डॉ. सुरेन्द्र राय
पटना मेडिकल कालेज अपनी स्थापना का शताब्दी समारोह मना रहा है। यह एक अतिमहत्वपूर्ण अवसर है। इस अवसर पर बिहार में मेडिकल चिकित्सा संस्थानों की जननी यानी पटना मेडिकल कालेज के बारे में विचार करने की सहज प्रवृति हुई है। मैं भी इस कालेज का छात्र रहा हूं। वहीं से मैने प्लास्टििक सर्जरी में एमसीएच का कोर्स किया। इसके बाद छह वर्षों तक शिक्षक के रूप में काम भी किया।
मेरा मानना है कि पीएमसीएच की यात्रा एक मेडिकल शिक्षण संस्थान के रूप में शुरू हुई थी, जिसका लक्ष्य चिकित्सक और चिकित्सा विज्ञान के शिक्षकों की टोली निर्माण था। पीएमसीएच एक सामान्य अस्पताल नहीं था बल्कि रोगों के कारण और निवारण पर काम करने वाला अस्पताल था। यह काम आजादी के बाद बहुत वर्षों तक ठीक से चलता रहा। लेकिन, आबादी के अनुसार मेडिकल क्षेत्र में अपेक्षित विकास नहीं होने के कारण इस महान संस्थान पर सेवा का बोझ अत्यधिक बढ़ता चला गया। इस संस्थान ने अपनी क्षमता से कई गुणा अधिक बोझ के बावजूद अपने इस नैतिक दायित्व का निर्वहन भी किया। लेकिन, इस नैतिक दायित्व के निर्वहन में वह काम छूटता चला गया जिसके लिए इस संस्थान की पूरे विश्व में ख्याति थी। इंगलैंड-अमेरिका जैसे देशों के प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थानों में भी यहां के छात्रों को सम्मान दिया जाता था। मेरा मानना है कि इस महान संस्थान के शताब्दी वर्ष के अवसर पर इस बिदु पर गहन विचार-विमर्ष होना चाहिए और इसके बाद इस दिशा में कोई ठोस योजना पर काम भी शुरू होना चाहिए।
जहां तक मेरी जानकारी है प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज की स्थापना टेम्पल मेडिकल स्कूल द्वारा तैयार आधार भूमि पर किया गया। वर्ष 1874 से टेम्पल मेडिकल स्कूल के माध्यम से रोग के निदान का संगठित प्रयास शुरू हुआ था। उस समय अंग्रेजी पद्धति के साथ ही भारतीय पद्धति के सहयोग से रोगियों का उपचार होता था। लेकिन, अंग्रेजी पद्धति से उपचार के लिए चिकित्सक तैयार करने के लिए प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज की स्थापना हुई। इस संस्थान के प्रथम दौर के चिकित्सकों के नैदानिक कौषल में लक्ष्णों की पहचान की प्रमुखता थी और वे अपने उपचार पद्धति में रहन-सहन, खाना-पान को विषेष महत्व देते थे। डा. टीएन बनर्जी से लेकर बाद के कई प्रसिद्ध चिकित्सकों ने इस पद्धति को अपनाया था ओर उनके सान्निध्य में काम करने वाले छात्रों का विशेष प्रशिक्षण भी हो जाता था।
पटना मेडिकल कालेज के शिक्षण-प्रशिक्षण परम्परा की इस विशेषता की ख्याति पूरे विश्व में थी। इस कालेज में महान शिक्षकों की श्रेष्ठ परंपरा रही है। यहां के शिक्षक विश्व के प्रतिष्ठित संस्थानों से उच्च शिक्षा और प्रशिक्षण लेकर आते थे और यहां काम करते हुए शोध भी करते रहते थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आर्थो और प्लास्टिक सर्जरी में पूरे विश्व में शोध ओर नवाचार का सिलसिला तेजी से शुरू हुआ था, उसमे पटना मेडिकल कालेज महत्वपूर्ण भूमिका में था। डॉ. बी.मुखोपाध्याय एक उदाहरण हैं। समय बदलने के साथ -साथ इस सस्थान को जितना संसाधन चाहिए था, वह नहीं मिला जिसके कारण यह संस्थान केवल इलाज का केन्द्र जैसा बन गया। पटना मेडिकल कालेज भारत का प्रिमियर संस्थान है। शताब्दी वर्ष के अवसर पर यह संस्थान संसाधन सम्पन्न होकर अपने गौरव की ओर लौटता दिख रहा है।