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मंथन

नए भारत के दिव्य पथिक

Amit Dubey
Last updated: November 5, 2025 4:38 pm
By Amit Dubey 164 Views
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22 Min Read
नया भारत, दिव्य पथिक, आरएसएस, नरेंद्र मोदी
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KK Ojha

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यह नया भारत है। इस नये भारत के लिए 2025 विशेष वर्ष है क्योंकि इसमें पांच विशेष संयोगों के माध्यम से प्रकृति बड़ा संदेश दे रही है। इस नए भारत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ योगेश्वर श्रीकृष्ण की भूमिका में है, वहीं उसकी आनुषंगिक संगठन भाजपा अर्जुन की भूमिका में। इस वर्ष 2 अक्टूबर को विजयादशमी से आरएसएस का शताब्दी वर्ष प्रारंभ हो गया है। संयोग से इसी वर्ष आरएसएस के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत और भाजपा के सर्वमान्य नेता व भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 75 वां जन्म दिन भी मनाया गया। इस प्रकार 2025 इन दोनों के लिए अमृत जन्मदिवस वर्ष भी है। अंग्रेजी तिथि के अनुसार 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी एवं जय जवान जय किसान का उद्घोष करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की जयंती भी मनायी गयी। इन संयोगों की दृष्टि से इस वर्ष की विजयादशमी यानी 2 अक्टूबर 2025 बहुत विशेष है।

इस नए भारत के उदय के पीछे उत्प्रेरक की भूमिका में जो विचारधारा है वह विशुद्धरूप से भारतीय है। आरएसएस का मतलब भारत का राष्ट्रीय विचार। नए भारत ने अपनी आजादी का अमृत महोत्सव मनाने के साथ ही स्वयं को विकसित देशों की कतार में खड़ा करने का संकल्प ले लिया है। इस संकल्प को सिद्ध करने की दिशा में तेजी से अग्रसर भी है। इससे भी आगे भारत स्वयं को विश्वगुरु के पद पर पुनर्स्थापित करने की दिशा में पुरूषार्थ कर रहा है।

यह सही है कि विचार आधारित संगठन या राजनीतिक दल में व्यक्ति महत्वपूर्ण नहीं होते लेकिन व्यक्ति के माध्यम से विचारधारा व्यावहारिक धरातल पर उतरती है और प्रत्यक्ष दृष्टिगत होती है। इस अर्थ में वह व्यक्ति एक प्रतिमान (माडल) और प्रतीक बनकर बड़े समूह को प्रेरित करता है। उसके व्यवहार से उसका जीवन पथ अनुकरणीय हो जाता है।
इस कसौटी पर आरएसएस के सरसंघचालक डा मोहन भागवत और भारतीय जनता पार्टी के सर्वमान्य नेता व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक आदर्श हैं। ऐसा इनके कटु विरोधी और आलोचक भी अब मानने लगे हैं। वर्तमान भारत के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में दूर-दूर तक इन दोनों के समतुल्य या नजदीक कोई व्यक्ति खड़ा नहीं दिखता।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार 2022 से लेकर 2047 तक की अवधि भारत के लिए अमृतकाल है। वर्ष 2022 में जब भारत की आजादी का 75वां वर्षगांठ अमृतमहोत्सव के रूप में बहुत धूमधाम से मना था तब पीएम मोदी के विरोधियों ने इसे मोदी ब्रांडिंग इवेंट कहकर इसका मजाक उड़ाया था तथा विभिन्न कार्यक्रमों का बहिष्कार भी किया था। अमृत महोत्सव उत्सव वर्ष यानी 2022-23 में ऐसा प्रयास किया गया जिससे भारतीयों में आत्मविश्वास जगे और सामूहिक शक्ति के प्रकटीकरण के अनुकूल सामाजिक वातावरण का निर्माण हो। इस तैयारी के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 से लेकर 2047 तक के 25 वर्ष के कालखंड के लिए सभी भारतीयों के लिए एक लक्ष्य निष्चित कर दिया। नरेंद्र मोदी इसे अमृतकाल कहते हैं। अमृतकाल यानी पूरी शक्ति के साथ फिर से उठ खड़ा होने का काल। यह विचार व्यक्त करते हुए वे 140 करोड़ भारतीयों का आह्वान करते हैं। उनके इस आह्वान में पंथ, सम्प्रदाय, जाति, भाषा आदि के घेरे ध्वस्त होते दिखते है। इसका ही सार है सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास। इस राजनीति का अंतिम परिणाम अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक के सहारे तुष्टिकरण की राजनीति का समूल नाश होगा।

इस कालखंड में उन्होंने भारत को विकसित देशों की कतार में खड़ा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। यह केवल भारत की सरकार, उसकी तंत्र, राजनीतिक दलों के सहयोग से सम्भव नहीं है। इसके लिए सम्पूर्ण भारत को एकजुट होकर लगना होगा। समाज यदि पूर्ण मनोयोग से इस संकल्प के साथ खड़ा नहीं होता तो यह कार्य पूर्ण नहीं हो सकता। इसके लिए ऐसे संगठन का सम्पूर्ण सहयोग आवश्यक है जो प्रतिदिन निःस्वार्थ बुद्धि से व्यक्ति निर्माण कार्य में लगा हो। वायु के समान अदृष्य लेकिन आवष्यकता पड़ने पर बड़े परिवर्तन में मुख्य भूमिका का निर्वहन करने में समर्थ हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार यह बताने में संकोच नहीं करते कि उनके व्यक्तित्व की रचना संघ की शाखा में हुई है। बालपन से आज तक वे संघ को ही जीते हैं इसीलिए उनका सम्पूर्ण भारत माता को समर्पित है।

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डा. मोहन भागवत के 75वें जन्मदिन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं उनके व्यक्तित्व व कीर्ति पर एक लेख लिखा। प्रधानमंत्री का वह लेख भारत के प्रतिष्ठित समाचारपत्रों में प्रकाषित भी हुए। औपनिवेषिक मानसिकता वाले कई लोगों ने इसके लिए प्रधानमंत्री एवं पत्रकारिता को कोसा लेकिन इसके औचित्य और प्रासंगिकता को नकारने वाले तर्क नहीं दे सके।

महात्मा गांधी ने भारत के स्व के जागरण के माध्यम से अंग्रेजी सत्ता के चंगुल से भारत को मुक्त कराने का आंदोलन चलाया था। इसके परिणाम स्वरूप भारत को राजनीतिक आजादी मिली। लेकिन, आजादी के बाद भी भारत का तंत्र, शिक्षा व्यवस्था, न्याय व्यवस्था उस औपनिवेषिक मानसिकता की गुलाम रही। नए भारत को राजनीतिक आजादी के बाद स्वतंत्र होने की आकांक्षा है। स्वतंत्र यानी भारतीय की संस्कृति-प्रकृति वाली तंत्र। आरएसएस के पिछले सौ साल के सतत प्रयास के परिणाम स्वरूप नए भारत में स्व के तंत्र की आकांक्षा जगी है। यहां के तंत्र को भारतीय मन और प्रकृति के अनुकूल बनाने की केवल बात ही नहीं हो रही है बल्कि उसे मूर्तरूप देने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरसंघचालक डा. मोहन भागवत के 75वें जन्मदिन के अवसर पर लेख के रूप में जो विचार व्यक्त किए उससे उन्होंने लाखों स्वयंसेवकों से सीधा संवाद स्थापित कर लिया। इससे भाजपा और संघ को लेकर मीडिया के माध्यम से बनाए गए नैरेटिव की हवा निकल गयी। अपना सम्पूर्ण न्योछावर कर भारत माता के परमगौरव की पुनर्स्थापना का सपना देखने वाले ये स्वयंसेवक रोज मानव परिवर्तन से व्यवस्था परिवर्तन की साधना में लगे हुए हैं। बीज से वटवृक्ष बनने की इस धीमी प्रक्रिया को शायद पष्चिमी दृष्टि से समझा नहीं जा सकता है। इसीलिए संघ की साधना से होने वाले परिवर्तनों को देख लोग आष्चर्य भरी नजरों से देखते है। नरेंद्र मोदी को भी ये आष्चर्य भरी नजरों से ही देखते है।

ऐसे में पीएम मोदी ने अपनी मातृ संगठन के अभिभावक डा.मोहन भागवत के सम्बंध में स्पष्ट विचार व्यक्त कर विष्वास के आधार को और पुख्ता बना दिया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में लिखा कि संघ की यात्रा में भागवत जी का कार्यकाल संघ में सर्वाधिक परिवर्तन का कालखंड माना जाएगा। चाहे वो गणवेश परिवर्तन हो, संघ शिक्षा वर्गों में बदलाव हो, ऐसे अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन उनके निर्देशन में संपन हुए। इस वर्ष की शुरुआत में नागपुर में उनके साथ माधव नेत्र चिकित्सालय के उद्घाटन के दौरान मैंने कहा था कि संघ अक्षयवट की तरह है जो राष्ट्रीय संस्कृति और चेतना को ऊर्जा देता है। इस अक्षयवट की जड़ें इसके मूल्यों की वजह से बहुत गहरी और मजबूत हैं। इन मूल्यों को आगे बढ़ाने में जिस समर्पण से मोहन भागवत जी जुटे हुए हैं वो हर किसी को प्रेरणा देता है।

समाज कल्याण के लिए संघ की शक्ति के निरंतर उपयोग पर मोहन भागवत जी का विशेष बल रहा है। इसके लिए उन्होंने पंच परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया है। इसमें स्व बोध, सामाजिक समरसता, नागरिक शिष्टाचार, कुटुम्ब प्रबोधन और पर्यावरण के सूत्रों पर चलते हुए राष्ट्र निर्माण को प्राथमिकता दी गई है। देश और समाज के लिए सोचने वाले हर भारतवासी को पंच परिवर्तन के इन सूत्रों से अवश्य प्रेरणा मिलेगी। मोहन जी के स्वभाव की एक और बड़ी विशेषता ये है कि वो मृदुभाषी हैं। उनमें सुनने की भी अद्भुत क्षमता है। यह विशेषता न केवल उनके दृष्टिकोण को गहराई देती है, बल्कि उनके व्यक्तित्व और नेतृत्व में संवेदनशीलता और गरिमा भी लाती है। वे हमेशा एक भारत श्रेष्ठ भारत के प्रबल पक्षधर रहे हैं।

संयोग से पीएम मोदी और सरसंघचालक डा.मोहन भागवत का 75वां जन्मदिन इसी कालखंड में सम्पन्न हुआ। इस प्रकार पिछले दिनों सम्पन्न इनका जन्मदिन इनकी हीरक जयंती थी। राष्ट्र को समर्पित इन दोनों के जीवन का यह अमृत महोत्सव भी माना जा रहा है। दूसरा अद्भुत संयोग यह है कि इस वर्ष संघ कार्य के सौ वर्ष पूरे हो रहे हैं। यानी 2025 के विजयादषमी से संघ का शताब्दी वर्ष शुरू हो रहा है। ऐसे अद्भुत संयोग को प्रकृति का संकेत माना जा रहा है। प्रकृति के इस संकेत का रहस्यभेदन शायद संघ के पांचवें सरसंघचालक श्री सुदर्शनजी ने किया था। आरएसएस के पांचवें सरसंघचालक श्रीसुदर्शनजी ने 18 सितम्बर 2006 को एक सभा में कहा था कि विवेकानंद ने 1894 में अपने गुरुभाइयों एवं मित्रों को पत्र लिखकर कहा था कि 1836 में श्रीरामकृष्ण परमहंस के जन्म के साथ युगसंधि काल शुरू हो गया है। युगसंधि काल 175 वर्षों का होता है। इस प्रकार युगसंधि काल 2011 में समाप्त हो जाएगा। जैसे दिन और रात के बीच संधिकाल उषा काल होता है उसी प्रकार युगों के बीच संधिकाल होता है। यह काल मानवता के लिए उथलपुथल भरा और कष्टपूर्ण होता है।

2011 में युगसंधि काल समाप्त होने के बाद भारत के भाग्य का सूर्योदय विश्व में होगा। इस प्रकार 21वीं सदी में भारत एक समर्थ देश के रूप में स्थापित होगा। सुदर्शनजी ने कई बार यह बात कही थी। संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रीगुरुजी के जन्मषती के अवसर पर पटना मंे एक कार्यक्रम भी उन्होंने बड़े आत्मविष्वास के साथ कहा था कि विरोधी विचारधारा और भारत को हमेषा मानसिक गुलाम बनाए रखने की इच्छा रखने वाली शक्तियां भारत की आध्यात्मिक उर्जा से नष्ट होने वाली हैं। आरएसएस के पांचवें सरसंघचालक श्री सुदर्शन जी ने 78 वर्ष की उम्र में मार्च 2009 मंे स्वयं को मुक्त करते हुए डा. मोहन भागवत को सरसंघचालक के पद पर नियुक्त करने की घोषणा की थी। इस प्रकार स्वेच्छा से सरसंघचालक के अपने पदमुक्त होने व अपने मनोनुकूल को अपना उतराधिकारी नियुक्त करने की शानदार परंपरा आरएसएस में जारी है।

जब श्रीकृष्ण और अर्जुन के बिम्ब के माध्यम से तथ्य को प्रस्तुत करने का प्रयास हो रहा है तो इसमंे युद्ध और युद्ध भूमि का जिक्र भी आवष्यक हो जाता है। यह युद्ध भारत के अस्तित्व की रक्षा के लिए है जो भारत की भूमि पर ही लड़ा जा रहा है। इस प्रकार सम्पूर्ण भारत कुरुक्षेत्र है। इस कुरूक्षेत्र में उस सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के लिए युद्ध हो रहा है जिससे सम्पूर्ण विष्व में शांति और आनंद की स्थापना होगी। मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने वाला यह युद्ध है। विष्व में अपना साम्राज्य स्थापित करने के प्रयास में लगी शक्तियां चार प्रकार की है। इसमें प्रथम इवेजेलिकल शक्ति है जो सम्पूर्ण विष्व को इसाई बनाने का सपना देखती है। इसके कार्य को आगे बढ़ाने वाली शक्ति का नाम है ग्लोबल मार्केट। ग्लोबल मार्केट शक्ति भारत की 140 करोड़ की आबादी को विष्व के सबसे बड़े बाजार के रूप में देखती है। इवेजेलिकल षक्ति के सहारे यह भारत में उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा देने की योजना में लगी है। इस योजना को सफल बनाने के लिए यह भारत की सर्वसमावेषी संस्कृति को समाप्त करने में लगी है। भारत की प्राचीन संस्कृति और प्रकृति पर प्रहार करने वालों में तीसरी कट्टर इस्लामिक शक्ति है। इन तीनों के अलावा चौथी शक्ति है जिसे वामपंथ कहा जाता है। भारत के बाहर ये चारो आपस में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। लेकिन, विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देष भारत को अस्थिर ओर कमजोर करने के लिए ये चारो मिलकर काम कर रहे हैं।

देशी-विदेषी मीडिया में संघ को लेकर जिस प्रकार की बातें लिखी और दिखायी जाती रही है उसका प्रभाव भारतीय जनमानस पर स्पष्ट दिखता है। भारत में भी यह मान लिया गया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बीजेपी एक ही है। व्यक्ति निर्माण के माध्यम से समाज और व्यवस्था परिवर्तन में लगे रहने वाले संघ को विपक्ष दुष्प्रचार का भी खामयाजा भुगतना पड़ा है। इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि बीजेपी में संघ के स्वयंसेवकों की संख्या अधिक है। इसके कारण बीजेपी संघ के अत्यंत करीब दिखता है। इसके साथ यह भी सच्चाई है कि भारत के अन्य राजनीतिक दलों मंे भी संघ के स्वयंसेवक कार्य कर रहे हैं।

आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ता आपस में इस तरह घुले मिले हैं कि ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि ये दो जिस्म एक जान हैं। पर ऐसा भी नहीं है कि दोनों एक ही है। इनमें मतभेद भी होते रहे हैं। विषेषता यह रही है कि बहुत शीघ्र दोनों ही संगठनों के जिम्मेदार अधिकारी आपसी संवाद से सबकुछ सामान्य करते रहे हैं।
इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर पीएम मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करने के क्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी जिक्र किया। आरएसएस पर आने से पहले मोदी ने कहा, ष्हमारा स्पष्ट मत है, ये देश सिर्फ सरकारें नहीं बनाती हैं, ये देश राजसत्ता पर विराजमान लोग ही नहीं बनाते हैं, ये देश शासन की विधा संभालने वाले नहीं बनाते हैं। ये देश बनता है कोटि-कोटि जनों के पुरुषार्थ से, ऋषियों के, मुनियों के, वैज्ञानिकों के, शिक्षकों के, किसानों के, जवानों के, सेना के, मजदूरों के, हर किसी के प्रयास से देश बनता है। हर किसी का योगदान होता है. व्यक्ति का भी होता है, संस्थाओं का भी होता है।

इसके बाद प्रधानमंत्री ने आरएसएस के बारे में बात करते हुए कहा, ष्आज मैं बहुत गर्व के साथ एक बात का जिक्र करना चाहता हूं. आज से सौ साल पहले एक संगठन का जन्म हुआ, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, सौ साल की राष्ट्र की सेवा का एक बहुत ही गौरवपूर्ण स्वर्णिम पृष्ठ है। उन्होंने कहा कि व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण के संकल्प को लेकर के, सौ साल तक मां भारती का कल्याण का लक्ष्य लेकर के, लक्ष्यावधि स्वयंसेवकों ने मातृभूमि के कल्याण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए पीएम मोदी ने कहा कि सेवा, समर्पण, संगठन और अप्रतिम अनुशासन, यह जिसकी पहचान रही है, ऐसा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का यह सबसे बड़ा एनजीओ है एक प्रकार से, सौ साल का उसका समर्पण का इतिहास है। मैं आज यहां लाल किले के प्राचीर से सौ साल की इस राष्ट्र सेवा की यात्रा में योगदान करने वाले सभी स्वयंसेवकों को आदरपूर्वक स्मरण करता हूं और देश गर्व करता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की इस सौ साल की भव्य, समर्पित यात्रा को और हमें प्रेरणा देता रहेगा। लालकिले से उनका यह ऐतिहासिक भाषण एक घंटा 43 मिनट का था। अपने भाषण में 82 वी मिनट में उन्होंने संघ पर विचार रखा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले से अपने भाषण में घुसपैठियों का जिक्र करते हुए स्पष्ट कहा कि यह भारत के लिए बड़ी चुनौती है। इसके तहत देश की जनसांख्यिकी (डेमोग्राफी) बदलने का घातक षडयंत्र किया जा रहा है। एक नए संकट के बीज बोए जा रहे हैं। ये घुसपैठिए मेरे देश के नौजवानों की रोजी-रोटी छीन रहे हैं, ये घुसपैठिए मेरे देश की बहन-बेटियों को निशाना बना रहे हैं, यह बर्दाश्त नहीं होगा. ये घुसपैठिए भोले भाले आदिवासियों को भ्रमित करके उनकी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं, यह देश सहन नहीं करेगा। पीएम मोदी ने कहा, जब सीमावर्ती क्षेत्र में डेमोग्राफी में परिवर्तन होता है, तब राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संकट पैदा होता है, देश की एकता, अखंडता और प्रगति के लिए संकट पैदा होता है। कोई अपना देश घुसपैठियों के हवाले नहीं कर सकता है, तो हम भारत को कैसे कर सकते हैं। इसलिए हमने एक ‘हाई पावर डेमोग्राफी मिशन’ शुरू करने का निर्णय किया है।

इस ऐतिहासिक भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने आत्मनिर्भर भारत पर जोर दिया और कहा कि लड़ाकू विमानों के इंजन भारत के अंदर बनने चाहिए। मैं लाल किले की प्राचीर से युवा वैज्ञानिकों, प्रतिभाशाली युवाओं, इंजीनियरों, पेशेवरों और सरकार के सभी विभागों से आग्रह करता हूं कि हमारे पास अपने स्वयं के मेड इन इंडिया लड़ाकू विमानों के लिए जेट इंजन होने चाहिए। पीएम मोदी ने कहा, ‘विकसित भारत का आधार भी है आत्मनिर्भर भारत. अगर कोई दूसरों पर बहुत अधिक निर्भर हो जाता है, तो स्वतंत्रता का प्रश्न ही धुंधला पड़ने लगता है।’ आत्मनिर्भरता केवल आयात, निर्यात, रुपये, पाउंड या डॉलर तक सीमित नहीं है। इसका अर्थ कहीं अधिक व्यापक है। आत्मनिर्भरता सीधे हमारी ताकत से जुड़ी है। भारत स्पेस सेक्टर में कमाल कर रहा है और पूरा देश यह सब देख रहा है। उन्होंने कहा कि भारत खुद का स्पेस स्टेशन बनाने की दिशा में है।

उन्होंने कहा कि हमारे ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला स्पेस स्टेशन से लौट चुके हैं और आने वाले कुछ दिनों में भारत आ रहे हैं। हम स्पेस में भी अपने दम पर आत्मनिर्भर भारत गगनयान की तैयारी कर रहे हैं। हम अपना स्पेस स्टेशन बनाने की दिशा में हैं। पीएम ने कहा कि देश को विकसित बनाने के लिए हम अब समुद्र मंथन की ओर भी जा रहे हैं। हम हमारे समुद्र के भीतर के तेल और गैस के भंडार को खोजने की दिशा में मिशन मोड में काम करना चाहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पड़ोसी देष पाकिस्तान को लेकर भारत की नीतियों को अधिक स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत अब ‘परमाणु धमकियों’ को नहीं सहने वाला है। उन्होंने कहा, ‘अब ब्लैकमेलिंग नहीं सहेंगे।’

उन्होंने कहा कि आज लाल किले की प्राचीर से ऑपरेशन सिंदूर के जांबाजों को सैल्यूट करने का अवसर मिला है। हमारे वीर सैनिकों ने दुश्मनों को उनकी कल्पना से परे सजा दी है। पहलगाम में सीमा पार से आतंकवादियों ने आकर जिस तरह कत्लेआम किया। धर्म पूछकर लोगों को मारा गया। पत्नी के सामने पति को गोलियां, बच्चों के सामने पिता को मौत के घाट उतार दिया गया। पूरा हिंदुस्तान आक्रोश से भरा हुआ है। इस प्रकार के संहार से पूरा विश्व चौंक गया था। ऑपरेशन सिंदूर उसी आक्रोश की अभिव्यक्ति है। पीएम मोदी ने सिंधु जल समझौते का भी जिक्र किया और कहा कि इस पर भारत के किसानों का अधिकार है।

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