अभ्युदय आनंद
अधिवक्ता
पटना उच्य न्यायालय
भारत एक ऐसा देश है जिसकी सभ्यता और संस्कृति हजारों साल पुरानी है। आजाद होने के बाद भारत ने एक लोकतांत्रित गणराज्य के रूप में संविधान को अपनाया पर समय के बदलते दौड़ में यह आवश्यक था कि हमारे देश का कानून व्यवस्था भी औपनिवेशिक कालीन व्यवस्था के बदलकर समाज की बदलती जरूरतों और तकनीकी नवाचारों के अनुसार विकसित हो। ‘नए भारत’ की कल्पना सिर्फ राजनैतिक और आर्थिक विकास का प्रतीक नहीं है बल्कि अपने मूल संस्कृति से जुड़े रहकर कानूनों और शासन व्यवस्था में हुए पैराडाइम शिफ्ट का भी प्रतीक है।
पैराडाइम शिफ्ट की अवधारणा
पैराडाइम शिफ्ट का अर्थ है,दृष्टिकोण या विचारधारा प्रणाली में मौलिक परिवर्तन या बुनियादी बदलाव । सरल शब्दों में कहे कि जब किसी व्यवस्था ,सोचने के तरीके, या काम करने के ढंग में जड़ से परिवर्तन हो जाता है तो उसे पैराडाइम शिफ्ट कहते है।
भारतीय कानून में पैराडाइम शिफ्ट
कानून किसी भी राष्ट्र की रीढ़ होती है क्योंकि एक देश की अर्थ व्यवस्था ,न्याय व्यवस्था ,नागरिकों का कर्तव्य एवं अधिकार देश में बने कानूनों पर ही आधारित होती है ,जो समय– समय पर नागरिकों के आवश्यकतानुसार एवं अन्य करणों से संशोधित किया जाता है अथवा उससे पूर्णतः बदलकर नया लाया जाता है और इससे ही कानूनी परिपेक्ष में पैराडाइम शिफ्ट कहते है। जब हम भारत के कानून के परिपेक्ष में पैराडाइम शिफ्ट की बात करते है तो इसका सीधा सीधा अर्थ यह है कि सतही संशोधन न होकर संपूर्ण न्याय प्रणाली शासन व्यवस्था को ही नया रूप दे दे। 21 वी सदी के दूसरे दशक में भारत ने निर्णायक रूप से अपनी विधि व्यवस्था को भारतीय संदर्भों में और डिजिटल युग के अनुसार ढालना शुरू किया ।
विधि संहिताओं का नवीनीकरण
हाल ही में अपराधिक न्याय प्रणाली में एक बड़ा बदलाव किया गया है। जिसमें तीन नए अपराधिक कानून को लाकर औपनिवेशिक कालीन कानूनों को हटा दिया गया है ।इन तीन नए अपराधिक कानूनों का नाम भी बदलकर भारतीय परिपेक्ष का अनुसार रखना यह संकेत है कि इस नए भारत में अपराधिक कानून भारत की जमीनी जरूरत और नागरिकों को देखते हुए बनई गई है । यह तीन नए कानून है :
1.)भारतीय न्याय संहिता ,2023 जो इंडियन पीनल कोड के स्थान पर लाया गया।
इस संहिता में औपनिवेशिक धाराओं को हटाकर नागरिक केंद्रित प्रावधानों को लाया गया ।देशद्रोह जैसे अपराधों को हटाकर राजद्रोह जैसे अपराध को परिभाषित किया गया ,महिला सुरक्षा,साइबर अपराध जैसे मुद्दे पर कुछ प्रावधानों जोड़ी गई।
2.)भारतीय साक्ष्य अधिनियम ने इंडियन एविडेंस एक्ट का स्थान लिया ।
इसमें डिजिटल और इलेक्ट्रोनिक साक्ष्य को मान्य दिया गया,जैसे व्हाट्स ऐप चैट, सी सी टी वी रिकॉर्डिंग आदि।
3.)भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता ने कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर का स्थान लिया है ।
इसमें कुछ प्रावधानों को लाकर यह प्रयास किया गया कि अपराधिक न्याय प्रणाली को और तीव्र और पारदर्शी हो।
न्यायपालिका और डिजिटलाइजेशन
जब हम न्यायपालिका के डिजिटलाइजेशन की बात करते है तो हम यह देखेंगे कि बहुत बड़े स्तर पर ई कोर्ट्स परियोजना पे काम हो रहा है वर्चुअल कोर्ट को शुरू किया गया। वकील कहीं से भी बैठ कर दूसरे राज्य के कोर्ट्स में वर्चुअल तरीके से बहस कर सकते है । आप अपने केस का स्टेटस घर बैठे देख सकते है।सोशल मीडिया पर भी अब कोर्ट की हियरिंग देखी जा सकती है। चौबीस घंटे के अन्दर हर थाने को अपने थाना में हुए एफ. आई. आर. की कॉपी को अपलोड करना है जिससे को भी कही से भी किसी भी थाने का एफ. आई. आर. की कॉपी वेबसाइट से डाउनलोड कर देख सकता है।इससे निश्चित ही न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ी है ।जहां एक तरफ न्यायालय ने तीन तलाक जैसे केस में मुस्लिम महिलाओं को सामान अधिकार दिलाया।वहीं दूसरी तरफ अयोध्या जजमेंट देकर जिसमें 2.77 एकड़ विवादित स्थल को राम मंदिर निर्माण के लिए ट्रस्ट को सौंपा गया वही पांच एकड़ जमीन को अलग जगह मस्जिद बनाने के लिए देने का आदेश देकर सामाजिक समरसता का उदाहरण दिया गया है।
सेंगोल और नए भारत का न्याय दर्शन
सेंगोल एक राजदंड है जो तमिल परंपरा से जुड़ा है।यह धर्माधृष्टि शासन का प्रतीक रहा है।जब पुराणों में राजा का राज्य अभिषेक होता था तब संत लोग इसे राजा को सौंपते थे इसका उद्देश्य यह रहता था कि यह राजदंड राजा को यह स्मरण दिलाते रहे कि राजा सर्वश्रेष्ठ नहीं है बल्कि धर्म सर्वश्रेष्ठ है ,एक राजा को भी धर्म के अनुसार चलना होगा नाकी निजी स्वार्थ के अनुसार। आज के दौड़ में सेंगोल इस बात का प्रतीक है कि सत्ता और कानून का मूल उद्देश्य जनता की सेवा और न्याय करना ही है। 2023 में जब नया संसद भवन का उद्घाटन हुआ तब पुनः सेंगोल को संसद में स्थापित किया गया ।इस कदम से भारतीय संस्कृति को पूर्णतः जीवित कर दिया गया और यह संकेत दिया गया कि अब भारत की विधि व्यवस्था और शासन व्यवस्था पश्चिम सोच से प्रेरित नहीं है बल्कि भारतीय परंपरा और आधुनिक मूल्यों का संगम होगा।
मूल संविधान और भारतीय सांस्कृतिक प्रतीक
भारत का मूल संविधान सिर्फ एक कानूनी दस्तावेज नहीं है बल्कि अलग अलग भारतीय संस्कृति का दर्पण भी है।जब हम संविधान का मूल कॉपी देखेंगे तो उसमें पाएंगे कि भारतीय परंपरा को चित्रकारी के रूप में गहराई से दर्शाया है, इनमें न केवल हिन्दू बल्कि बौद्ध ,जैन और कई सांस्कृतिक विरासतों को भी दर्शाया है। संविधान के मूल कॉपी को आर्टिस्ट नंदलाल बोस और उनके कुछ शिष्यों ने मिलके इन चित्रकारी के माध्यम से सजाया है। इन चित्रकारी में रामायण और महाभारत के दृश्य ,गौतम बुद्ध और महावीर की छवियां ,अशोक चक्र, गंगा यमुना एवं नटराज के प्रतीक हमे यह संकेत देते है कि भारत एक ऐसा देश है जहां संविधान भी हमारे संस्कृति से प्रेरित है नकी पश्चिमी सोच से और भारतीय संविधान भारतीय मूल्यों,धर्मों और परम पराओ का समावेश है और इन मूल्यों के अनुसार ही संविधान को आगे बढ़ना होगा यही भारतीय संस्कृति के लिए उचित होगा।
कृत्रिम बुद्धिमता (ए.आई.)की भूमिका
एआई का महत्व पैराडाइम शिफ्ट के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके कारण आज टेक्नोलॉजी दूसरे स्तर पर पहुंच गई है। जहां एक तरह इसके कई फायदे है वहीं दूसरी तरफ इसके कई नुकसान भी है। न्याय प्रणाली में एआई काफी कारगर रहा है, न्यायिक अनुसंधान ,केस लॉ की खोज कनूनी प्रावधानों को आसानी से विश्लेषण कर समझना काफी आसान हो गया ,यह घंटों के काम को मिनटों में कर देता है जिसके कारण न्यायिक प्रक्रिया और गतिशील हो गया है। शासन व्यवस्था और नीति निर्माण में भी ए. आई. का प्रयोग काफी सफल रहा है। ऐ.आई. के कारण सरकारी योजना को और अधिक पारदर्शी और लोगो के बीच सफल रूप से लागू करना आसान हो गया है। चाहे मौसम का पूर्वानुमान लगाना हो जिससे किसानों को मदद मिल पाए या मेडिकल क्षेत्र में मरीजों को बेहतर चिकित्सा मिल पाए हर क्षेत्र में ऐ. आई. का उपयोग सफल रहा है।पुलिस और प्रशासन भी ए. आई. आधारित डेटा विश्लेषण का सहारा ले रही है खुफिया तंत्र भी इसका उपयोग कर और मजबूत हो गई है।आज हर देश ऐ. आई. में खुद को निपुण कर रहा क्योंकि चाहे डिजिटल युद्ध हो या ड्रोन युद्ध सबमें जीत उसी देश की होगी जो ए .आई. का उपयोग कर अपने टेक्नोलॉजी में बेहतर है। हालांकि इसके कुछ दुष्प्रभाव भी है साइबर क्राइम ,फ्रॉड जैसे नए अपराध काफी तेजी से बढ़ रहे है लोगो का मोबाइल अकाउंट हैक होना और आसान हो गया है जिससे नागरिकों के निजता के अधिकार पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है।समाज में अफवाह फैलाकर, गलत एवं उत्तेजित फोटो एवं वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर फैलाकर देश में उन्माद फैलाना आसान हो गया है। जिसके रोकथाम हेतु सरकार ने कई ठोस कदम उठाए है कई स्थानों पर साइबर पुलिस स्टेशन का निर्माण भी किया गया है और लोगो के बीच जोड़ो शोरो से जागरूकता भी फैलाया जा रहा है।
आरएसएस और भाजपा की पैराडाइम शिफ्ट में भागीदारी
पैराडाइम शिफ्ट के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी की संयुक्त भागीदारी रही है, संघ ने हमेशा से सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर बल दिया , चाहे अयोध्या मंदिर का मुद्दा हो या आर्टिकल 370 हटाने का संघ हमेशा से इन मुद्दों को समाज में जोर शोर से उठाया है , संघ ने हमेशा से जाती ,धर्म से ऊपर उठकर सामाजिक समरसता को और मजबूत करने का प्रयास किया है एवं सांस्कृतिक परंपराओ के साथ राष्ट्रवादी विचारों को शीर्ष पर रखा है। संघ न केवल सिर्फ वैचारिक स्तर पर बल्कि संगठनात्मक स्तर पर भी शाखाओं के मध्यम से लाखों स्वयं सेवक तैयार किए है जिसके द्वारा शिक्षा ,स्वस्थ ,सेवा के माध्यम से संघ ने लोगो के बीच गहरी पैठ बनाई है , चाहे कही आपदा आ जाए या कोई और जरूरत पड़ जाए स्वयंसेवक हमेशा राष्ट्र सेवा के लिए आगे रहे है।
2014 में बीजेपी पूर्ण बहुमत में आई तो श्री नरेंद्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री के रूप में चुने गए इन्हीं मूल्यों पर आगे बढ़कर उन्होंने आर्टिकल 370 को निरस्त किया ,तीन तलाक जैसे कानूनों को हटाया एवं राम मंदिर का निर्माण को भी पूरा किया , भारतीय संस्कृति को और राष्ट्रीय एकता को और मजबूत करने हेतु एक भारत श्रेष्ठ भारत जैसे अभियानों को लाया ,गंगा के सांस्कृतिक महत्व को बचाने के लिए नमामि गंगे का प्रोजेक्ट लागू किया , धार्मिक स्थानों को कॉरिडोर में बदलकर उसे पर्यटन का नया स्वरूप भी दिया ।
भारत में पैराडाइम शिफ्ट यह दर्शाता की यह नया भारत है भारत अब किसी पश्चिमी देशों के दबाव में नहीं है बल्कि तेजी से उभरता हुआ वैश्विक शक्ति है । भारत की न्याय व्यवस्था अब औपनिवेशिक कालीन कानूनों का बोझ नहीं ढो रही , भारत ना हीं अपने सांस्कृतिक मूल्यों को भुला है और ना ही तकनीकी युग में पीछे है ।यह परिवर्तन भारत को एक न्यायपूर्ण, पारदर्शी और नागरिक–केंद्रित राष्ट्र बनाने की दिशा में निर्णायक कदम है।