पटना : आज बिहार विधान परिषद सभागार में सूबेदार जी की पुस्तक मनुस्मृति की अवधारणा का विमोचन किया मुकुंद राव शोध संस्थान के तत्वावधान में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विधान परिषद के सभापति माननीय अवधेश नारायण सिंह ने कहा कि सूबेदार जी एक कर्मठ समाज सेवी हैं जिन्होंने समाज के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया है और निरंतर अपनी लेखनी से समाज को दिशा देते रहते हैं । निश्चित तौर पर उनकी पुस्तक, मनुस्मृति के संदर्भ में फैली सभी गलत धारणाओं को दूर करेंगी।
पुस्तक के लेखक सूबेदार जी ने कहा कि मनुस्मृति में जो भी विवादित बातें हैं वे सभी क्षेपक हैं। आज मनुस्मृति में 2500 अधिक श्लोक हैं। दयानंद सरस्वती ने मनुस्मृति के सैकड़ो श्लोकों को क्षेपक के रूप में चिन्हित किया है।वास्तव में मनुस्मृति में समाज में शांतिपूर्वक रहने एवं समृद्धि की प्राप्ति के लिए विधान बताएं गए हैं। इन बातों पर अब चर्चा होनी चाहिए ताकि मनु स्मृति के बारे में फैलाई गयी गलत अवधारणाओं एवं शंकाओं का निराकरण किया जा सके।
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए श्रम संसाधन मंत्री श्री संतोष कुमार सिंह ने कहा कि समाज के सामने सही चीजों को आना जरूरी है ताकि वह अपने विवेक का प्रयोग कर सही निर्णय ले सके। औपनिवेशिक काल में एक अभियान के तहत हमारे धर्म ग्रंथो में प्रक्षेपित अंश डालकर उनको काफी तोड़ा मरोड़ा गया है। अब समय आ गया है कि सही बातों का अन्वेषण कर समाज के सामने लाने का प्रयास किया जाए। इस दिशा में सूबेदार जी की यह पुस्तक एकसराहनीय कदम है। विधान परिषद के उप नेता प्रोफेसर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद गुप्ता ने कहा कि सूबेदार जी की यह पुस्तक समाज में फैली हुई अनेक भ्रांतियां को दूर करने में सहायक होगी । हमारे समाज को बांटने वाली शक्तियों के खिलाफ हमें सजग रहने की आवश्यकता है । क्योंकि भारत आज फिर अनेक विभाजनकारी शक्तियों से घिर चुका है ।
विधानसभा सदस्य संजीव चौरसिया ने कहा कि आर्य समाज ने मनुस्मृति के वास्तविक स्वरूप को समाज के सामने लाने का प्रयास किया है । प्रक्षेपित मनुस्मृति को एक अभियान के तहत बाजार से बाहर करने का प्रयास करना चाहिए । हिंदू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है जो समस्त मानव जाति के कल्याण की बात करता है, अतः इसको बदनाम करने वाली शक्तियों के खिलाफ हमें एकजुट होकर काम करना पड़ेगा। विधान परिषद सदस्य श्री जीवन कुमार ने कहा कि विभाजनकारी शक्तियों ने हमारे धर्म ग्रंथो का दुपयोग कर हमारे समाज का समाज को बांटने का काम किया है। हमें इन षड्यंत्रों को पहचानना है और अपनी एकता बनाए रखनी है। जो भी बांग्लादेश में आज हो रहा है इसको देखते हुए सामाजिक एकता के महत्व को समझा जा सकता है।
चर्चित लेखक मिथिलेश कुमार सिंह ने विषय प्रवेश कराते हुए कहा कि मनु ने वेद को धर्म का आधार माना है। वेद में एक भी बात अमानवीय एवं अनैतिक नहीं है, अतः मूल मनुस्मृति में भी ऐसी कोई बात नहीं है। वास्तविकता यह है कि मनु विश्व के पहले विधान निर्माता हैं एवं मनुस्मृति के आधार पर दक्षिण पूर्व एशिया के अनेक देशों के संविधान बनाए गए हैं। जर्मनी के विख्यात दार्शनिक नीत्से, जो ईसाई धर्म के कट्टर आलोचक थे ने बाइबिल छोड़कर मनुस्मृति पढ़ने का नारा दिया था। फिलिपींस के निवासी मानते हैं कि उनके आचार संहिता, मनु और लाओत्से की स्मृतियों पर आधारित है। वहां की विधानसभा में दोनों की मूर्तियां भी लगाई गई हैं। गांधी और टैगोर ने भी माना है कि मनुस्मृति में प्रक्षेप भरे पड़े हैं ।
साध्वी लक्ष्मी माता ने कहा कि उपद्रवी शक्तियों के द्वारा हमारे धर्म ग्रंथो को गलत तरीके से पेश करने का कार्य सदियों से चला आ रहा है। उनका शिकार मनुस्मृति भी रहा है। ज कुछ लोगों ने विशुद्ध मनुस्मृति को सामने लाने का कार्य किया है। आज आवश्यकता है उसी को समाज को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए ताकि गलत धारणाओं का समाधान हो सके।
मंच का संचालन अर्चना राय भट्ट ने किया। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र कार्यवाह श्री मोहन सिंह, राष्ट्रीय स्वयंसेवक के प्रचार विभाग के क्षेत्र प्रमुख श्री राजेश पांडे, भाजपा नेत्री श्रीमती प्रतिभा सिंह,विनोद सम्राट, अरुण कुमार सिंहा, अनिल ओझा, शशि आनंद, यशवंत कुमार सिंह, राज किशोर सिंह, आशुतोष कुमार सहित अन्य को गणमान्य लोक उपस्थित थे।