राकेश प्रवीर
पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल (पीएमसीएच) राज्य की मान्य व्यवस्था की सबसे महत्त्वपूर्ण कड़ी में एक है। दशकों की उपेक्षा व प्रतीक्षा के बाद इसके पुनर्विकास के मेगा प्रोजेक्ट से एक नया गौरवपूर्ण अध्याय का शुभारंभ सुखद है। दरअसल 100 वर्ष की यात्रा में वर्तमान कालखंड पीएमसीएच का मंगलकाल है। वर्तमान पीएमसीएच का प्रारंभ 1874 में टेम्पल मेडिकल स्कूल के नाम से हुआ था। 1925 में टेंपल मेडिकल स्कूल के शिफ्ट हो जाने के बाद प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज के तौर पर इसकी स्थापना हुई। उस समय यह बिहार और उड़ीसा का संयुक्त रूप से पहला मेडिकल कालेज था। आजादी के बाद यह संस्थान पटना मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के तौर पर जाना जाने लगा।
वर्तमान पीएमसीएच. के पुनर्विकास की व्यापक परियोजना के बाबत स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय का कहना है कि जब मैं संगठन के कार्यकर्त्ता के रूप में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सहित अन्य दायित्वों पर था, तब अक्सर माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी एवं राज्य के दिवंगत उपमुख्यमंत्री श्री सुशील कुमार मोदी जी से यह सुनता था कि पीएमसीएच के विकास को आगे बढ़ाना है, इसे विश्व स्तर का संस्थान बनाना है। इसलिए राज्य के स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर यह प्रोजेक्ट मेरी प्राथमिकता पर था। हमारी योजना थी कि बिहार के इस महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य संस्थान को विश्वस्तरीय बनाया जाए, जिससे नागरिकों के लिए अच्छी स्वास्थ्य सुविधा का तो विस्तार हो ही, यह बिहार की पहचान के तौर पर भी स्थापित हो। माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी के नेतृत्व में इसी सोच के साथ मैंने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को पी.एम.सी.एच. के पुनर्विकास की योजना तैयार करने को कहा। लक्ष्य था पी.एम.सी.एच. को देश का सबसे बड़ा अस्पताल बनाना, 1750 बेड की मौजूदा क्षमता को तीन गुना बढाने के साथ ही चिकित्सा से जुड़े सभी विभागों व सुविधाओं से जोड़ना।
बिहार के वर्तमान स्वास्थ्य मंत्री श्री पाण्डेय का कहना है कि देश-दुनिया के अलग-अलग स्वास्थ्य संस्थानों व तकनीकी आदि का अध्ययन कराने के बाद पीएमसीएच की कार्ययोजना तैयार की गई। पीएमसीएच की नामांकन क्षमता बढ़ाकर 250 एमबीबीएस. सीटें करने के साथ ही 5462 बेड वाले चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल के रूप में पुनर्विकसित करने का फैसला किया गया। इस क्षमता के साथ पीएमसीएच विश्व का दूसरा व भारत का पहला सबसे बड़ा अस्पताल होगा।
पीएमसीएच. के पुनर्विकास की इस महात्त्वाकांक्षी परियोजना को तीन चरणों में बाँटा गया। इससे पहले संस्थान के पास उपलब्ध जमीन व संसाधनों का भी आकलन किया गया ताकि उसका अधिकतम उपयोग हो सके। संस्थान के अधिकतर भवन दो मंजिला या तीन मंजिला थे, इसलिए जमीन के अनुकूलतम उपयोग के लिए बहुमंजिला भवनों का निर्माण भी कार्ययोजना में शामिल किया गया।
पीएमसीएच के पुनर्विकास की इस महात्त्वाकांक्षी परियोजना को तीन चरणों में बांटा गया। इससे पहले संस्थान के पास उपलब्ध जमीन व संसाधनों का भी आकलन किया गया जिससे उसका अधिकतम उपयोग हो सके। संस्थान के अधिकतर भवन दो मंजिला या तीन मंजिला थे, इसलिए जमीन के अनुकूलतम उपयोग के लिए बहुमंजिला भवनों का निर्माण भी कार्ययोजना में शामिल किया गया।
पीएमसीएच. को विश्वस्तरीय अस्पताल बनाने के लिए कुल 5540 करोड़ रुपए की लागत को मंजूरी दी गई। पहले चरण में दो हास्पिटल ब्लाक, नर्सेज हास्टल, चिकित्सक आवास, लड़कियों के छात्रावास, ब्लड बैंक और 940 वाहनों की क्षमता वाली मल्टीलेवल पार्किंग के निर्माण को मंजूरी दी गई। मरीजों के साथ आने वाले तीमारदारों व परिजनों को भटकना न पड़े, इसके लिए 450 बेड के रैनबसेरे के निर्माण को भी सहमति दी गई।
दूसरे चरण में 1698 बेड के हास्पिटल ब्लाक, 250 नामांकन क्षमता के अनुरूप मेडिकल कालेज भवन, लड़के व लड़कियों के छात्रावास, आडिटोरियम, स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स और 516 वाहनों की क्षमता वाली मल्टीलेवल पार्किंग के विकास को शामिल किया गया।
तीसरे चरण के लिए 1573 बेड की क्षमता वाले हास्पिटल ब्लाक, चिकित्सक आवास एवं 390 वाहनों की क्षमता वाली मल्टीलेवल पार्किंग के निर्माण को मंजूरी दी गई। इस तरह से तीनों चरणों को मिलाकर करीब 72.44 लाख वर्गफीट में पूरे संस्थान को विकसित करने हेतु 8 फरवरी, 2021 को पीएमसीएच. के पुनर्विकास की कार्ययोजना तैयार की गई। योजना का शिलान्यास किया गया, जिसे सात वर्षों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी ने 27 फरवरी, 2024 को इसके सेंट्रल यूटिलिटी ब्लाक में ओपीडी का उद्घाटन कर जनता को समर्पित किया। पीएमसीएच का पुनर्विकास आजादी के बाद किसी संस्थान के विस्तार के लिहाज से राज्य के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा एकल स्वास्थ्य प्रोजेक्ट है। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में यह बिहार को एक नई पहचान दिलाएगा।
वाकई बिहार के स्वास्थ्य प्रक्षेत्र की यह बड़ी उपलब्धि है। कभी स्वास्थ्य सेवा व चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में बिहार का गौरव रहा पीएमसीएच. की छवि मलीन पड़ने लगी थी। बिहार ही नहीं पड़ोसी देश नेपाल के भी लाखों मरीजों के बोझ तले दबे पीएमसीएच की व्यवस्था चरमराने लगी थी। बावजूद दशकों से गरीबों के इलाज का एक मात्र भरोसा पीएमसीएच ही रहा। सरकारी मेडिकल कालेज अस्पतालों के साथ ही निजी अस्पतालों की संख्या में बढोत्तरी होती रही, फिर भी आम लोगों की आखिरी उम्मीद पीएमसीएच.ही बना रहा। पीएमसीएच के पुनर्विकास के इस मेगा प्रोजेक्ट से न केवल बिहार की स्वास्थ्य सेवा के क्षितिज का विस्तार होगा बल्कि उसका पुराना गौरव भी पुनर्स्थापित होगा। एनडीए की दो दशकीय शासनकाल की कतिपय बड़ी उपलब्धियों में पीएमसीएच. का पुनर्विकास उल्लेखनीय रहेगा।
अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप स्वास्थ्य संस्थानों में डाक्टर तैनात हों, इसके लिए उनकी पर्याप्त उपलब्धता भी जरूरी है। इसके लिए चिकित्सा शिक्षा को भी सशक्त करना बहुत आवश्यक था। वर्ष 2005 के बाद राज्य में इस दिशा में काम शुरू हुआ। 2017 में स्वास्थ्य मंत्री का दायित्व सँभालने के बाद जिस बात पर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय का जोर रहा, वह यह था कि बिहार के युवाओं को बिहार में ही अपनी मेधा व क्षमता के विकास और रोजगार का अवसर मिले, इसलिए राज्य में चिकित्सा शिक्षा संस्थानों को सशक्त करने का काम शुरू किया गया। चिकित्सा महाविद्यालयों में संसाधन बढ़ाए गए, जिससे वहां एमबीबीएस. की सीटों में बढ़ोतरी कर जनता की सेवा के लिए अधिक-से-अधिक डाक्टर तैयार किया जा सके। इसके लिए, जहां पहले से मौजूदा चिकित्सा महाविद्यालयों में सीटों में वृद्धि के लिए जरूरी मानक पूरे किए गए, वहीं नए चिकित्सा महाविद्यालयों की स्थापना की दिशा में भी कदम बढ़ाया गया। यह प्रयास सरकारी व निजी दोनों ही क्षेत्रों में हुए।
वर्ष 2017 के पहले राज्य के 10 चिकित्सा महाविद्यालयों में एमबीबीएस. की कुल 1050 सीटें थीं। जुलाई, 2024 तक इनकी कुल संख्या बढ़कर 1615 हो गई थी। इस तरह से सरकारी क्षेत्र में एमबीबीएस. की 565 सीटें बढ़ीं। सीटों में यह बढ़ोतरी 53.8 प्रतिशत थी। इस दौरान मधेपुरा में जननायक कर्पूरी ठाकुर चिकित्सा महाविद्यालय, पटना के बिहटा में कर्मचारी राज्य बीमा निगम मेडिकल कालेज और पूर्णिया में राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय भी स्थापित हुआ। इससे सरकारी चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या बढ़कर 13 हो गई।
सरकारी क्षेत्रों के साथ ही निजी क्षेत्रों में भी चिकित्सा संस्थानों की संख्या बढ़े, इसके लिए नीतियों में आवश्यक बदलाव किए गए, इससे निजी क्षेत्र की भी भागीदारी बढ़ी। वर्ष 2017 के पहले राज्य में तीन निजी चिकित्सा महाविद्यालय थे जिनकी संख्या जुलाई 2022 तक बढ़कर 9 हो गई। मधुबनी, मुजफ्फरपुर में एक-एक और सहरसा एवं पटना में दो नए निजी चिकित्सा महाविद्यालय प्रारंभ हुए। निजी क्षेत्र में एमबीबीएस की सीटों की संख्या बढ़कर 1200 पहुंच गई। वर्तमान में, सरकारी व निजी क्षेत्र को मिलाकर एमबीबीएस सीटों की कुल 2815 हो गई, जिससे बिहार में चिकित्सा शिक्षा के अवसर और बेहतर हुए।
एक अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था निर्माण में जितनी भूमिका चिकित्सकों की होती है, उससे कहीं ज्यादा महत्त्वपूर्ण भूमिका परिचारिकाओं (नर्सों) की होती है। प्रशिक्षित पारामेडिकल स्टाफ भी आवश्यक होते हैं। इसलिए स्वास्थ्य संस्थानों में कार्यरत नर्सिंगकर्मियों के विशेष प्रशिक्षण की व्यवस्था को भी दुरुस्त किया गया। प्रशिक्षण के दौरान नर्सिंगकर्मियों को नवीन उपकरणों के उपयोग, इलाज के विकसित किए गए नए तरीकों, सावधानी व स्वच्छता के आधुनिक तरीकों से परिचित कराया गया। स्वास्थ्य संस्थानों के विस्तार व नए संस्थानों की स्थापना के चलते नर्सिंग स्टाफ की उपलब्धता का अभाव न हो, इसके लिए नर्सिंग कालेजों की क्षमता वृद्धि की भी कार्ययोजना बनाई गई। राज्य में जुलाई 2022 तक 73 सरकारी एएनएम और 26 जीएनएम. स्कूल के साथ ही 5 कालेज ऑफ नर्सिंग संचालित थे। इनमें प्रतिवर्ष कुल 6093 प्रशिक्षुओं की प्रवेश क्षमता थी। अगर पाठ्यक्रमवार इनके विवरण पर नजर डालें तो एएनएम की कुल 4255, जीएनएम. की 1538 और कालेज ऑफ नर्सिंग की 300 सीटें थीं।
परंपरागत पाठ्यक्रमों की पढ़ाई के साथ ही प्रशिक्षुओं के कौशल विकास के लिए 28 नर्सिंग स्कूलों में स्किल लैब भी स्थापित किए गए। इन लैब में अस्पतालों में दी जाने वाली नर्सिंग सेवाओं का नियमित प्रशिक्षण दिया गया, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में और सुधार आया।
बिहार के जिलों में बेहतर स्वास्थ्य सेवा का अभाव था जिसके कारण पूरे बिहार से मरीज पीएमसीएच पहुंच जाते थे। इस स्थिति को बदले बिना पीएमसीएच का कल्याण संभव नहीं था। बिहार में छोटे शहरों में भी अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं हो गयी है। इसके कारण पीएमसीएच में अगंभीर रोगी नहीं पहुंचने लगे है। ऐसे में पीएमसीएच में रोगियों की भीड में कमी आने लगी है। इससे यहां अध्ययन और शोध की गुणवत्ता बेहतर होने की आशा है। अपने शताब्दी वर्ष में शायद पटना मेडिकल कालेज अपने खोए हुए गौरव को फिर से प्राप्त कर ले।