डॉ. शीला शर्मा
आजादी के पूर्व स्थापित प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज आजादी के बाद पटना मेडिकल कालेज के नाम से जान जाता है। नाम कुछ भी हो लेकिन इस चिकित्सा षिक्षा संस्थान ने सौ वर्षों की अपनी यात्रा में जो प्रतिमान और गौरव स्थापित किए हैं, वह अतुलनीय है। मेरा सौभाग्य है कि मैं इस कालेज की छात्रा ओर षिक्षक रही हं। इसके एलुमीनाई एसोषिएषन से मैं आज भी जुड़ी हुई्र हूं। जब मैं अपने इस कालेज को एक छात्रा के रूप में याद करती हूं तो रोमांच से भर जाती हंू। पढ़ाई का वह स्तर, अनुषासन, छात्र-षिक्षकांे का वह समबंध, सांस्कृतिक गतिविधियां, स्पोर्ट्स ये सब मिलकर मुझ जैसे विद्यार्थियों के व्यक्तित्व की रचना करते थे। मैं आज भी समय का पाबंद हूं। मुझ से लोग पूछते हैं कि आप इतना अनुषासित कैसे रहती हैं तो मेरा जवाब होता है कि मैने अपने गुरुओं से जो सीखा उसे अपने जीवन में उतारा, अब वह मेरी आदत हो गयी है। इसे मैं जीवनपर्यंत छोड़ नहीं सकती। अपने उस वातावरण से पीएमसीएच योग्य चिकित्सक गढ़ता था।
मुझे स्मरण है कि उन दिनों पटना मेडिकल कालेज में कोई छात्र या छात्रा अपने पिता के कारण नहीं जाना जाता था। छात्रों की पहचान उनकी प्रतिभा और क्षमता से होती थी। समानता, समरसता और सद्भाव के अद्भुत माहौल में सहज ही शिक्षण-प्रशिक्षण होते रहता था। ऐसे माहौल में एक छात्र मेडिकल साइंस के गहन विषयों का ज्ञाता कब और कैसे बन जाता था, उसकी जानकारी उसे भी नहीं होती थी। पढ़ने-पढ़ाने, सीखने-सीखाने के उस माहौल में एक परिवार जैसा अहसास होता था। हमारे शिक्षक अभिभावक ही थे। उस माहौल में अपने वरिष्ठ के प्रति विनयशीलता का व्यवहार प्रत्येक छात्रों का सहज गुण होता था। हमारे शिक्षक नियत समय पर क्लास में पहुंच जाते थे। शिक्षक के पूर्व क्लास में छात्रों का उपस्थित होना अनिवार्य था। वर्ग में छात्रों की शत प्रतिषत उपस्थित होती थी। इस प्रकार पीएमसीएच चिकित्सा शास्त्र में सभी तरह से प्रतिभावान और योग्य स्नातकों का निर्माण करता था। ब्रिटेन के रायल मेडिकल कालेज जैसे संस्थान में भारत से यदि कोई छात्र उच्च शिक्षा के लिए जाता था तो उससे पूछा जाता था कि क्या वह प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज से है। प्रिंस आफ वेल्स मेडिकल कालेज से होना ही योग्यता का प्रमाण माना जाता था।
पटना मेडिकल कालेज में शोध के लिए अपेक्षित वातावरण का निर्माण होना चाहिए ताकि इसका गौरव फिर से स्थापित हो सके। सामान्य मरीज की भीड़ के कारण यह संस्थान वह नहीं कर पा रहा है, जो इसे करना चाहिए था। अब जिला स्तर के अस्पतालों में भी सामान्य रोगों के उपचार की व्यवस्था हो गयी है। ऐसे में पीएमसीएच में केवल रेफर केस लाने की व्यवस्था बने ताकि यहां की शिक्षा और शोध विश्वस्तरीय हो। यह हर्ष की बात है कि पटना मेडिकल कालेज अस्पताल सुविधापूर्ण भवन और अन्य संसाधनों के मामले में सम्पन्न हो रहा है। लेकिन, किसी महान संस्थान का निर्माण या उसकी महान परम्परा की रक्षा व विकास संसाधान के साथ ही योग्य कार्यकर्ताओं के माध्यम से होता है। डा. बी. मुखोपाध्याय, डा. लाला सूरजनंदन, डा.सीपी ठाकुर जैसे महान चिकित्सकों ने कम संसाधन के बावजूद विष्वस्तरीय शोध कर अपने संस्थान का नाम रौशन किया था। पीएमसीएच के प्रतिभावान छात्र शिक्षण प्रशिक्षण के लिए विदेश के बड़े सस्थानों में जाते थे, उनके लिए छात्रवृति की व्यवस्था होती थी। लौटकर वे पीएमसीएच में काम करते थे। इसके गौरव को पुनर्स्थापित करने के लिए यह आवश्यक है।