एक वक्त था जब बीजेपी का कोर वोट बैंक सिर्फ सवर्ण माने जाते थे। 2014 से शुरु हुए और अब तक चल रहे 11 वर्षों के मोदी काल के दौरान इसमें राष्ट्रवाद और गुड गवर्नेंस तथा भ्रष्टाचार रहित शासन के चलते बड़ा इजाफा हुआ। लेकिन तब भी वोट बैंक का यह आंकड़ा इतना ही पहुंचा जिससे भाजपा सत्ता में बनी रही। लेकिन अब मोदी सरकार ने जातीय जनगणना का जो ट्रंप कार्ड खेला है, उसने कांग्रेस समेत बिहार, यूपी से लेकर तमाम राज्यों के क्षेत्रीय नेताओं की बोलती बंद कर दी है। अभी तक कांग्रेस, राजद, समाजवादी पार्टी आदि विपक्षी दल लगातार जातीगत जनगणना पर बढ़ चढ़कर बोल रहे थे। लेकिन उनकी इस कास्ट आधारित राजनीतिक मुद्दे पर पीएम मोदी ने ऐसा मिसाइल पटक दिया जिसे जाना तो था पाकिस्तान लेकिन वह जातिगत जनगणना कराने के फैसले के रूप में गिर गया इनके सिर पर।
एक झटके में विपक्ष से छीन लिया प्रमुख मुद्दा
केंद्र सरकार ने आगामी जनगणना के साथ ही जातीय जनगणना कराने का फैसला कर विपक्षी दलों के सियासी तरकश से एक और तीर निकाल लिया। इस प्रकार विपक्ष के तमाम बड़े नेता राहुल गांधी, तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव, शरद पवार से उनका मुद्दा प्रधानमंत्री ने छीन लिया है। पिछले कुछ समय से विपक्ष का एक ही नारा है—जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी इसके लिए सभी नेता जातीय जनगणना को पहली सीढ़ी बताते आए हैं। इस फैसले के यूं तो हर राज्य में अलग-अलग प्रभाव है लेकिन यूपी और बिहार में इसका सर्वाधिक प्रभाव देखने को मिल सकता है। इसकी बड़ी वजह है ओबीसी वोट बैंक।
बिहार चुनाव से पहले भाजपा ने हवा निकाली
दरअसल बिहार, यूपी में तेजस्वी, अखिलेश यादव और राहुल गांधी पिछले काफी समय से जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं। तेजस्वी यादव तो बिहार में जातीय जनगणना के बाद आरक्षण प्रतिशत बढ़ाने को लेकर भी लामबंद हैं। बिहार में जब आरजेडी और जेडीयू की सरकार थी उस समय सीएम नीतीश कुमार ने जातीय जनगणना कराने का फैसला किया था। इसके बाद जातीय जनगणना के आंकड़े सामने आए और उसी के आधार पर जातियों का आरक्षण बढ़ाया गया। हालांकि बिहार सरकार हाईकोर्ट में आरक्षण की लड़ाई हार गई। लेकिन आरक्षण पर केंद्र की मोदी सरकार के पास यह अख्तियार है कि वह संविधान की 9वीं अनुसूचि में इसे बढ़ा सकती है। ऐसे में ओबीसी का एक बड़ा वर्ग जातिगत जनगणना के ऐलान के बाद उसकी तरफ झुकाव रखने लगेगा। यह स्थिति बिहार में राजद, कांग्रेस और यूपी में अखिलेश के लिए मारक साबित हो सकती है।
बीजेपी के पास कितना OBC समर्थन?
बात अगर बीजेपी के ओबीसी समर्थन की करें तो आंकड़े बताते हैं कि यह साल दर साल बढ़ा है। साल 1999 में बीजेपी के 100 वोटर्स में से 48 ओबीसी थे। 2019 के चुनाव में यह आंकड़ा बढ़कर 59 हो गया। वहीं अगर कांग्रेस की बात करें तो साल 1999 में हर 100 वोटर में उनके पास 42 ओबीसी वोटर थे। मतलब बीजेपी से उनके पास 6 वोटर कम थे। कांग्रेस के साथ उल्टा हुआ साल 2019 में। उनका यह वोट बैंक घट गया। हर 100 वोटरों में से ओबीसी वोटर्स घट कर सिर्फ 38 रह गए। वहीं राजद, समाजवादी पार्टी समेत अन्य दलों के ओबीसी वोटर्स साल 1999 में 100 में से 55 थे जो 2019 के चुनाव में घटकर सिर्फ 48 रह गए।
कांग्रेस पर आंकड़े जारी न करने का आरोप
दरअसल सामाजिक सर्वेक्षण तो कांग्रेस की सरकार के दौरान 2011 में हुआ था लेकिन उसके आंकड़े कभी भी सार्वजनिक नहीं किए गए। ऐसे में राहुल गांधी पिछले कुछ समय से इस मुद्दे को लेकर बीजेपी पर दबाव बना रहे थे। अब बीजेपी इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर दबाव बनाएगी कि उसने सामाजिक सर्वेक्षण के आंकड़े क्यों प्रकाशित नहीं किए। इसके अलावा कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार ने भी जातीय सर्वे करवाया था लेकिन उन्होंने भी अपने आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए।
मोदी के फैसले का व्यापक प्रभाव क्या?
केंद्र सरकार ने अब इस फैसले से विपक्ष से मुद्दा छीन लिया है। अब सरकार आगामी चुनाव में इस मुद्दे को भुनाएगी। ऐसे में सरकार इसका क्रेडिट लेगी। इससे पहले बीजेपी के लिए यह मुद्दा शादी वाले लड्डू की तरह था यानी सरकार जातीय जनगणना कराना भी चाहती थी लेकिन आंकड़े सामने आने के बाद जातीय असंतोष बढ़ने का डर सरकार के मन में है।2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को लगातार तीसरी बार पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इसकी वजह ओबीसी और दलित वोट बैंक का खिसकना और कुछ तात्कालिक कारण थे। अब यूपी-बिहार में होने वाले आगामी चुनाव से पहले बीजेपी ने विपक्ष के इस मुद्दे की हवा निकालने का काम कर लिया है। अब भाजपा आगामी चुनाव में इसको बड़ा मुद्दा बनाएगी और भुनाएगी।
बिहार चुनाव में क्या असर होगा?
बिहार चुनाव से पहले पीएम मोदी के इस मास्टरस्ट्रोक ने कांग्रेस और राजद को कनफ्यूज करके रख दिया। कांग्रेस और राजद बिहार में ओबीसी वोट बैंक को महागठबंधन के पाले में लाने की कोशिश में थे जिसमें यादव, कुर्मी, कोईरी, केवट, पासी, कुशवाहा, निषाद जैसी जातियां आती है। कांग्रेस का टारगेट है कि कैसे भी करके यूपी और बिहार जैसे चुनावी राज्यों में पुराने वोट बैंक को तराशा जाए। जातीय जनगणना के अनुसार बिहार में 63 प्रतिशत आबादी ओबीसी की है। जिसमें अति पिछड़ा 36 प्रतिशत और 27 प्रतिशत ओबीसी शामिल है। ऐसे में अब बीजेपी ने जातीय जनगणना की घोषणा कर अपनी दबी नस को छुड़ाने की कोशिश की है। जोकि आगामी चुनाव में विपक्ष को मुद्दाविहीन बनाने में महत्वपूर्ण भुमिका निभाएगी।