By using this site, you agree to the Privacy Policy and Terms of Use.
Accept
Swatva Samachar
Notification
  • Home
  • देश-विदेश
  • राज्य
  • राजपाट
  • खेल-कूद
  • मनोरंजन
  • अपराध
  • अर्थ
  • अवसर
  • आप्रवासी मंच
    • बिहारी समाज
  • मंथन
  • वायरल
  • विचार
  • शिक्षा
  • संस्कृति
  • स्वास्थ्य
  • वीडियो
  • E-Magazine
Font ResizerAa
Swatva SamacharSwatva Samachar
  • देश-विदेश
  • राजपाट
  • खेल-कूद
  • मनोरंजन
  • अपराध
  • अर्थ
  • अवसर
  • आप्रवासी मंच
  • बिहारी समाज
  • मंथन
  • वायरल
  • विचार
  • शिक्षा
  • संस्कृति
  • स्वास्थ्य
Search
  • About us
  • Advertisement
  • Editorial Policy
  • Grievance Report
  • Privacy Policy
  • Terms of use
  • Feedback
  • Contact us
Follow US
विचार

जानें कैसे 1874 में बोए एक बीज से बटवृक्ष बना पीएमसीएच?

Amit Dubey
Last updated: March 25, 2025 1:50 pm
By Amit Dubey 3.7k Views
Share
15 Min Read
डॉ. पारस नाथ सिन्हा,पीएमसीएच, सेवा ही धर्म, शताब्दी वर्ष
SHARE

आजादी के पूर्व 1874 में पटना के गंगा के तट पर स्थित मुरादबाग स्थित एक मकान में टेम्पल मेडिकल स्कूल का संचालन शुरू हुआ। बाद में वह मेडिकल स्कूल 1925 में प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज बन गया। वर्ष 1947 में जब भारत आजाद हुआ तक इसका नाम पटना मेडिकल कालेज हो गया। इस मेडिकल कालेज ने स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र में जो इतिहास रचा है, वह बिहार का गौरव है।

- Advertisement -

डा.एसएन झा की पुस्तक ‘वो सुनहरे दिन’ का अंश

जून का महीना। पटना की एक गर्म सुबह। ले.क. डटन अपनी पत्नी के साथ सुबह की चाय का आनंद ले रहे थे। तभी उनकी नजर ले. गवर्नर बुलवार लयटन के एक पत्र पर पड़ी। जैसी उनकी आदत थी बचे हुए पत्रों को वे सुबह की चाय के समय देखते थे। इस पत्र से वे थोड़े चकित थे थोड़े भ्रमित। ब्रिटिश रुलर्स के लिए इंडिया में स्वास्थ्य प्राथमिकता नहीं थी। अनमने ढंग से उन्होंने लिफाफे को खोला यह सोच कर कि कोई अफसरशाही का अर्थहीन रूटीन पत्राचार होगा। पर तभी उनके चेहरे पर आई चमक को देख कर उनकी पत्नी को सहर्ष आश्चर्य हुआ। वर्षों बीत गए थे जब यह चमक उनके चेहरे पर हुआ करती थी।

‘‘क्या बात है डिअर,’’ उन्होंने पूछा।
‘‘जानती हो, सरकार पटना में एक मेडिकल कॉलेज खोलने वाली है और मुझे यह जवाबदेही दी गयी है।’’ उस समय उन्हें भी नहीं पता था कि वे इतिहास का एक हिस्सा बनने वाले हैं, उस मेडिकल कॉलेज के प्रथम प्राचार्य के रूप में। मेडिसिन से उन्हें बेहद लगाव था और अब सिर्फ़ रोगियों का वे इलाज ही नहीं करेंगे, इलाज करने वाले अपने जैसे डॉक्टर भी बनायेंगे।

पीएमसीएच के पूर्ववर्ती छात्र डा.एसएन झा की पुस्तक ‘वो सुनहरे दिन’ का यह अंश इस महान शिक्षण संस्थान की वृहत कथा का मंगलाचारण जैसा है।

- Advertisement -

प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज की स्थापना व संचालन से जुड़े सारे रिपोर्ट व अन्य दस्तावेज नेशनल लाइब्रेरी आफ स्काटलैड में आज भी सुरक्षित है। प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज ही आजाद भारत में पटना मेडिकल कालेज के नाम से जाना जाता है। अतः प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज का इतिहास पीएमसीएच का ही इतिहास है। वर्तमान समय में जिस स्थान पर पीएमसीएच विद्यमान है वहां पूर्व में मुराद कोठी नाम से एक मकान हुआ करता था। वह मकान भी ऐतिहासिक था। मिर्जा मुराद सफावी ईरान के सफावी वंश के एक संत थे। वे अकबर के शासन के दौरान हिन्दुस्तान आए थे। सफावी वंश की स्थापना शाह इस्माइल सफावी ने की थी, जो बाबर के समय के थे। पटना के एकांत गगा तट उन्हें भा गया था। शाह मुराद ने पटना में गंगा के किनारे एक कोठी बनवाई थी। जिसमें बाद में टेम्पल मेडिकल स्कूल और प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज का संचालन शुरू हुआ था। शाह मुदार ने गंगा तट पर ही एक बागान भी लगवाया था। बाद में उसी बगान के क्षेत्र में पीएमसीएच का विस्तार हुआ। अपनी कोठी से थोड़ी दूरी पर ही उन्होंने एक बाजार बनवाया जो मुरादपुर के नाम से जाना जाने लगा। उनका मजार आज भी चिल्ड्रेन्स पार्क के पास स्थिति है। बाद मंे शाह मुराद की यह सम्पति दरभंगा महाराज के अधीन आ गयी थी।

ईस्ट इंडिया कंपनी से भारत के शासन का बागडोर जब बिटिश सरकार ने अपने हाथों में ले लिया तब ब्रिटेन से अधिक संख्या में अधिकारी और कर्मचारी भारत लाए गए। उनके स्वास्थ्य की देखभाल को लेकर ब्रिटेन के संसद में बात उठी थी। इसके कारण बंगाल सरकार पटना में एक मेडिकल स्कूल खोलने की हड़बड़ी में थी। बांकीपुर में उसने बिना उचित स्थान देखे इसकी शुरुआत कर दी। समस्या हुई तो फिर कुछ समय के लिए इसे पटना सिटी के शादीपुर मोहल्ले में ले गए।
23 जून 1874 को विधिवत इस स्कूल की स्थापना हुई थी। उस समय डेविड बी. स्मिथ पटना के सिविल सर्जन थे। उन्हें ही प्रिंस मेडिकल टेम्पल स्कूल का प्रथम प्रिंसिपल बनाया गया। साथ में चार शिक्षकों की नियुक्ति हुई। डा. रामकलि गुप्ता, एनाटॉमी के डिमोंस्ट्रेटर और मिडवाइफरी पद पर बहाल हुए। वहीं डा दयाल चन्द्र शर्मा एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, और सर्जरी के लेक्चरर के रूप में बहाल हुए। डा नन्दलाल घोष ऑन स्पेशल ड्यूटी तथा डा सरवरुल हक, लेक्चरर इन मेडिसिन एण्ड मैटिरिया मेडिका पद पर बहाल हुए। इस नवस्थापित मेडिकल स्कूल में पहले 20 विद्यार्थी नामांकित हुए थे। बाद में छात्रों की संख्या 32 हो गयी थी। एक साल में छात्रों की संख्या 54 हो गयी थी। इस मेडिकल स्कूल में पढ़ाई उर्दू और हिन्दी में होती थी। लिपि फारसी थी। बाद में कैथी लिपि का प्रयोग होने लगा। प्रवेश शुल्क 2 रुपए, ट्यूशन फी; प्रथम वर्ष 1 रुपया, द्वितीय वर्ष 2 रुपए, तृतीय वर्ष 3 रुपए और फाइनल परीक्षा के लिए 10 रुपए शुल्क देने होते थे। इसमें प्रथम वर्ष के 80 प्रतिशत विद्यार्थी मुस्लिम थे, क्योंकि हिन्दू लोग मुर्दा को छूना अच्छा नहीं मानते थे। बाँकीपुर डिस्पेंसरी में पढ़ाई शुरू हुई। आजकल वहां बीएन कालेज का हास्टल है।

- Advertisement -

काफी जद्दोहद के बाद 31 अगस्त 1874 में इसका नामकरण टेम्प्ल मेडिकल स्कूल किया गया। उस समय टेम्प्ल साहब बंगाल के गवर्नर थे। बांकीपुर डिस्पेन्सरी में जगह की कमी थी। सिटी के शादीपुर में ले जाने का विचार खत्म कर दिया गया और मुराद कोठी में अन्ततः इस स्कूल को ले जाया गया। 1874 में टेम्प्ल मेडिकल स्कूल की स्थापना तो हुई पर इसका विकास बहुत धीमा था। 1899 तक यहां सिर्फ़ एक माइक्रोस्कोप था। एंड्र फ्रेजर ने सर्वप्रथम इसके विकास के लिए प्रयास किया। उन्होंने मकान और सामान के लिए पैसे की व्यवस्था की।

जब बिहार और उडीसा बंगाल से अलग हुए तब मेडिकल कालेज की आवश्यकता महसूस हुई और प्रयास ने जोर पकड़ा। लेकिन तुरंत मेडिकल कालेज की स्थापना संभव नहीं था। ऐसे में बिहार की सरकार ने बंगाल सरकार से अनुरोध कर बिहार के 18 विद्यार्थियों के लिए वहां पढ़ाई की व्यवस्था सुनिश्चित करा दी। मेडिकल के हर छात्रों को प्रति माह 12 रुपए की छात्रवृत्ति दी जाने लगी।

वर्ष 1920 ई. में जब प्रिंस ऑफ वेल्स की भारत यात्रा का कार्यक्रम तय हुआ तब बिहार में एक मेडिकल कालेज की स्थापना की बात जोरशोर से उठी। बिहार के ले. गवर्नर मि. एडवर्ड गेट का ने स्वयं प्रस्ताव रखा कि मेडिकल कालेज का शिलान्यास प्रिंस आफ वेल्स के हाथों कराया जाए। उनकी यात्रा की स्मृति में इस कालेज का नाम उनके नाम पर ही होगा। प्रस्ताव के अनुरूप प्रिंस आफ वेल्स ने कालेज का शिलान्यास अपने हाथों से किया। इस कालेज के लिए कोष की व्यवस्था की अपील की गयी।

मेडिकल कॉलेज खोलने की दिशा में प्रयास सफल होता तब दिखा जब महाराज दरभंगा ने पांच लाख रुपए दान में दिए। उस समय यह बहुत बड़ी राशि थी। दान के लिए अपील जारी की गई और कुल 9 लाख पचीस हजार रुपए जमा हुए। जिन लोगों ने दान किए उनके नाम एक शिलापट पर पीएमसीएच के प्रशासनिक भवन की दीवार पर आज भी अंकित हैं। दरभंगा महाराज कामेश्वर सिंह के बाद दान देने वालों में राजा बलदेव दास बिड़ला थे। उन्होंने एक लाख .25000 रूपए दान दिए। इसके बाद बनैली के राजाबहादुर कृत्यानन्द सिंह, अमावां के राजाबहादुर हरिहर प्रसाद नारायण सिंह, बेतिया राज, हथुवा महाराज ने एक-एक लाख रूप्ए दान दिए। इसके बाद काशीनाथ सिंह ने 50,000 रूपए इस कालेज के निर्माण के लिए दान दिए थे। डुमराव के केशव प्रसाद सिंह, चौनपुर स्टेट, बांका के गिरिवर प्रसाद सिंह, रामगढ़ स्टेट ने पचीस-पचीस हजार रूप्ए दिए थे। नरहन स्टेट ने 15,000 दिया था। मयूरभंज स्टेट और गिद्धौर स्टेट ने दस-दस हजार का दान दिया था।

सौ वर्ष पुराने इस मेडिकल कालेज का नक्शा ऑस्टिन स्मिथ ने बनाया था। वे ब्रिटिश इंडिया में सिविल हॉस्पिटल्स के आई.जी. थे। इसके भवनों का डिजाइन कर्नल डट्टन की सहायता से ऐन्सवर्थ ने तैयार किया था। बिहार की सरकार ने कर्नल डट्टन को भारत और भारत के बाहा के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों को देखने के लिए प्रति-नियुक्त किया ताकि पटना मेडिकल कालेज सुविधा के मामले में अद्यतन रहे।

जुलाई 1925 में प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज ने काम करना प्रारम्भ कर दिया। पहली बार 40 विद्यार्थियों का एडमिशन हुआ। उस समय सिर्फ़ बायोलॉजी की पढ़ाई होने लगी। जुलाई 1926 में बाकी विषयों के वर्ग प्रारम्भ हुए। कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में पढ़नेवाले बिहार के छात्रों को भी यहीं बुला लिया गया। वैसे तो इसका औपचारिक उद्घाटन 25 फरवरी 1925 को सर हेनरी व्हीलर द्वारा हुआ। उस समय विद्यार्थियों की संख्या 154 थी। मुराद कोठी आगे चलकर बिक गयी थी और इसका नाम वैप्टिस्ट सोसाइटी रखा गया था। बैप्टिस्ट सोसायटी हाउस को सरकार ने खरीदा और इसके बाद मुरादकोठी एरिया में मेडिकल कॉलेज को शिफ्ट कर दिया गया।

ले. कर्नल एच.आर. डट्टन प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज के प्रथम प्रिंसिपल थे। इनका जन्म 21 नवम्बर 1875 को इंग्लैंड के हर्टफोर्डशायर नामक छोटे से जिले के वेमर नामक स्थान में हुआ था। वे सेना की नौकरी करने लगे थे। नौकरी के दौरान उनकी पोस्टिंग तिब्बत में हुई थी। वे तिब्बत मेडल से भी सम्मानित हुए थे। कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में रेसिडेंट फिजिसियन के पद पर सिविलियन सेवा में आने के बाद उन्होंने सिविल स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करना शुरू किया। फिर वे पटना के सिविल सर्जन बने। उसी समय पटना में मेडिकल कॉलेज खोलने का प्रस्ताव आया और डॉक्टर डट्टन को यह भार दिया गया। उन्होंने पूरे मनोयोग इस इस नवजात संस्थान के उत्थान के लिए काम किया। एक तरह से कह सकते हैं कि पटना मेडिकल कॉलेज को भ्रूणावस्था से लेकर यौवन तक पहुंचाने का काम इन्होंने किया। इस मेडिकल कालेज का रैडियम इंस्टीट्यूट भारत में पहला और अकेला था। इन्हीं के समय में एक्सरे और इलेक्ट्रोथेरापुटिक विभाग की स्थापना हुई थी।

डॉ. डट्टन के बाद ले. कर्नल डंकन कूट्स प्रिंस आफ वेल्स कालेज के प्राचाय्र बने थे। वे हजारीबाग के सिविल सर्जन थे। कूट्स 1930 से 1935 तक इस कालेज के प्राचार्य रहे। ले. कर्नल ए.एन. बोस पहले भारतीय थे जो प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज के प्रिंसिपल बने। वे पहले भारतीय थे जिन्हें एम.आर.सी.पी. की डिग्री मिली। उनके साथ ग्रांट मेडिकल कालेज के डा. मारिया को यह सम्मान मिला था। कर्नल मटीनी प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज के अन्तिम अंगरेज प्रिंसिपल थे। वे बहुत अच्छे वक्ता और डिबेटर थे।

पटना मेडिकल कॉलेज वहां के शिक्षकों व पूववर्ती छात्रों के दिल में रचता-बसता है। वहां के विद्यार्थियों एवं शिक्षकों के दिल में उनके इस मातृ संस्थान का क्या स्थान है वह डा. आर. बी. श्रीवास्तव की लेखनी से स्पष्ट हो जाता है। अपनी स्मृतियों को ताज करते हुए वे लिखते हैं-‘आज से ठीक एकतालीस साल पहले 1963 के जुलाई में मैंने इस विद्या-मन्दिर में प्री-मेडिकल छात्र के रूप में अपना क़दम रखा। एक डॉक्टर के रूप में यही मेरी जन्मभूमि है, यही मेरी कर्मभूमि है। मैंने इस मन्दिर में हमेशा एक माँ का रूप देखा है। 1963 में इसकी कोख में रहने के बाद 1969 में एम.बी.बी.एस. करने के बाद इंटर्न के रूप में मेरा जन्म हुआ, उसके बाद आज तक इस माँ ने अपनी गोद में रखकर अपने आँचल का साया दिया, कभी इसने अलग नहीं होने दिया। इससे अधिक खुशी की बात मेरे लिए कुछ और नहीं हो सकती। रिटायरमेंट के बाद अब कहीं और चला जाऊँगा। लेकिन ऐसा लगता है कि उस कैम्पस की माटी और हवा की महक मेरी साँस में बस गई है और यही वह धरोहर है जो मेरे साथ आमरण रहेगी। एकान्त में मैं कभी-कभी सोचा करता हूँ, जीवन में क्या खोया और क्या पाया। मैं एक ज्ञानी शिक्षक या एक कुशल चिकित्सक नहीं बन पाया, अपने गुरुजनों के मापदण्ड पर खरा नहीं उतर पाया, उन आदर्शों का मूल्य नहीं समझ पाया जो इस विद्यालय के क्लास रूम, प्रैक्टिकल हॉल, लैबॉरेटरी, ओ.टी. और वार्ड्स ने मेरे सामने रखे थे।’’

डा. आर. बी. श्रीवास्तव एक समर्थ शिक्षक व चिकित्सक हैं। लेकिन, जब वे अपने कालेज और शिक्षकों को याद करते हैं तो भावुक हो उठते हैं। वे अपनी भाव भूमि पर अपने मातृ शिक्षण संस्थान के बारे में लिखते हुए स्वयं को उसमें समाहित कर देते हैं। बड़े डाक्टर होने के बावजूद खुद को अपने गुरुओं के समक्ष छोटा बताना आज के इस युग में बहुत बड़ी बात है। एक महान संस्थान के रूप में पीएमसीएच ने जिस गौरवपूर्ण इतिहास की रचना की है वह अतुलनीय और अनुकरणीय है।

TAGGED: डॉ.एसएन झा, पीएमसीएच, बीज से बटवृक्ष
Share This Article
Facebook Twitter Whatsapp Whatsapp LinkedIn Telegram Copy Link
Did like the post ?
Love0
Sad0
Happy0
Sleepy0
Angry0
Dead0
Wink0

हमने पुरानी ख़बरों को आर्काइव में डाल दिया है, पुरानी खबरों को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कर। Read old news on Archive

Live News

- Advertisement -

Latest News

जी हां! चौंकिए नहीं, प्रखंड परिसर से हो रही शराब तस्करी
बिहारी समाज
मशरूम की खेती का हब बना नवादा, राज्य समेत अन्य राज्यों में की जा रही आपूर्ति
बिहारी समाज
140 लीटर महुआ शराब बरामद, बाइक जब्त, धंधेबाज फरार
बिहारी समाज
मुखिया को पदच्युत करने में विभाग के फूल रहे हाथ पांव
बिहारी समाज
- Advertisement -

Like us on facebook

Subscribe our Channel

Popular Post

जी हां! चौंकिए नहीं, प्रखंड परिसर से हो रही शराब तस्करी
बिहारी समाज
मशरूम की खेती का हब बना नवादा, राज्य समेत अन्य राज्यों में की जा रही आपूर्ति
बिहारी समाज
140 लीटर महुआ शराब बरामद, बाइक जब्त, धंधेबाज फरार
बिहारी समाज
मुखिया को पदच्युत करने में विभाग के फूल रहे हाथ पांव
बिहारी समाज
- Advertisement -
- Advertisement -

Related Stories

Uncover the stories that related to the post!
डॉक्टर, महिला, वीडियो, वोट, नीतीश, इलाज, महनार
राजनीति

सरकारी डॉक्टर ने महिला से कहा…वोट नीतीश को दी तो इलाज भी वही करेंगे

बिहार में आज एक महिला का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल…

By Amit Dubey
विचार

चिरांद का सम्बंध है पुत्रेष्टि यज्ञ से

छपरा: परमतीर्थ चिरांद के प्राचीन अयोध्या मंदिर में कार्तिक मास में कल्पवास…

By Swatva Desk
पालीगंज, 3 की मौत, बाप, 2 बेटे, दशहरा मेला, गोलगप्पे
दुर्घटना

पालीगंज में बाप और 2 बेटों की मौत से हड़कंप, दशहरा मेले में खाए थे गोलगप्पे

राजधानी पटना के पालीगंज में एक ही परिवार के तीन लोगों की…

By Amit Dubey
लेटेस्ट न्यूज़

हिंदी के कंधों पर वाम-वैचारिकी की बंदूक, हिंदी विरोध की आड़ में ‘कुछ और’ पक रहा…!

अभी हिंदी पखवाड़ा चल रहा है, तो हिंदी के बहाने अपनी-अपनी वैचारिकी…

By Prashant Ranjan
Show More
- Advertisement -

About us

पत्रकारों द्वारा प्रामाणिक पत्रकारिता हमारा लक्ष्य | लोकचेतना जागरण से लोकसत्ता के सामर्थ्य को स्थापित करना हमारा ध्येय | सूचना के साथ, ज्ञान के लिए, गरिमा से युक्त |

Contact us: [email protected]

Facebook Twitter Youtube Whatsapp
Company
  • About us
  • Feedback
  • Advertisement
  • Contact us
More Info
  • Editorial Policy
  • Grievance Report
  • Privacy Policy
  • Terms of use

Sign Up For Free

Subscribe to our newsletter and don't miss out on our programs, webinars and trainings.

[mc4wp_form]

©. 2020-2024. Swatva Samachar. All Rights Reserved.

Website Designed by Cotlas.

adbanner
AdBlock Detected
Our site is an advertising supported site. Please whitelist to support our site.
Okay, I'll Whitelist
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?