। इनमें से किसी पक्ष को कमतर आंकने से प्रगति थम जाती है।
एमजेएमसी पाठ्यक्रम की समन्वयक डॉ. शिप्रा शर्मा ने कहा कि जब हम महिला और पुरुष की समानता की बात करते हैं तो यहां अवसरों और अधिकारों की समानता की बात होनी चाहिए। जो लोग समानता की कसौटी पर बात करते समय सार्वजनिक स्थानों पर ‘लेडिज़ फर्स्ट’ अथवा महिलाओं के लिए मिलने वाले विशेष अवकाश पर आपत्ति जताते हैं, उन्हें यह बात समझना चाहिए कि प्राकृतिक रूप से महिला और पुरुषों की शारीरिक संरचना भिन्न है और इस नाते महिलाओं को आवश्यकता अनुसार अवकाश तथा अन्य प्राथमिकताएं देना स्वाभाविक है। मीडिया शिक्षक डॉ. गौतम कुमार ने कहा कि पत्रकारिता के क्षेत्र में अब महिलाएं ऐसे कार्य कर रही हैं, जिससे पुरुषों को भी प्रेरणा लेना चाहिए। साथ ही उन्होंने मीडिया संस्थानों में लैंगिक संवेदीकरण तथा लैंगिक समानता के महत्व पर भी प्रकाश डाला।
कार्यक्रम का संचालन एमजेएमसी के सेकंड सेमेस्टर की छात्रा मधुयांका राज ने किया। इस अवसर पर पीजी हिंदी विभाग के डॉ. संजय सागर, मीडिया शिक्षक रचना सिंह, प्रशांत रंजन तथा सभी सेमेस्टर के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।