(डॉ राजीव कुमार सिंह)
एचओडी, फिजियोलॉजी, पीएमसीएच
पटना मेडिकल कालेज का यह शताब्दी समारोह इसके गौरवशाली अतीत के स्मरण का एक अवसर है। अंग्रेजों के शासनकाल में इस संस्थान ने प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज के नाम से चिकित्सा विज्ञान और सेवा के क्षेत्र में अपना योगदान शुरू किया था। अनुकूलता और प्रतिकूलता को सहजता से पार करता हुआ यह संस्थान अपने शताब्दी वर्ष में एक नया इतिहास रचने की ओर अग्रसर है। भारत ही नहीं बल्कि एशिया के सबसे बड़े अस्पताल होने का गौरव इसे प्राप्त होने वाला है। इस संस्थान के एक अंग होने के कारण मुझे भी इसका गौरव है।
किसी शिक्षण संस्थान की ख्याति उसके शिक्षक और छात्रों के कारण होती है। संस्थान की प्रतिष्ठा के कारण उसके छात्रों को भी महत्व मिलता है। इस प्रकार कोई भी संस्थान एक परम्परा और विश्वास का प्रतीक होता है। यहां के छात्र जब उच्च शिक्षा के लिए ब्रिटेन के संस्थानों में प्रवेश के लिए जाते थे तब उन्हें कोई परीक्षा नहीं देना पड़ता था। यह सिलसिला 1970 तक जारी रहा। पटना मेडिकल कालेज छोटी गिरावट के बाद फिर से उठकर चल पड़ा है। पीएमसीएच एक ऐसा संस्थान है जहां जगह और संसाधन की कमी के बावजूद जीवन-मौत से जूझ रहे मरीजों का उपचार शुरू कर दिया जाता है। कमरे और बरामदे में जगह नहीं होने पर पोर्टिको में भी उपचार शुरू कर देने की भी बात यहां होती है। इस दृष्टि से मानवता की सेवा के उदाहरण शायद दूसरे अस्पतालों में नहीं मिलते हैं।
मेरा मानना है कि शताब्दी वर्ष जैसे महत्वपूर्ण अवसर पर हमें सिंहावलोकन करना चाहिए। इसमें कालेज परिवार के साथ ही समाज, सरकार की भी भूमिका महत्वपूर्ण है। हमारे पीएमसीएच परिवार में हमारे पूर्ववर्ती छात्र भी शामिल हैं जिनके लिए यह संस्थान मां के समान है। धरती माता की तरह एक ऐसी मां जिसकी यात्रा अनंतकाल तक चलती है, जो आगे भी हमारी संतति को रोग-व्याधि से मुक्त रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेगी। कीर्ति और यश का अवसर देने वाली इस मां की गरिमा और प्रभाव की वृद्धि में इसके सपूतों का सहयोग अवश्य मिलेगा। पटना मेडिकल कालेज और यहां के चिकित्सकों के प्रति समाज के लोगों का अद्भुत विश्वास रहा है। यहां के चिकित्सकों ने अपनी शोध प्रतिभा और नैदानिक कौशल के माध्यम से विश्व चिकित्सा जगत की समृद्ध बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। महात्मा गांधी की पोती का आपरेशन, पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखरजी के अपेंडिक्स का आपरेशन जैसे कई उदाहरण हैं जो इस संस्थान के गौरव का स्मरण दिलाते हैं। इस संस्थान ने मेडिकल साइंस के मौलिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
वर्ष 1925 में प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज की स्थापना के बाद यहां मेडिसीन, रेडियो थरेपी, आब्सट्रेटिक गइनी, और फिजियोलाजी इन चार विषयों में पीजी शिक्षा प्रारंभ हुआ था। उस समय पूर्वी भारत में फिजीयोलाजी में पीजी की केवल पटना मेडिकल कालेज में ही होती है। मेडिकल साइंस में फिजीयोलाजी की मौलिकता और महत्व सिद्ध है। क्योंकि इसी के आधार पर शरीर के सामान्य और असामान्य स्थिति का आंकलन करने की क्षमता एक मेडिकल छात्र और चिकित्सक के अंदर आती है। इसके आधार पर ही मेडिसीन, सर्जरी जैसे सभी विभागों के चकित्सक कार्य करते हैं।