प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 800 साल पहले तक दुनिया में ज्ञान की रौशनी बिखेरने वाले प्राचीन नालंदा विवि की नई बिल्डिंग और कैंपस का उद्धाटन करने के बाद वह बात कही जिससे न सिर्फ बिहार बल्कि समूचे भारत का सीना गर्व से चौड़ा हो गया। पीएम मोदी ने कहा कि 800 वर्ष पूर्व आक्रांताओं ने यहां की पुस्तकें भले ही जला दी, लेकिन वे हमारे ‘ज्ञान’ को नहीं नष्ट कर पाये। आग की लपटों में पुस्तकें भले जल जाएं, लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकती। नालंदा आना मेरा सौभाग्य है। नालंदा एक पहचान है, सम्मान है। हम भारत के लोग बेहतर भविष्य की नींव रखना जानते हैं।
नालंदा के ध्वंस को किया याद
नई बिल्डिंग और कैंपस का लोकार्पण करने के मौके पर पीएम मोदी ने नालंदा के ध्वंस को याद किया और कहा कि शपथ ग्रहण के पहले 10 दिनों में ही नालंदा आने का अवसर मिला जो मेरा सौभाग्य तो है ही, साथ ही मैं इसे भारत की विकास यात्रा के एक शुभ संकेत के रूप में देखता हूं। पीएम ने कहा कि आक्रांता नष्ट होकर काल के गाल में समा गए। लेकिन ज्ञान का केंद्र नालंदा विवि उन काले दिनों से बाहर निकल आज फिर जीवंत हो उठा है।
नालंदा में देखें भारत का सामर्थ्य
प्रधानमंत्री ने कहा कि नालंदा एक पहचान है, एक सम्मान है। नालंदा एक मूल्य है, मंत्र है, गौरव है, गाथा है। नालंदा एक उद्घोष है इस सत्य का कि आग की लपटों में पुस्तकें भले जल जाएं, लेकिन आग की लपटें ज्ञान को नहीं मिटा सकतीं। आज अपने प्राचीन अवशेषों के समीप नालंदा का नवजागरण हो रहा है। विवि का ये नया कैंपस, विश्व को भारत के सामर्थ्य का परिचय देगा। नालंदा बताएगा जो राष्ट्र, मजबूत मानवीय मूल्यों पर खड़े होते हैं, वो राष्ट्र इतिहास को पुनर्जीवित करके बेहतर भविष्य की नींव रखना जानते हैं।
भारत के साथ ही विश्व के अतीत का पुनर्जागरण
प्रधानमंत्री मोदी ने नालंदा के वैश्विक महत्व पर कहा कि यह केवल भारत के ही अतीत का पुनर्जागरण नहीं है। इससे विश्व के, एशिया के कितने ही देशों की विरासत जुड़ी हुई है। नालंदा यूनिवर्सिटी के पुनर्निर्माण में हमारे साथी देशों की भागीदारी भी रही है। मैं इस अवसर पर भारत के सभी मित्र देशों का अभिनंदन करता हूं। मैं उन्हें यह बताना चाह रहा कि प्राचीन नालंदा विवि में बच्चों का एडमिशन उनकी पहचान, उनकी राष्ट्रियता को देखकर नहीं होता था। हर देश, हर वर्ग के युवा यहां आते थे। आज भी नालंदा विश्वविद्यालय के इस नए कैंपस में हमें उसी प्राचीन व्यवस्था को फिर से मजबूती देनी है। यहां आज नालंदा में 20 से ज्यादा देशों के स्टूडेंट्स पढ़ाई कर रहे हैं। यही भारत का वसुधैव कुटुंबकम है।