पटना : “उषा किरण खान एक बहुत बड़ी लेखिका थीं। वाबजूद इसके वह दूसरों की रचना धर्मिता को बढ़ावा देती थीं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है-‘आयाम’। ज्यादातर संस्थाएं इसके संस्थापकों के अवसान के बाद या कई बार तो जीते जी ही समाप्त हो जाती हैं, लेकिन आयाम इसका अपवाद है। “उक्त बातें साहित्यिक संस्था ‘आयाम’ के नौवें वार्षिकोत्सव के अवसर पर मुख्य अतिथि एवं प्रसिद्ध लेखिका ममता कालिया ने कहीं। स्वर्गीय लेखिका पद्मश्री उषा किरण खान को समर्पित इस वार्षिकोत्सव का विषय था ‘स्मृतियों के वातायन से उषा किरण खान’। ममता कालिया ने आगे कहा कि उषा किरण आम स्त्रियों की रचनाशीलता का आधार थीं। मैंने स्वयं भी जब लिखना शुरू किया था तो उस समय उषा जी की कहानियां पढ़ती थीं। मेरा मानना है कि लिखता वही है, जो पढता है। इस मौके पर आगत अतिथियों द्वारा आयाम की वार्षिक पत्रिका का विमोचन किया गया।
हमारे समय की ‘रीढ लेखिका’ थीं उषा किरण खान
विशेष अतिथि कवि एवं गीतकार आलोक श्रीवास्तव ने उषा किरण खान को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उन्हें एक ‘रीढ़ लेखिका’ कहा. उन्होंने कहा कि एक साहित्यकार कभी मरता नहीं. वह अपनी रचनाओं के जरिए हमेशा वर्तमान में बना रहता है. आलोक श्रीवास्तव ने आयाम की नींव के रूप में उषा किरण को याद करते हुए कहा कि आज हम एक ऐसी लेखिका को याद कर रहे हैं जिसकी कोई न कोई किरण आयाम की सदस्याओं के रूप में हमें चारों ओर बिखरी मिलती है।
आयाम की विशेषता मातृ शक्ति का जुडाव
पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर. के. सिंह ने आयाम के फलक को अपरिमित बताते हुए कहा कि आयाम का अर्थ ही होता है ‘एम्पिलिट्यूड’ यानि विस्तृत. मेरे विचार से आयाम की स्थापना अपरिमित ऊंचाईयों तक पहुंचने के लिए ही की गयी थी और उषा किरण खान के नेतृत्व में यह उद्देश्य निश्चित ही प्राप्त हुआ है.
दीदी जैसा व्यक्तित्व सदियों में एक बार पैदा होता है
“दीदी (उषा किरण खान) जैसा व्यक्तित्व सदियों में एक बार पैदा होता है. वह बिहार की प्रखर आवाज़ थीं. उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बिहार का प्रतिनिधित्व किया था. उनका फलक इतना बड़ा था कि उसमें कई सारे व्यक्तित्व समाहित हो सकते थे.”- उक्त बातें कहीं मगध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस.पी. शाही ने. साथ ही उन्होंने राज्य सरकार से आग्रह किया कि वह पद्मश्री उषा किरण खान के नाम से एक बड़ा साहित्यिक पुरस्कार घोषित किया जाए.
21वीं सदी के साहित्य की अभूतपूर्व घटना है ‘आयाम’
विशिष्ट अतिथि गीता श्री ने उषा किरण खान के साथ अपने संबंध को ‘काफ्का और गुस्ताव’ के संबंध के रूप में परिभाषित किया. मेरे लिए उषा दी का घर मक्का-मदीना था. मैं जब भी पटना आती तो उषा दी जिद करके मुझे अपने पास बुला लेतीं. वो दुनिया के लिए भले ही बड़ी लेखिका हूं, लेकिन हमारे आपसी संबंध गुरु-शिष्य के साथ-साथ दोस्ती का भी था. सच कहूँ तो उषा किरण के मन के भीतर की ‘मिनी’ मेरी दोस्त थी, जो कि बेहद सरल, सहज और खुले दिल की थी. उषा दी मेरे रातों की नींद और दिन के थकान की सुकून थीं. उनके जाने से मेरी उषा (सुबह) चली गयी और मेरे जीवन का किरण अस्त हो गया. अंत में, गीता श्री ने कहा कि आयाम का गठन 21वीं सदी के साहित्य की अभूतपूर्व घटना है और इसकी सभी सदस्याएं इसका आधारस्तंभ।
अंत में परिचर्चा सत्र और कहानी पाठ
कार्यक्रम के प्रथम सत्र में “आलोकनामा: बात करो तो लब्ज़ो से भी खुशबू आती है” में आयाम की सदस्य निवेदिता झा ने कवि आलोक श्रीवास्तव से बातचीत की। इस सत्र में आलोक जी के साहित्यिक सफ़र पर विस्तार से चर्चा हुई। बातचीत के दौरान उनके ग़ज़लों में रिश्तों की महक को भी श्रोताओं ने महसूस किया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में”उषाकिरण खान और बिहार की स्त्री रचनाशीलता” विषय पर ममता कालिया से गीताश्री ने बातचीत की। बातचीत के दौरान ममता कालिया ने कहा कि बिहार की स्त्रियों को कलम और मंच दिलाने में उषा किरण जी का अतुलनीय योगदान है।
आखिरी सत्र में मोना झा एवं नीलिमा सिंह ने ऊषा किरण खान की कहानी का पाठ किया। आयाम के नौवें वार्षिकोत्सव में पटना वरिष्ठ साहित्यकार आलोक धन्वा, मुकेश प्रत्युष, शिवदयाल जी अनुराधा शंकर , तनुजा शंकर , कनुप्रिया शंकर , पूर्वा शंकर , तुहिन शंकर सहित कई गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही. समारोह का आरंभ सचिव प्रो वीणा अमृत ने स्वागत और प्रतिवेदन पढ़ कर किया. मंच संचालन सुनीता सृष्टि एवं रीता सिंह ने किया. अंत में धन्यवाद ज्ञापन सौम्या सुमन ने किया।
प्रभात रंजन शाही की रिपोर्ट