पटना/सिलीगुड़ी : संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ०मोहन भागवतजी ने सिलीगुड़ी स्थित उत्तर बंग मारवाड़ी भवन में आयोजित प्रबुद्ध नागरिक सम्मेलन को गत 19 दिसंबर को संबोधित किया।इस एक यह दिवसीय सम्मेलन संघ शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य़ में उत्तर बंग प्रांत द्वारा आयोजित किया गया था।“राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्षों की यात्रा ” विषयक सम्मेलन में उत्तर बंगाल के आठ जिलों तथा पड़ोसी राज्य सिक्किम से आए समाज के विभिन्न वर्गों के सौ से अधिक प्रबुद्ध नागरिकों ने भाग लिया।
इस सम्मेलन का शुभारंभ प्रार्थना के साथ हुआ और इस दौरान सरसंघचालक डॉ० मोहन भागवतजी ने भारत माता के चित्र के समक्ष पुष्प अर्पित कर सम्मेलन का औपचारिक उदघाटन किया।सम्मेलन में संघ की सौ वर्षों की यात्रा एवं उसके वैचारिक आधार तथा सामाजिक और राष्ट्रीय विकास में उसकी भूमिका पर विस्तृत चर्चा हुई।इस अवसर पर वरिष्ठ नागरिकों, शिक्षाविदों, विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवरों, समाजसेवियों तथा नागरिक समाज के अन्य प्रतिष्ठित सदस्यों की महत्वपूर्ण उपस्थिति रही।
सम्मेलन में सरसंघचालक डॉ०मोहन भागवतजी ने कहा
संघ किसी का विरोध करने या अपने लिए कुछ प्राप्त करने के उद्देश्य से आरंभ नहीं हुआ बल्कि प्रत्येक समृद्ध देश में समृद्धि की अवस्था से पूर्व सामाजिक जागरण और एकात्मता के निर्माण का इतिहास रहा है।दरिद्रता और अनाथ अवस्था में भी डॉकटरजी ने बहुत छोटी उम्र से ही पढ़ाई में एकाग्रता के साथ देशसेवा के कार्यों में उत्साहपूर्वक सहभाग किया तथा देश सेवा के सभी प्रकार के कार्यों को पोषित करने वाली ऐसी एक कार्य-पद्धति का डॉक्टरजी ने विकास किया। मेरे परिवार का अस्तित्व और सुरक्षा जिस समाज पर निर्भर है,उसकी समृद्धि के लिए हम क्या कर रहे हैं,कितना समय और धन व्यय कर रहे हैं।इसका अभ्यास प्रत्येक परिवार में आवश्यक है।समाज के सभी वर्गों के बीच अपने स्वार्थ की चिंता किए बिना,प्रसिद्धि से दूर रहकर,आत्मसंतोष के साथ समाजसेवा करते रहने वाले लोगों के बीच संपर्क-स्थापन आवश्यक है।
समाज की सज्जन शक्ति का परस्पर पूरक होकर एक दिशा में कार्य करना तथा समाज में उनके अनुकरण की चेतना जाग्रत करने का वातावरण बनाने के लिए समाज के साथ जीवंत संबंध रखने वाले लोगों की आवश्यकता है और इसी हेतु व्यक्ति-निर्माण का कार्य अनिवार्य है।प्रत्येक परिवार में अपनी कुलरीति,कालसुसंगत परंपराओं का पालन तथा देशहितकारी आचरण के निर्वहन हेतु नियमित अभ्यास आवश्यक है। संघ के शताब्दी-पूर्ति के अवसर पर अपने जीवन में केवल आचरण के माध्यम से देश कल्याण में योगदान दे सकने वाले पंच परिवर्तन के विषयों को लेकर स्वयंसेवक घर-घर जाएंगे।सरसंघचालक भागवतजी ने परिचर्चा में ” जिज्ञासा समाधान ” सत्र के दौरान विभिन्न विषयों पर संघ के दृष्टिकोण तथा विभिन्न सामाजिक समस्याओं के समाधान में संघ की भूमिका को स्पष्ट किया।
उन्होनें ” वसुधैव कुटुम्बकम् ” को नए रूप में परिभाषित करने के बजाय,उसे नए ढंग से प्रस्तुत करने पर भी बल दिया। सरकार अपनी नीतियों के माध्यम से जो करना है वह करेगी,लेकिन विभिन्न देशों के लोगों के बीच की दूरी मिटाने के लिए हमें अपने देश की अच्छी बातों को सबके सामने प्रस्तुत करना होगा।भारत के तथाकथित अशिक्षित लोग भी अतिथि-परायण होते हैं,पर साथ ही देश के लिए हानिकारक बुरे तत्वों के प्रवेश के प्रति सतर्क रहना भी आवश्यक है।पर्यावरण संरक्षण से जुड़े एक प्रश्न के उत्तर में सरसंघचालक जी ने सबसे पहले परिवार से शुरूआत करने पर जोर दिया।
विवाह में कम दिखावा, ऊर्जा के दुरुपयोग को रोकना, संचित ऊर्जा का सीमित उपयोग, खेती में रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को कम करना तथा पर्यावरण संरक्षण को जीवनशैली का हिस्सा बनाने की बात कही। मंदिर व्यवस्था के अंतर्गत श्रद्धा को सामाजिकता से जोड़ने वाले कार्यों को और अधिक सशक्त करने पर ध्यान देने की सलाह दी।नशे जैसी सामाजिक समस्या के उन्मूलन के लिए स्वयंसेवक कार्य कर रहे हैं। छोटे बच्चों को नशे की लत से दूर रखने में माता-पिता की सीख बहुत प्रभावी होती है। इसलिए पारिवारिक भोजन के समय और पारिवारिक चर्चाओं में बच्चों को नियमित रूप से सदुपदेश देना तथा माता-पिता का स्वयं का आचरण,ये दोनों नशामुक्त समाज के निर्माण के लिए आवश्यक हैं।
सत्यनारायण चतुर्वेदी की रिपोर्ट